________________ विभाग] नमस्कार स्वाध्याय / 183 श्रेयोहेतुत्वात् / अद्वैतप्रधाने गुणीभूतद्वैते द्वैतनिबन्धनस्य पक्षपातस्यानुपपत्तेश्च / अप्राप्तश्रद्धाया आप्तागमपदार्थविषयश्रद्धाधिक्यनिबन्धनत्वख्यापनार्थं वाऽर्हतामादौ नमस्कारः / उक्तं च जस्संतियं धम्मवहं णिगच्छे तस्संतियं वेणइयं पउंजे / सक्कारए तं सिरपंचएण कायेण वाया मणसा वि णिचं // 34 // मंगलस्स कारणं गयं / / आप्तनी श्रद्धाथी आप्त, आगम अने पदार्थोना विषयमा दृढ श्रद्धा उत्पन्न थाय छ / आ वात प्रसिद्ध करवाने माटे पण आदिमां अरिहंतोने नमस्कार करवामां आव्यो छे / कां पण छे के जेनी समीपे धर्मज्ञान प्राप्त करे तेनी समीपे विनययुक्त थईने प्रवृत्ति करवी जोईए / तथा तेमनो शिरपंचक अर्थात् मस्तक, बे हाथ अने बे जांघ आ पंचांगोथी तथा काय, वचन अने मनथी निरंतर सत्कार करवो जोईए। आ रीते मंगलना कारणनु वर्णन समाप्त थयुं / (पखंडागमसूत्र-परिचय) ___10 आ 'षड्खंडागम' सूत्र दिगंबर जैन संप्रदायनो बहुमान्य ग्रंथ छे। तेनां मूळ सूत्रो दिगंबराचार्य श्रीपुष्पदंत अने भूतबलि आचार्योए प्राकृतमां रच्यां छे अने तेना उपर दिगंबराचार्य श्रीवीरसेनाचार्य संस्कृतमा टीका लखी छे / आ ग्रंथ 16 भागोमां विभाजित छे अने 15 हिंदी अनुवाद साथे प्रकाशित थयो छे / (प्रकाशकः श्रीमंत शेठ लक्ष्मीचंद शिताबराय, जैन साहित्योद्धारक फंड कार्यालय, अमरावती ( बरार)। संपादक महाशये तेना कर्ताओ अने तेना विषयनिरूपण संबंधे विस्तृत प्रस्तावना लखी छे एटले ए संबंधे अहीं विस्तार करवो योग्य नथी / आ सूत्रमा नमस्कारमंत्रना पांच पदो उपर अने मंगल विषयक सारी माहिती आपवामां आवी छे / ए संदर्भ आपणा विषयने उपयोगी होवाथी अहीं लेवामां आव्यो छे। तेनो गुजराती 20 भाषामा अनुवाद पण साथे आप्यो छे / जलस PARSHURadi डायरेक्टर जनरल ऑफ आयोलोजी इन इंडियाना सौजन्यथी।