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________________ विभाग] नमस्कार स्वाध्याय / . से भयवं ! किमयस्स अचिंतचिंतामणिकप्पभूयस्स पंचमंगलमहासुअखंधस्स सुत्तत्थं पन्नत्तं ? गोयमा ! इय एयस्स अचिंतचिंतामणिकप्पभूअस्स पंचमंगलमहासुअक्खंधस्स णं सुत्तत्थं पन्नत्तं, तं जहाजेणं पंचमंगलमहासुअक्खंधे से णं सयलागमंतरोववत्ती तिलतिल्ल 1 कमलमयरंद 2 सव्वलोअपंचत्थिकायमिव 3 जहत्थकिरियाणुवायसब्भूयगुणकित्तणे जहिच्छियफलपसाहगे चेव परमथुइवाए। सा य परमथुई केसिं कायव्वा ? सव्वजगुत्तमुत्तमाणं, सव्वजगुत्तमुत्तमे य जे केइ भूए, जे केइ भवंति, जे केइ भविस्संति ते / सव्वेवि अरहंतादओ चेव, नो णमन्ने त्ति, ते य पंचहा-अरिहंते 1 सिद्धे 2 आयरिए 3 उवज्झाए 4 साहुणो 5 / ___तत्थ एएसिं चेव गब्भत्थसब्भावो इमो, तं जहा-सनरामरासुरस्स णं सव्वस्सेव जगस्स अट्ठमहापाडिहेराइप्याइस उवलक्खि अणन्नसरिसमचिंतमप्पमेयं केवलाहिट्ठिअं पवरुत्तमत्तं अरहंत त्ति, 10 वंदणादि ते अरहंता आह च 'अरहं ति वंदणनमंसणाणि अरिहं ति पूअसक्कारं / सिद्धिगमणं च अरहा, अरहंता तेण वुचंति // ' "(प्र०) 'भगवन् ! आ अचिंत्यचिंतामणि समा पंचमंगलमहाभुतस्कंधना सूत्रनो अर्थ शोछे ?' (उ० ) गौतम ! आ अचिंत्यचिंतामणि तुल्य पंचमंगलमहाश्रुतस्कंधना सूत्रनो अर्थ आ lb प्रमाणे छे-जेम तलमां तेल छे, कमलमां मकरंद छे अने सकल लोकमां जेम पांच अस्तिकाय व्यापीने रहेला छे तेम पंचमंगलमहाश्रुतस्कंध सर्व आगमोमां व्यापीने रहेलो छे, यथार्थ क्रियानुगत सद्भूत गुणोनी स्तुतिरूप छे, तथा यथेच्छित फळने सिद्ध करनार परम स्तुतिवाद छ / ' ___'आ परमस्तुति कोनी करवी जोईए ?' - सर्व जगतमा जे उत्तमोत्तम होय तेनी स्तुति करवी जोईए / सर्व जगतमा उत्तमोत्तम जे कोई 20 थया छे, थाय छे अने थशे ते बधा अरिहंत वगेरे ज छे / अरिहंत वगेरे सिवाय सर्व जगतमां बीजा कोई उत्तमोत्तम नथी। ते अरिहंत वगेरे पांच प्रकारे छे–अरिहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय, साधु। . आ बधानो रहस्यभूत अर्थ आ प्रमाणे छे–मनुष्य, अमर तथा असुर सहित सर्व जगतमां जेओ आठ महाप्रातिहार्य वगेरे पूजातिशयथी उपलक्षित, बीजामां न होय तेवी, अचिंत्य 25 माहात्म्यवाळी तथा केवलज्ञानथी युक्त श्रेष्ठ उत्तमताने योग्य छे तेओ अरिहंत कहेवाय छ / " ' (महानिशीथसूत्र ) वंदन वगेरेने जे योग्य छे तेओ अरिहंत कहेवाय छे। (आवश्यकनियुक्तिमां') कडुं छे के-"वंदन, नमस्यन, पूजा, सत्कार तथा सिद्धिगमनने योग्य होवाथी अरहंत कहेवाय छे" ... 1 जुओ प्रस्तुत ग्रंथ पृ. 41, पं. 4 थी पृ. 42, पं. 15 आवश्यकनियुक्ति गा० // 921 // जुओ प्रस्तुत ग्रंथ पृ० 132
SR No.004340
Book TitleNamaskar Swadhyay Prakrit Vibhag
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhurandharvijay, Jambuvijay, Tattvanandvijay
PublisherJain Sahitya Vardhak Sabha
Publication Year1961
Total Pages592
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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