________________ नमस्कारव्याख्यानटीका। [प्राकृत शान्तिकर्मणि वारुणमण्डलं श्रीखण्डेनाभिलिखितं स्वाहारञ्जिका // 1 // पुष्टिकर्मणि मण्डलं वरुणमाहेन्द्रादि......स्वधारञ्जिका // 2 // वश्ये आमेयमण्डलं वषइञ्जिकां लिखेत् कुङ्कुमादिभिः // 3 // आकृष्टिकर्मणि आमेयमण्डलं अरुणद्रव्यैः संवौषट् // 4 // विद्वेषे वायव्य वारुणेन्द्रमण्डलानि श्मशानागररञ्जिका विष-लवण-लिम्बपत्रैः कपोतलेखिन्या लिखेत् श्मशानमृत्तिकायाः पुत्तलकद्वयं कृत्वा श्मशानकर्पटे लिखेत् पराङ्मुखान् स्थापयेद् महिषाश्वरुधिरेण // उच्चाटने काकलेखिन्या वायव्यमण्डलं काकामृजा निम्बपत्रेण // विषराजिका लवणधूने सओएमि (?) आनेय-माहेन्द्रमण्डले मारणे गृध्रलेखिन्या लिखेत् // अथ द्रवीकरणे गन्धयदाही सुओ पक्वं बीयं च पाडियं गन्मे / चंदणेण विलितं फुडफुडियं कंचणं होई // 5 // अस्य व्याख्या-अथ द्रव्यकरणेऽञ्जनमाह श्वेतागस्थिक्षुद्रा गुलामूलानि वेलकयुतानि / कलया घृष्टानि भवेदधो भगजातस्य चाञ्जनकम् // 6 // 15 प्रथमं काचकर्पूरेण चक्षुःशोधनम् , मधुना पाशः, ततोऽञ्जनं, उत्तरासृतानि सर्वमूलानि / सरलसकोमलवरुणकमूले मूलार्के यद् द्वये सन्ध्ये / पाठामूत्रे मथेत् त्रिसप्तकदिनैरजादुग्धैः // 7 // एक दिवा द्वयं रात्रौ, चक्षुःशोधनपूर्वकम् / कर्णान्तं तिलकं कृत्वा, पट्टकं मन्त्रसंयुतम् // 8 // 20 मूलजातितिलकम् // वणमुग कुहाडी विक्किणि चकंका तह य भूमि आवलया। . मुहि घित्तिऊण पिक्खइ सोहिय चक्खू महीदविणं // 9 // गुटिका // अथ मूलानि चर्वयित्वा तालुके धृत्वा (?) / बीजपूरकलिम्बुक्योः सेवन्त्री श्वेतगुञ्जयोः॥ 10 // आग्नेयपवनमण्डलमध्यगतं प्रार्चयन्निदं चक्रम् / आरक्तकुसुमजापैर्वशयति वनितां पुमांसं वा (21) // 13 // वर्षाणि पश्चनित्यं यो ध्यायति शुद्धचेतसा यन्त्रम् / रहितो जप-होमाद्यैर्दुर्धरतुर्यव्रतोपेतः (28) // 14 // निष्पन्नसिद्धचक्रः पलमेकं प्रत्यहं सुवर्णस्य / / लभतेऽसौ कर्तव्यः स च व्ययो दान-पूजासु // 15 // यदि दधाति लोभतोऽध दिवसे तस्मिन् व्ययं च न करोति (28-29) / सिद्धिस्तस्य विनश्यति निश्चयतो नात्र संदेहः // 16 // इति लघुसिद्धचक्रम् / 25