________________ [353 जिनस्य जिनमातुश्च यो दुष्टं चिन्तयिष्यति / ... एरण्डफलवद् ग्रीष्मे स्फुटिष्यत्यस्य मस्तकम् // 16 // ततो नन्दीश्वरद्वीपे यात्रां कृत्वा सुरेश्वराः / सर्वे निजं निजं स्थानं जग्मुस्ताश्च कुमारिकाः // 57 / / तदा देवी जजागार तदङ्गप्रतिचारिकाः / दृष्ट्वा सनन्दनामेतां जातानन्दाः ससम्भ्रमाः // 58 / / प्रस्खलद्गतयो गाढनीवीचन्धशिरोरुहाः / पतत्पच्छादनाः पुत्रजन्म राज्ञे न्यवेदयन् // 59 // इदं च कथयासासुः सूतिकर्माऽस्य देव ! यत् / चक्रे काष्ठाकुमारीमिर्दासीमिरिव साञ्जसम् // 60 // . कृतो जन्माभिषेकश्च सुरेन्द्ररुमस्तके / इति देवमुखात् स्वामिनस्माभिः शुश्रुवे वचः // 61 // ततोऽभिनवपाथोद-धाराहतकदम्बवत् / शुशुमे जातरोमाञ्चकञ्चुको जगतीपतिः // 62 // निजाङ्गलग्नमखिलं भूषणं मुकुटं विना / आसप्तसन्ततिं ताभ्यो वृत्तिं च प्रददावसौ // 63 // ततश्च दापयन् दानमनिवारितशात्रवम् / . हृष्टः प्रवतयामास सुतजन्ममहोत्सवम् // 64 // द्वादशेऽथ दिने राजा बन्धुवर्गमशेषकम् / : भोजयित्वा गौग्वेण तत्समक्षमदोऽवदत् // 65 // बभूवाऽशिवशान्तिर्यदस्मिन् गर्भागते जिने / .. तदस्य सुतरत्नस्य शान्ति मास्तु सुन्दरम् // 66 // सर्वस्याऽपि जनस्यैतत् सञ्जातं नाम सम्मतम् / रम्यं सद्गुणनिष्पन्न चेतसाग्रे विचिन्तितम् // 67 // शक्रसंक्रमिताअष्ठाऽमृताहारस्ततः प्रभुः / विशिष्टरूपलायव्यसम्पको बधे क्रमाद // 6 //