________________ 77 विभाग] नमस्कार स्वाध्याय। अरहयद्यः सर्वकर्मक्षयानन्तरसमय एव लोकाग्रगमनाद् भवमध्येऽतिष्ठद्भयः, भणितं च " न रहन्ति व न चयन्ती नाणाइ सिवेऽवि तेउ अरिहंता / / न रहन्ति न चिट्ठन्ति य भवम्मि जं तेण अरिहंता // " यदा ‘अरथान्तेभ्यः' अविद्यमानो रथः-स्यन्दनः सकलपरिग्रहोपलक्षणभूतोऽन्तश्च-विनाशो जराद्युपलक्षणभूतो येषां ते अरथान्ताः ‘खघथधभाम्' इतिसूत्रात् थस्य हत्वे अरहंता, भणितं च- 5 “संगुवलक्खणभूओ रहो अ जाणं न जेसि अंतो य / नासो जराइउवलक्खणं तु ते हंति अरहंता // " अरभमानेभ्यो वा- अतुच्छस्वच्छतादिभावमयत्वेन राभसिकवृत्त्यादिनिवृत्तेभ्यः इत्यादिव्याख्यान्तराण्यपि भावनीयानि। अरिहंताणमिति वा पाठे इन्द्रियविषयाद्यरिहन्तृभ्यः, न्यगादि च--- 10 " इंदियविसयकसाए, परीसहे वेयणा य उवसग्गे / रागद्दोसे कम्मे, अरी हणंतीति अरिहंता // " अर्थात् 'अरहयद्भ्यः' एटले सर्व कर्मनो क्षय थया पछी तरतना समये लोकना अग्रभागे जता होवाथी जेओ संसारनी अंदर रहेता नथी तेवा अरहंत भगवंतोने मारो नमस्कार हो / कयुं छे के: “मोक्षमां गया पछी ज्ञानादिने त्यजता नथी ते अरिहंत कहेवाय छे तथा संसारमा रहेता 15 नथी तेथी पण तेओ अरिहंत कहेवाय छ / " * अथवा अहीं 'अरहंताणं' नो 'अरथान्तेभ्यः' एवो अर्थ पण नीकळे छे। 'रथ' शब्दनो उपलक्षणथी 'सर्व प्रकारनो परिग्रह' एवो अर्थ समजवो / 'अंत' एटले 'विनाश' तथा उपलक्षणथी (जन्म) जरा वगेरे समजवां / अर्थात् 'रथ' एटले 'सर्व प्रकारनो परिग्रह' अने 'अंत' एटले जन्म-जरा-मृत्यु जेमने नथी तेओ 'अरथान्त' कहेवाय छे / 'खघथधभाम्' ए प्राकृत सूत्रथी 'थ' 20 नो 'ह' थवाथी 'अरथान्त' नुं 'अरहंत' एवं रूप बने छ / कयुं छे के___ "परिग्रहना उपलक्षणभूत जेमने 'रथ' एटले 'वाहन' नथी अने जरा वगेरेना उपलक्षणभूत जेमने अंत (एटले नाश) नथी ते अरहंत कहेवाय छ / " अथवा 'अरभमानेभ्यः' एवो पण अर्थ नीकळे छ / अर्थात् अत्यंत श्रेष्ठ स्वच्छता वगेरे भावोवाळा होवाथी जेओ राभसिक वृत्ति ( उतावळियापणुं ) वगेरेथी निवृत्त थयेला छे तेमने मारो 25 नमस्कार हो / आ वगेरे बीजी व्याख्याओ पण समजी लेवी / अथवा 'अरिहंताणं' ए पाठमां इंद्रिय, विषय वगेरे शत्रुओने हणनारा अरिहंत भगवंतोने मारो नमस्कार हो-ए प्रमाणे अर्थ समजवो / कह्यु छ के___ "इंद्रिय, विषय, कषाय, परीषह, वेदना, उपसर्ग, राग, द्वेष तथा कर्मरूपी शत्रुओनो नाश करे छे ते अरिहंत कहेवाय छ / " 30 +जुओः-'श्रीसिद्धहेमचंद्रशब्दानुशासनम्' अध्याय 8, पाद 1, सूत्र // 187 //