________________ 276 नमस्कारव्याख्यानटीका। [प्राकृत आकण्ठतो नवदिवाकरकान्तितुल्यम् / आमूर्धतोऽञ्जननिभं गरुडस्य रूपम् // 32 // एवं जिनं ध्यात्वा-'ॐ कोपं वंझ हंसं वह नेत्रस्थावर-जङ्गमं निर्विषं करोमि ठः ठः खाहा, हाँ हाँ हूँ हाँ हः हूँ सः क्षः य र ल व सँ सँ सबलसद्दो जः जः जाहि जाहि खाहिः 5 खाहि खः खः खाफु गच्छ हरहंसो झै झै झणकारो, ॐ सँ सँ सवलयः सवलयः क्षःक्ष गच्छ गच्छ गच्छ फू फू फू हरहंसः पक्षाकं पक्षाकं पक्षाकं स्वाहा // " एतैः सिद्धोपदेशैरुञ्जनम् / 'हु क्षु स्वाहा' जलमभिमत्र्य पाय्यते / 'क्षि स्वाहा' कर्णजापः / 'क्षि स्वाहा' अनेन जलमभिमन्य दष्टस्य मुखे क्षिप्यते, ततो यदि व(ह)सति तदा स्वस्थः / ॐ वसह स्वाहा' अनेन जलमभिमत्र्य 21 वामहस्तं शिरसि दत्त्वा ततो यदि स्वयं भणति 'अहं कालः' तदा न जीवति, अन्यथा 10 भव्यः / दक्षिणकराङ्गुष्ठं अमृतधारावर्षेण 'डंकं यः चल विसु नहीं' वामपादानमुपाट्य करमेलने श्वासमोचने 'जः विसु नहीं' वामपादोपरि दक्षिणपादं दक्षिणकराङ्गुष्ठं वामचक्षुषो दक्षिणकर्ण यावत् श्वासग्रहणे आत्मनो विषमुत्तरति / दिनवारा दिने षष्ठास्तथा रात्रौ च पश्चमी / प्रहरार्धाधिपा एवं, शनौ कालोऽपरोऽगुरौ // 33 // चउ-छक्क नवदह-तेरसम्मि तह वीसमम्मि सूराओ। जइ रिक्खे होइ ससी ता रवियोग वियाणाहि // 34 // रवियोगपतितं न उत्तिष्ठति, तथा कर्णपृष्ठे जम्बुकं यस्य जीयते स कालः / रवि अमावस रोहि पहर दुइ हुइ अवरत्तउ, ससि अट्ठमि अ सलेस चयारि गणि फुडइ निरुत्तउ / मंगलु उत्तरफग्गु नवमि पहरह परि छक्कह, बुह अणुराह चउत्थि गणह अट्ठह परमत्थह // 35 // गुरु पडिव जिट्ट सोलह पहर सुक्कस्स निय मघ दो ण तसु। सनि अद्धं चउदसि मणि मुणउ वट्ठतालीस पहर विसु // 36 // . इति वार-तिथि-नक्षत्रयोगोऽवरत्तकः // सूर्ये स्याद् दक्षिणप्रेक्षी, वामप्रेक्षी निशाकरे। तृणच्छेदी कुजे हस्तौ, बुधे वर्षति दष्टकः // 37 // हृद्यस्पृग् गुरौ शुक्रे, समुदसति संततम् / शनौ हसति चिह्नानि, वारीणामवत्तरकः // 38 // दूतपरीक्षा सविसग्गं तह बीयं कंठे निसिऊण अमयसारिच्छं / धरिऊण गरुडमुद्दा उठुइ अंको त्ति नालसद्देणं // 39 // कालदष्टोऽपि सूर्यस्य, दिनेऽष्टाविंशतिर्घटी। जीवत्यतो मृतो नोचेद् , दलितं कालमर्मतः॥ 40 // दिनेऽर्कस्यापराहेऽपि, स्वास्थ्यकविंशतिर्घटी। पश्चादष्टादशघटी, मोहो भवति निश्चितम् // 41 // 25 30