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________________ प्रथमखण्ड-का० १-ई० शब्दद्रव्यत्वसाधनम् 543 अथ शब्दे बाधकसद्भावात् तथा तत्परिकल्पनम् न बाणादौ विपर्ययात् / ननु न शब्दकत्वविषयं प्रत्यक्षं तावदस्य बाधकम् , समानविषयत्वेन तस्य तद्बाधकत्वाऽयोगात् / क्षणिकत्वविषयं तु शब्देऽन्यत्र वा विवादगोचरचारीति न तद्बाधकं युक्तम् / न चानुमानं प्रत्यभिज्ञानबाधकम् , प्रत्यभिज्ञानस्य मानसप्रत्यक्षत्वाभ्युपगमात् , तदेव हनुमानस्यैकशाखाप्रभत्वादेर्बाधकमुपलब्धम् , न पुनरनुमानं तस्य / अथ शब्दकत्वग्राहकप्रत्यभिज्ञाप्रत्यक्षस्य तदाभासत्वादनुमानं स्थिरचन्द्रादिग्राहकस्येव देशान्तरप्राप्तिलिंगजनितानुमानवद् बाधकं भविष्यति / कथं पुनरस्य प्रत्यक्षाभासत्वम् ? 'अनुमानेन बाधनाद्' इति चेत् ? अनेनाप्यनुमानस्य बाधनादनुमानाभासत्वं किं न स्यात् ? अथानुमानबाधितविषयत्वाद् नैतदनुमान बाधकम् / अनुमानमप्येतद्बाधितविषयत्वाद् नास्य बाधकमिति प्रसक्तम् / अथ साध्याऽविनाभाविलिंगजनितत्वान्नानुमानमेतबाध्यम् / एकशाखा प्रभवत्वानुमानमपि तामताग्राहिप्रत्यक्षबाध्यं न स्यात् / अथ पक्षे एव व्यभिचाराद् न साध्याविनाभूतहेतुप्रभवत्वमेकशाखाप्रभवत्वानुमानस्य / तत् शब्दक्षणिकत्वानुमानेऽपि समानम् / किन्तु यह बात मान लेने पर यह आपत्ति है कि बाणादि भी पूर्वपूर्व से उत्तर उत्तर क्षण और देश में नये नये सजातीय उत्पन्न हो यावत् लक्ष्य के समीप में उत्पन्न अन्तिम बाण लक्ष्य से सम्बद्ध होता है ऐसा भी क्यों न माना जाय ? और ऐसा तो सभी सक्रिय द्रव्य के लिये माना जा सकेगा, फलतः क्रिया ही नामशेष हो जाने से 'क्रियावाला हो वह द्रव्य' ऐसा द्रव्य का लक्षण भी संगत न हो सकेगा। यदि कहें कि-प्रत्यभिज्ञा से बाणादि में नित्यत्व (स्थायित्व) सिद्ध होने से नये नये की उत्पत्ति वाली कल्पना नहीं करेंगे तो फिर शब्द में ऐसी कल्पना मत कीजिये। वहाँ भी एकत्व ग्राहक 'देवदत्तभाषित शब्द सुनता हूँ' ऐसे आकार की प्रत्यभिज्ञा की उत्पत्ति अबाधितरूप से अनुभवसिद्ध है। ऐसा नहीं कह सकते कि 'यह प्रत्यभिज्ञा तो 'काट देने पर नवजात केश-नखादि' के समान अपर अपर उत्पत्तिमूलक होने वाली एकत्वप्रत्यभिज्ञा से तुल्य है अतः वह प्रमाणभूत नहीं-ऐसा कहेंगे तो बाणादि की प्रत्यभिज्ञा में भी अप्रामाण्य की आपत्ति होगी। [ शब्द में एकत्व की प्रत्यभिज्ञा निर्बाध है ] पूर्वपक्षी:-शब्द में एकत्वग्राहक प्रत्यभिज्ञा का बाधक विद्यमान होने से, जलतरंगन्याय से नयेनये शब्द के उत्पाद की कल्पना ठीक है, बाणादि स्थल में कोई बाधक नहीं है तो नये नये की कल्पना क्यों करे ?- . ___उत्तरपक्षी:-शब्दस्थल में कौन बाधक है ? शब्दकत्वविषयक प्रत्यक्ष तो प्रत्यभिज्ञा का बाधक हो नहीं सकता क्योंकि वह तो प्रत्यभिज्ञा का समान विषयक होने से उसका बाधक बन नहीं सकता। शब्द में क्षणिकत्व का प्रत्यक्ष तो स्वयं ही विवादग्रस्त है अत: उसे एक वप्रत्यभिज्ञा का बाधक मानना अयुक्त है। अनुमान भी उसका बाधक नहीं है, क्योकि प्रत्यभिज्ञा मानसप्रत्यक्षरूप हो वही अनुमान का बाधक बनेगा जैसे कि फल में अपक्वता का प्रत्यक्ष एकशाखाप्रभवत्वहेतूक पक्वता के अनुमान का बाधक होता है / वहाँ अनुमान को प्रत्यक्ष का बाधक नहीं माना जाता। पर्वपक्षी:-शब्द में एकत्वबोधक प्रत्यभिज्ञा प्रत्यक्षाभासरूप होने से अनमान उसका बाधक हो सकेगा, जैसे कि देशान्तरप्राप्तिहेतुक गति अनुमान चन्द्र-सूर्यादि में स्थिरताबोधकप्रत्यक्ष का बाधक होता है।
SR No.004337
Book TitleSammati Tark Prakaran Part 01
Original Sutra AuthorSiddhasen Divakarsuri
AuthorAbhaydevsuri
PublisherMotisha Lalbaug Jain Trust
Publication Year1984
Total Pages696
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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