________________ 15 नमस्कार स्वाध्याय। नमो सरीरतिभागूणघणविरईयजीवपएसाणं अरिहंताणं // 106 // नमो पुव्वज्झाणपओगाओसु धणविमुक्त व्व गइपरिणयाणं अरिहंताणं // 107 // (नमो पुव्वज्झाणपओगाओ उसू धणुविमुक्क व गइपरिणयाणं अरिहंताणं // ') नमो सिवमयलमरूअमणंतमक्खयमव्वाबाहमपुणरावित्तिसिद्धिगइनामधेयं ठाणं सं[प]त्ताणं अरिहंताणं // 108 // ॥इति नमस्कारावलिका समाप्ता / A प्रतिप्रान्ते-बाई सवीरांपठनार्थम् / साह राजालिखितम् // जीव प्रदेशोने शरीरना त्रीजा भागथी न्यून घनस्वरूपे करनारा अरिहंत भगवंतोने नमस्कार थाओ // 106 // पूर्वप्रयोगयी धनुष्यमांथी मूकायेल बाणनी सदृश गतिने पामेला सर्व अरिहंतोने नमस्कार 10 थाओ॥१०७॥ शिव-विघ्नोथी रहित, अचल-स्थिर, अरुज्-व्याधि अने वेदनाथी रहित, अनंत-अंत रहित, अक्षय-जेनो कदापि क्षय थतो नथी, अव्याबाध-पीडा रहित, अपुनरावृत्ति-ज्यां गया पछी पार्छ फरवार्नु होतुं नथी तेवा सिद्भिगति नामवाळा स्थानने प्राप्त थयेला अरिहंत भगवंतोने नमस्कार थाओ॥१०८॥ परिचय आ 'अर्हन्नमस्कारावलिका'नी चार पत्रनी हस्तलिखित प्रति पाटणना श्रीहेमचंद्राचार्य ज्ञानमंदिर डा. नं. 129, प्र. नं. 3826 माथी मळी छे तेमाथी आ पाठ लेवामां आव्यो छे अने आ कृतिनी बीजी प्रति डभोई, श्रीअमरविजयजी जैन ज्ञानभंडार प्रति नं. 481/3024 उपरथी पाठांतरो नोंधवामां आव्यां छ। आना कर्ता विशे कोइ माहिती मळी शकी नथी। कोई महान पूर्वाचार्य श्री अरिहंत परमात्माना विशिष्ट प्रकारना ध्यान माटे आ ग्रंथनी रचना करी 20 होय एम लागे छ / आ रचना ज कही आपे छे के तेना रचयिता बहुश्रुत हता। आ ग्रंथमा श्री अरिहंत परमात्मानी 108 विशिष्ट अवस्थाओगें मूलआगमसदृश भाषामां सुंदर रीते आलेखन. करवामां आव्यु प्रातःकालीन ध्यान माटे आ वर्णन उपयुक्त लागे छे / 1 मूलादर्शगत पाठ अशुद्ध लागवाथी नीचे कौंसमां सुधारेल पाठ अमे दर्शाव्यो छे, आ सुधारो 'आवश्यक नियुक्ति' गा. 957 ना आधारे कर्यो छे अने तेनो अनुवाद पण ते गाथानी हारिभद्री टीकाना आधारे को छे। 25 अथवा आ रीते पण पाठ सुधारी शकायः नमो पुव्वपओगाओ बंधणविमुक्क (एरण्डफलं) व्व गइपरिणयाणं अरिहंताणं / पूर्वप्रयोगथी कोशबंधनथी विमुक्त बनेल एरण्डफलनी जेम कर्मबंधनना अभावथी ऊर्ध्वगतिने पामेला अरिहंत भगवानने नमस्कार थाओ (जुओ-योगशास्त्र प्रकाश 11 श्लो. 60) 2 पूर्वप्रयोग एटले पूर्वबद्ध कर्म छूटी गया पछी पण तेथी आवेलो वेग। जेम कुंभारे लाकडीथी फेरवेलो चाक 30 लाकडी अने हाथ उठावी लीधा पछी पण प्रथम मळेल वेगना प्रमाणमा फर्या करे छे, तेम कर्ममुक्त जीव पण पूर्वकर्मथी / आवेल वेगने लीधे पोताना स्वभाव प्रमाणे ऊर्ध्वगति करे छ / कोश (फीडवा)मां रहेलं एरंड बीजकोश तूटतां ज ऊडीने बहार नकळे छे तेम कर्मबंधन दूर थतां ज जीव ऊर्ध्वगामी बने छ / -जुओ 'तत्त्वार्थसूत्र' अध्याय 10, सू. 6 / पं. सुखलालजीकृत विवेचन अथवा सिद्धसेनी टीका / 3 जुओ 'आवश्यकनियुक्ति' गा. 957; हारिभद्रीया टीका /