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________________ 544 सम्मतिप्रकरण-नयकाण्ड 1 न च शब्दक्षणिकत्वप्रसाधकमनुमानं पराभ्युपगमे संभवति / यच्च 'क्षणिकः शब्दः, अस्मदादिप्रत्यक्षत्वे सति विभुद्रव्यविशेषगुणत्वात् , यो योऽस्मदादिप्रत्यक्षत्वे सति विभुद्रव्यविशेषगुणः स स क्षणिकः, यथा ज्ञानादिः, तथा च शब्दः, तस्मात् क्षणिकः' इत्यनुमानम् , तदेकशाखाप्रभवत्वानुमानवद् मानसप्रत्यक्षाभिमतप्रत्यभिज्ञानबाधितकर्मनिर्देशानन्तर प्रयुक्तत्वात कालात्ययापदिष्टहेतुप्रभवत्वाद् न साध्यसिद्धिनिबन्धनम् / किंच धर्मादेविभुद्रव्यविशेषगुणत्वेऽपि न क्षणिकत्वमिति हेतोर्व्यभिचारः / तस्यापि पक्षीकरणे सर्वत्र व्यभिचारविषये पक्षीकरणाद् न कश्चिद् हेतुर्व्यभिचारी स्यात् 'अस्मदादिप्रत्यक्षत्वे सति' इति च विशेषणमनर्थकम् , व्यवच्छेद्याभावात् / धर्मादेः क्षणिकत्वे च स्वोत्पत्तिसमयानन्तरमेव ध्वस्तत्वाद् न ततो जन्मान्तरफलप्राप्तिः / शब्दात शब्दोत्पत्तिवद् धर्मादेर्धमाद्युत्पत्तावभ्युपगमबाधा "परस्य अनुकलेष्वनुकुलाभिमानजनितोऽभिलाषोऽभिलषितुराभिमुखनियाकारणमात्मविशेषगुणमाराध्नोति, अनुकूलेष्वनुकूलाभिमानजनिताभिला उत्तरपक्षी:-एकत्वबोधक प्रत्यभिज्ञा प्रत्यक्षाभासरूप कैसे सिद्ध हुी ? यदि अनुमान का बाध है इसलिये, तो फिर वह प्रत्यक्ष, अनुमान का भी बाधक होने से, अनुमान भी अनुमानाभासरूप क्यों नहीं होगा? यदि कहें कि-प्रत्यक्ष को आप अनुमान का बाधक कहते हैं उसका ही विषय अनुमानबाधित है अतः वह प्रत्यक्ष अनुमान का बाधक नहीं हो सकता-तो इसके विरुद्ध यह भी कह सकते हैं कि बाधक अनुमान का ही विषय प्रत्यक्षबाधित होने से वह अनुमान प्रत्यक्ष का बाधक नहीं हो सकता। यदि कहें-शब्द में एकत्वविरोधी अनुमान, साध्य के अविनाभावी हेतु के बल से उत्पन्न है अतः मानसप्रत्यक्ष से उसका बाध अशक्य है / तो एकशाखाप्रभवत्वहेतुक अनुमान भी वैसा ही होने से अपक्वताबोधकप्रत्यक्ष से बाधित नहीं होगा। यदि कहें कि-फल में पक्वता का अभाव प्रत्यक्ष सिद्ध है और हेतु एक शाखाप्रभवत्व वहाँ रहता है अत: पक्ष में ही हेतु साध्यद्रोही होने से एकशाखाप्रभत्वहेतुक अनुमान साध्य के अविनाभावी हेतु से उत्पन्न नहीं माना जा सकता / तो शब्द के क्षणिकत्वानुमान के लिये भी यही बात कह सकते हैं कि शब्द में प्रत्यक्ष से स्थायित्व (एकत्व) अर्थात् क्षणिकत्व का अभाव सिद्ध होने से उसमें क्षणिकत्व साधक हेतु रहेगा तो साध्यद्रोही बन जायेगा अतः क्षणिकत्व का अनुमान भी साध्याविनाभावि हेतुबल से उत्पन्न नहीं हो सकता। [शब्द में क्षणिकत्वसाधक अनुमान का असंभव ] तथा नैयायिकमत में शब्द में क्षणिकत्व का साधक अनुमान भी सम्भवारूढ नहीं है / यह जो अनुमान कहा जाता है-"शब्द क्षणिक है, क्योकि हमलोगों को प्रत्यक्ष होने के साथ विभद्रव्य का विशेष गुण है / जो जो हमलोगों को प्रत्यक्ष और विभुद्रव्य का विशेष गुण होता है वह क्षणिक होता है, उदा० ज्ञानादि, शब्द भी ऐसा ही है अतः क्षणिक सिद्ध होता है"-यह अनुमान साध्यसिद्धि में समर्थ नहीं, क्योंकि कालात्ययापदिष्ट हेतु से जन्य है। कारण, जैसे एकशाखाप्रभवत्वानुमान का साध्य प्रत्यक्ष से बाधित होता है उसी तरह मानसप्रत्यक्ष माने गये प्रत्यभिज्ञान से शब्दपक्षक अनुमान के कर्म (साध्य) का निर्देश भी बाधित होने के बाद आपने हेतु का प्रयोग किया है / तदुपरांत धर्माऽधर्म भी विभुद्रव्य के ही विशेषगुण है अतः उसमें हेतु रहा और क्षणिकत्व नहीं है इसलिये वह साध्यद्रोही बना। (अस्मदादि० विशेषण से साध्यद्रोह का वारण निरर्थक है यह आगे कहा जायेगा। ) यदि उसका भी पक्ष में अन्तर्भाव करेंगे तो अन्यत्र सभी साध्यद्रोहस्थलों का पक्ष में अन्तर्भाव कर लेने से कोई भी हेतु
SR No.004337
Book TitleSammati Tark Prakaran Part 01
Original Sutra AuthorSiddhasen Divakarsuri
AuthorAbhaydevsuri
PublisherMotisha Lalbaug Jain Trust
Publication Year1984
Total Pages696
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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