________________ निमाग] नमस्कार स्वाध्याय। कम्मं जमणायरिओवएसयं सिप्पमन्नहाभिहि / किसिवाणिजाईयं घडलोहाराइभेअं च // 42 // 928 // जो सव्वकम्मकुसलो जो वा जत्थ सुपरिनिहिओ होइ / सिज्झगिरिसिद्धओविव स कम्मसिद्ध त्ति विन्नेओ // 43 // 929 // जो सव्वसिप्पकुसलो जो वा जत्थ सुपरिनिहिओ होइ / कोकासवडईविव साइसओ सिप्पसिद्धो सो // 44 // 930 // : श०-आचार्यना उपदेश विना ज अनन्य साधारण जे कळा प्राप्त होय ते 'कर्म' कहेवाय / आयी विपरीत एटले आचार्यना उपदेशथी जे कळा जाणी होय ते 'शिल्प' कहेवाय छे; तेमां खेती, बेपार वगेरे कर्मो कहेवाय छे, ज्यारे कुंभार अने लुहार वगेरेनां कार्योने 'शिल्प' कहे छ / बनेमां एटलो तफावत छ / 42, (928) 10 ___(कर्मसिद्धने उदाहरणपूर्वक समजावे छे-) श-जे बधांये कर्मोमां कुशळ होय अथवा कर्ममां बराबर ओतप्रोत थयेलो होय ते 'कर्मसिद्ध' कहेवाय / जेम, सह्याद्रिमा जे सिद्ध रहेतो हतो तेने कर्मसिद्ध जाणवो / 43, (929) (शिल्पसिद्धने दृष्टांत साथे जणावे छे-) श-जे कोई बधां शिल्पोमां कुशळ होय ते अथवा गमे ते एक शिल्पमां निष्णात होय 15 से शिल्पसिद्ध कहेवाय छे / जेमके-कोकास नामनो सुथार / ( तेनी कथा प्रकारे छे-) : "सोप्पारकमां' एक सुथार रहेतो हतो। एनी दासीने ब्राह्मणथी एक पुत्र थयो। ए दासचेट गुप्तरीते रहेवा लाग्यो / सुथारे, हबे हुँ जीवीश नहि, एम विचारीने ते पोताना पुत्रोने शीखववा लाग्यो, पण ते मंदबुद्धि होवाथी कई शीख्या नहीं, परंतु ते दासचेटे ( कोकासे ) बधुं ग्रहण कयुं / पेलो रथकार मरण पाम्यो / ए नगरना राजाए दासचेटने आखं घर आपी दीधुं / ए घरनो स्वामी बन्यो / 20 .. आ तरफ उज्जैनीमां एक जैन राजा हतो / ए राजाने चार श्रावको हता / 1. एक रसोईओ हतो, जे रांधतो। (ए एवी रसोई बनावतो के जे जमवाथी राजाने) जमतांत खाधेलु पची जतुं / अथवा एक, बे, त्रण, चार, अगर पांच पहोर पछी पची जाय एवी इच्छा करे तो पण पचे नहीं। . 2 तेल चोळनार हतो / ए कुडप' जेटलुं तेल शरीरमा समावी देतो अने ए बधुं पार्छ काढतो। 25 3. शय्या रचनार हतो। राजाने बीजे, त्रीजे के चोथे पहोरे (ज्यारे जागq होय त्यारे) जागी शके तेवी के ऊंध्या कर होय तो ते प्रकारनी शय्या ए रचतो। 4. भंडारी हतो / ए एवो भंडार बनावतो के जेनी अंदर गया पछी कई ज न देखाय / १.कोकण देशमा दरियाकिनारे आवेलुं नगर / आजे सुप्पारक ते थाणा जिल्ला- सोपारा मनाय छ। 2. कुडपकरब एटले बार मूठी अथवा सोळ तोलानुं माप /