________________ विभाग] नमस्कार स्वाध्याय / वा 'सिद्धं सज्झमे एसिं ति सिद्धा 2, सियं-बद्धं कम्मं आज्झायं-भसमीभूयमेएसिमिति वा सिद्धाः 3, अत्र गाथा " दीहकालरयं जंतु कम्मं से सिअमट्टहा / सिअं धंतंति सिद्धस्स सिद्धत्तमुवजांयइ // " सिद्धे निट्ठिए पहीणे सयलपओयणजाए कयं वा एएसिमिति वा सिद्धा // 4 // एवमेए इत्थी- 5 पुरिस-नपुंसग-मुणिलिंग-अन्नलिंग-गिहिलिंग-पत्तेयबुद्ध-बुद्धबोहिय जाव णं कम्मक्खयसिद्धाइभेएहि णं अणेगहा पन्नविजंति इत्यादि, अत्र गाथा "तित्थातित्थ-जिणाजिण-गिहि-ऽन्नमुणिलिंग-थी-नर-नपुंसा / पत्तेय-सयंबुद्धा बुद्ध-बोहिय अणेग-इग-सिद्धा // " 10 थवाथी जेमने साध्य 'सिद्ध' थयेलुं छे ते सिद्ध कहेवाय छे / अथवा बांधेलु कर्म जेमनुं भस्मीभूत थई गयुं छे ते सिद्ध कहेवाय छे' (महानिशीथसूत्र ) ( आवश्यकनियुक्तिमां) गाथा छ के-"दीर्घस्थितिवाळु आठ प्रकारनुं बांधेलु जे कर्म तेने ध्यानरूपी अग्निथी भस्मीभूत कर्यु होवाथी सिद्धने सिद्धपणुं प्राप्त थाय छ / " "अथवा जेमनां सकल प्रयोजनो अने कार्य परिपूर्ण थयां छे ते सिद्ध कहेवाय छे / आ 15 .प्रमाणे स्त्रीलिंगसिद्ध, पुरुषलिंगसिद्ध, नपुंसकलिंगसिद्ध, मुनिलिंगसिद्ध, अन्यलिंगसिद्ध, गृहस्थलिंगसिद्ध, प्रत्येकबुद्धसिद्ध, बुद्धबोधितसिद्ध यावत् कर्मक्षयसिद्ध वगेरे भेदोथी अनेक प्रकारे सिद्ध भगवंतोनी प्ररूपणा करवामां आवे छे / " ( महानिशीथसूत्र ) आ संबंधमां आ प्रमाणे गाथा जोवामां आवे छे "तीर्थसिद्ध, अतीर्थसिद्ध, जिनसिद्ध अजिनसिद्ध, गृहलिंगसिद्ध, अन्यलिंगसिद्ध, मुनिलिंग-20 सिद्ध, स्त्रीसिद्ध, पुरुषसिद्ध, नपुंसकसिद्ध, प्रत्येकबुद्धसिद्ध, स्वयंबुद्धसिद्ध, बुद्धबोहितसिद्ध, अनेकसिद्ध, एकसिद्ध-एम अनेक प्रकारना 'सिद्धो छ / " 1 मूळमां आ पाठ 'सिद्धी सद्धाम' छ / तेने महानिशीथसूत्रने आधारे उपर मुजब सुधारेल छ / 2 आवश्यकनियुक्ति गा. 953 / जुओ प्रस्तुत ग्रंथ पृ० 143 3 जुओ प्रस्तुत ग्रंथ पृ० 42, पं. 22 थी 25 4 जुओ प्रस्तुत ग्रंथ पृ० 42, पं. 26 थी 28