________________ प्रथमखण्ड-का० १-आत्मविभूत्वे पूर्वपक्षः 546 कच सिद्धे हि शब्दे गुणे तदाधारसिद्धिः-गुणस्याधारमन्तरेणानवस्थानात्-तत्सिद्धौ च तदाधारस्य नित्यत्वे सत्यस्मदादिप्रत्यक्षशब्दगुणाधारत्वेन विभुद्रव्यत्वसिद्धिः, तत्सिद्धेश्च शब्दस्य क्षणिकत्वसिद्धिः क्रियावत्त्वप्रतिषेधेन द्रव्यत्वाभावं साधयेत् ततश्च गुणत्वम् , ततो विभुद्रव्याश्रितत्वम् , ततोऽपि क्षणिकत्वं इति चक्रकमासज्येत / साधनशून्यश्च साधर्म्यदृष्टान्तः, बुद्धरपि विश्वात्मविशेषगुणत्वाऽसिद्धेः / न च शब्ददृष्टान्तेन तत् साध्यते, तस्याद्याप्यसिद्धत्वात् , इतरेतराश्रयदोषप्रसंगतः / न च विभ्वात्मविशेषगुणो ज्ञानम् ,तत्कार्यत्वात् , शब्दवत्' इत्यतोऽनुमानात् तस्य तद्विशेषगुण. त्वसिद्धिः, कार्यत्वस्येश्वरनिराकरणे परप्रसिद्धस्यासिद्धत्वेन प्रतिपादितत्वाद् इतरेतराश्रयस्य च तदवस्थस्वात्-सिद्धे हि शब्दस्य विभुद्रव्यविशेषगुणत्वे दृष्टान्तत्वम् , ततो ज्ञानस्य तत्सिद्धिः, ततश्च शब्दस्य तत् इति कथं नेतरेतराश्रयदोषः इति साधनविकलो दृष्टान्तः / तथा साध्यविकलश्च, बुद्धेः क्षणिकत्वासंभवात् , तथात्वे वा तस्याः न ततः संस्कारः, तदभावाद न स्मरणम् , तदभावाच्च न प्रत्यभिज्ञादिव्यवहारः। न हि विनष्टात् कारणात् कार्यम् , अन्यथा चिरतरविनष्टादपि ततस्तत्प्रसंगात् / अनन्तरस्य कारणत्वे सर्वमनन्तरं तत्कारणमासज्येत। भूत (शब्द) गुण का आधार होने से' इस हेतु से आधारभूत द्रव्य में विभुत्व की सिद्धि हो सकेगी। विभुत्व सिद्धि होने पर शब्द में पूर्वोक्त हेतु से क्षणिकत्व की सिद्धि होगी। तथा क्षणिकत्व की सिद्धि से, शब्द में आशंकित क्रियावत्ता का निषेध फलित होगा ( क्योंकि क्षणिक पदार्थ में क्रिया नहीं घट सकती ) / क्रिया के निषेध से द्रव्यत्व का निषेध सिद्ध होगा। द्रव्यत्व निषिद्ध होने पर अन्ततः शब्द में गुणत्व की सिद्धि होगी, और ऐसे गूणत्व की सिद्धि होने पर विभुद्रव्यात्मक आधार की सिद्धि और उससे क्षणिकत्वादि की सिद्धि होगी....इस प्रकार चक्रक दोष स्पष्ट लगेगा। तथा ज्ञानादि साधर्म्यदृष्टान्त में हेतु असिद्ध है, क्योंकि बुद्धि में भी अब तक विभुद्रव्यविशेषगुणत्व कहाँ सिद्ध है ? ( वह तो आत्मा के विभुत्व की सिद्धि पर अवलम्बित है ) शब्द को दृष्टान्त करके उक्त हेतु से बुद्धि में विभुद्रव्यविशेषगुणत्व सिद्ध नहीं किया जा सकता क्योंकि शब्द में ही अब तक वह असिद्ध है / यदि शब्द में ज्ञान के दृष्टान्त से उसकी सिद्धि करने जायेंगे तो अन्योन्याश्रय व्यक्त होगा। [ज्ञान में विभुद्रव्यविशेषगुणत्व की सिद्धि दुष्कर ] तथा, 'ज्ञान विभुआत्मा (विभुद्रव्य) का विशेषगुण है क्योंकि उसका कार्य है, उदा० शब्द' इस अनुमान से भी ज्ञान में विभुआत्मविशेषगुणत्व सिद्ध नहीं हो सकता। क्योंकि ईश्वरनिराकरणप्रसंग में प्रतिवादि को अभिमत कार्यत्व कसे असिद्ध है यह कहा जा चुका है और पहले जो इतरेतराश्रय एष्टान्त के साथ दिखाया है वह ज्यों का त्यों है / जैसे: शब्द में विभुद्रव्यविशेषगुणत्व सिद्ध हो तभी वह दृष्टा त बनेगा और तब उसके दृष्टान्त से ज्ञान में विभुद्रव्यविशेषगुणत्व सिद्ध होगा, तथा, ज्ञान में वह सिद्ध होने पर उसके दृष्टान्त से शब्द में विभुद्रव्यविशेषगुणत्व सिद्ध होगा-तो इतरेतराश्रय दोष क्यों नहीं होगा ? तात्पर्य, ज्ञानात्मक दृष्टान्त हेतुशून्य है। तथा साध्यशून्य भी है क्योंकि बुद्धि में क्षणिकत्व का सम्भव ही नहीं है / यदि वह क्षणिक होगी तो उससे संस्कार का उद्भव ही अशक्य बन जायेगा। संस्कार का लोप होने पर स्मरण नहीं होगा और स्मरण के लोप होने से प्रत्यभिज्ञा आदि का व्यवहार भी नामशेष हो जायेगा। संस्कार का उद्भव इसलिये अशक्य है कि क्षणवार में वृद्धि नष्ट हो जायेगी, फिर नष्ट कारण से कोई कार्य नहीं हो सकता, अन्यथा दीर्घकाल पहले नष्ट हुए