________________ नमस्कारव्याख्यानटीका। [प्राकृत जो पुण पक्खं मासं पुजइ वासं पि परमभत्तीए / खंय-कुट्ठ-गंडमाला नासंति भयंदरा रोया // 19 // [12] अन्ने वि एवमाई असजउवसग्ग-ढुंटुरायाणं / नासंति खणेणेए तक्कर-रिउ-दुट्ठसत्ताई // 20 // आयरिसिऊण होइ वसे दुटुपुरिसरायाणो। जो रत्तकुसुमजावं दहदिवसे कुणइ भत्तीए // 21 // अग्गेयमंडलगयं जो चक्कं लिहइ वाउमज्झम्मि / तिल-तुस-राई-लवणं होमंतो तिन्निसंज्झाओ // 22 // तालय-मणसिल-गंधयगुलिया विसकणय दोन्नि रयणीओ। अंगार-वत्थ खप्पर पेयवणे लिहिय भुजपत्ते वा // 23 // वायस-गिद्ध-कवोडयपिच्छेहिं लिहइ तं चकं / उच्चाडण-विदेसण-मारण-गुरुमोह-थंभं च // 24 // माहिंदमंडलगयं लिहियं असुहेण भारमकंतं / सक्कस्स कुणइ थंभं का गणणा मणुयलोयस्स // 25 // वारुणमंडलमझे वैसियरणं होइ सुहेहि लिहिऊणं / निच्च जो आहास(राह? )ई तस्स वसे तिहुयणं सयलं // 26 // . . लिहिऊणं सेयवडे सुहेहि दव्वेहि सिद्धवरचकं / जव-होमेहिं रहिओ जो झायइ पंचवासाई // 27 // संज्झायज्झाणनिरओ अक्खंडियबंभचेरैजोएण / पैलमेक्कदिव्वखंडं कणयस्स दिणे दिणे लहइ // 28 // [13] तं पि वए कायव्वं जिणऍया दाण-भोयकजम्मि। न धरिजइ तहियहे धरिएण विनासए सिद्धी // 29 // जं जं चितइ कजं तं तं संपडइ सिद्धचक्केण / सुइधीरधम्मवंते पुरिसे नत्थित्थ संदेहो // 30 // [14] . को वन्निउं समत्थो सयलविहाणमिमस्स चक्कस्स। मुत्तूण जिणवरिंदं को जाणइ सयलसब्भावं // 31 // [15] * इति श्रीसिद्धचक्रमहिमापद्धतिस्तवनम् // 1 पक्खे मासे J VAI 2 नासंति दुट्ठरोगा तह होइ मणिच्छिया सिद्धि N / 3 रोगं vl, 121 4 दुट्ठगहरोया JVA | 5 खणेण जए J VAT 6°सप्पा वि JVVI 7 जे 1, 121 8 दससहस्सेहि कुJ VAI 9 चक्कमज्झम्मि लिहइ A, चकं लिहइ वाममज्झम्मि rl Y21 10 पेयवडे rl Y21 11 लिहह J VAI 12 °मोहयं तं च 11 12 13 °गयं अउधसुहेणं च नारमकंतं rl r214 वसियरसमुहेहि l Y21 15 निच्च हीइ सई तस्स Yl Y21 16 तस्स नमे ति°rl Y21 17 °हि वरचकं J VAI 18 जो अक्खंडं झायइ पंच य वासाई तस्स निच्च पि। पलमित्तकणयदाणं करेइ विमलेसरो देवो // 13 // N| 19 °णरहिओ rl r2 / 20 °चेरछुत्तेण .JVA | 21 पलमित्तदिव्व० Jv A1 22 पूया नाण-दाणकन्जम्मि JVAL 23 चिंतह क JV / 24 °त्य संसारे J v / 25 °णं स सिद्धचक्कस्स N; °ण इमस्स JvI * एकत्रिंशद्गाथानन्तरं lr2 प्रत्योः षदत्रिंशद्गाथात्मकं स्तवनमुट्टङ्कितम्-ताश्चेमा गाथाः "मा देह जस्स कस्स वि अभध्वजीवस्स अन्नलिंगीणं / सिद्धदुल्लहलाहं एसो मंतक्रमो मग्गो // 32 //