SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 581
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 548 सम्मतिप्रकरण-नयकाण्ड 1 सिद्धिरिति / अनुमानान्तरेण तत्प्रतिपत्तावनवस्था। प्रमाणान्तरेण च तत्प्रतिपत्तौ वैशेषिकस्य द्वे प्रमाणे, नैयायिकस्य चत्वारि प्रमाणानि इति प्रमाणसंख्याव्याघातः। ततो मानसप्रत्यक्षेण व्याप्ति. गुह्यत इत्यभ्युपगन्तव्यम् / तथा च प्रयत्नसमानगुरणस्य समाकर्षकस्य, तत्समाकृष्यमाणस्य च पश्वादेस्तत्प्रत्यक्षत्वमित्यस्मदादिप्रत्यक्षत्वं धर्मादेरपि परैरभ्युपगन्तव्यम् / ___यदि पुनः 'बाह्यन्द्रियप्रभवास्मदादिप्रत्यक्षत्वे सति' इति हेतुविशिष्यते तदा साधनविकलता दृष्टान्तस्य, सुखादेस्तथाऽप्रत्यक्षत्वात् / विभुद्रव्यं च यद्यत्राकाशमस्मदाद्यप्रत्यक्षं विवक्षितं तदा तद्वत् तद्गुणस्याप्यस्मदाद्यप्रत्यक्षत्वमिति 'अस्मदादिप्रत्यक्षत्वे सति' इति विशेषरणाऽसिद्धिहेतोः, गुणिनोऽप्रत्यक्षत्वे तद्विशेषगुणस्याप्यप्रत्यक्षत्वेन प्रतिपादितत्वात् / / प्रति खिचे जाने वाले पशु आदि को देखे विना 'प्रयत्न जैसे गुण द्वारा आकृष्टत्व' के साथ देवदत्त के प्रति उपसर्पण (=खिचा जाना) की व्याप्ति सिद्ध कैसे होगी? जैसे देखिये-प्रयत्न की प्रतीति न होने पर देवदत्तप्रयत्न से आकृष्ट माने जाने वाले कवलादि में देवदत्त के प्रति उपसर्पण की व्याप्ति का बोध नहीं होता है। यदि 'प्रयत्न जैसे गुण से आकृष्टत्व' की व्याप्ति का ग्रहण उसी अनुमान से ( जिससे आप धर्म की सिद्धि करना चाहते हों) मानेंगे तब तो इतरेतराश्रयदोष होगा-व्याप्ति सिद्ध होने पर अनुमान का उत्थान होगा और अनुमान होने पर व्याप्ति की सिद्धि होगी। यदि नये किसी अनुमान से व्याप्ति की सिद्धि मानेंगे तो उस अनुमान की हेतुभूत व्याप्ति की सिद्धि के लिये नये नये अनुमान करते ही जाओ, अन्त नहीं आयेगा / यदि कहें कि-जैनमत में तर्क से व्याप्तिग्रह माना जाता है ऐसे हम भी किसी नये प्रमाण से व्याप्ति का ज्ञान मानेंगे-तो, वैशेषिकों ने प्रत्यक्ष और अनुमान दो ही प्रमाण माने हैं तथा नैयायिकों ने तदुपरांत उपमान और शब्द चार प्रमाण माने हैं उसमें प्रमाणसंख्या का व्याघात होगा, क्योंकि प्रमाणसंख्या में तर्क जैसे किसी नये प्रमाण की वृद्धि हुयी है / फलतः आपको मानसप्रत्यक्ष से ही व्याप्ति का ज्ञान मानना होगा। फिर तो पशु आदि का आकर्षक प्रयत्न जैसा गुण ( धर्मादि ) और उससे आकृष्ट होने वाले पशु आदि का भी मानसप्रत्यक्ष मानना होगा, इस प्रकार धर्मादि में हम लोगों के प्रत्यक्ष की विषयता के रह जाने से धर्मादि को भी प्रत्यक्ष मानना ही होगा / अतः शब्द में क्षणिकत्व की सिद्धि के लिये उपन्यस्त हेतु धर्मादि में ही साध्यद्रोही सिद्ध होगा। यदि हेतु के आद्य अंश में नया विशेषण जोड कर ऐसा हेतु करे कि 'बाह्येन्द्रियजन्य हम लोगों के प्रत्यक्ष का विषय होता हुआ विभुद्रव्यविशेषगुण है' तो दृष्टान्तभूत ज्ञान-सुखादि में बाह्येन्द्रियजन्यप्रत्यक्षग्राह्यता न होने से दृष्टान्त हेतुशून्य बन जायेगा / तथा हेतु का विशेष्य अंश विभद्रव्यविशेषगुणत्व-इसमें यदि विभूद्रव्य आकाश विवक्षित हो और यदि उसे आप हम लोगों के प्रत्यक्ष का भविषय कहते हो तब तो धर्मी प्रत्यक्ष न होने से उसका गुण शब्द भी प्रत्यक्ष न हो सकेगा / फलतः 'हम लोगों को प्रत्यक्ष होता हुआ' इस विशेषण अंश से हेतु ही असिद्ध बन जायेगा। गुणी(धर्मी) प्रत्यक्ष न होने पर उसके गुण का भी प्रत्यक्ष नहीं होता यह बात पहले कह दी गयी है [ [ शब्द में गुणत्व सिद्ध करने में चक्रक दोष ] तदुपरांत, शब्द 'गुण' है यह सिद्ध होने पर, आधार के विना गुण का अवस्थान न घटने से, उसके आधार की सिद्धि होगी। आधार सिद्ध होने पर 'नित्य होते हुए हम लोगों के प्रत्यक्ष के विषय
SR No.004337
Book TitleSammati Tark Prakaran Part 01
Original Sutra AuthorSiddhasen Divakarsuri
AuthorAbhaydevsuri
PublisherMotisha Lalbaug Jain Trust
Publication Year1984
Total Pages696
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy