________________ 540 सम्मतिप्रकरण-नयकाण्ड 1 परमाणूनां च नित्यत्वे सत्यस्मदाधुपलभ्यमानपाकजगुणाधिष्ठानत्वे सत्यपि न विभुत्वमिति व्यभिचारः / परमाणुपाकजगुणानामस्मदाद्यप्रत्यक्षत्वे विवादास्पदं बुद्धिमत्कारणम् , कार्यत्वात् घटा. दिवत्' इत्यत्र प्रयोगे व्याप्तिग्रहणं दुर्लभमासज्येत / तथाहि-कार्यत्वेनाभिमतानां परमाणुपाकजरूपादीनां व्याप्तिज्ञानेनाऽविषयीकरणे बुद्धिमत्कारणत्वेन व्याप्तिसिद्धिर्न स्यात् , तथा चैतैरेव कार्यत्वहेतो यभिचाराशंका स्यात / अथ 'नित्यत्वे सत्यस्मदादिबाद्यन्द्रियोपलभ्यमानगुणाधिष्ठानत्वात' इति हेतुरभिधीयते, तर्हि बाह्य न्द्रियोपलभ्यमानत्वस्य बुद्धावसिद्धेः पुनरपि विशेषणाऽसिद्धो हेतुः प्रसक्तः / साध्यसाधनधर्मविकलश्चाकाशलक्षणः साधर्म्यदृष्टान्तः, नित्यत्वे सत्यस्मदाधुपलभ्यमानगुणाधिष्ठानत्वस्य साधनधर्मस्य, विभुत्वलक्षणसाध्यधर्मस्य तत्राऽसिद्धेः / अथ 'शब्दाधिकरणं द्रव्यं विभु, नित्यत्वे सत्यस्मदाधुपलभ्यमानगुणाधिष्ठानत्वात् आत्मवत्' इत्यत्र हेतोस्तत्र विभुत्वस्य सिद्धेर्न साध्यविकलो दृष्टान्तः / नापि साधनविकलः, अस्मदादिप्रत्यक्षशब्दगुणाधिष्ठानत्वस्य तत्र सिद्धत्वात् / न च शब्दस्यास्मदादिप्रत्यक्षत्वं गुणत्वं वाऽसिद्धम् , श्रोत्रव्यापारेणाध्यक्षबुद्धौ शब्दस्य परिस्फुटरूपतया प्रतिभासनात , निषिध्यमानद्रव्यकर्मत्वे सति सत्तासम्बन्धित्वात् पृथिव्यादिवृत्तिबाधकप्रमाणसद्भावे सति गुणस्याऽश्रितत्वेनाकाशाऽऽश्रितत्वसिद्धेश्च न साधनविकलताप्याकाशस्य। प्रत्यक्ष से पक्षभूतआत्मद्रव्य में व्यापकता का बाध होने पर प्रयुक्त 'अस्मदाद्युपलभ्यमानगुणाधिष्ठानत्व' हेतु कालात्ययापदिष्ट हो जायेगा / और यदि हम लोगों के प्रत्यक्ष का विषय बुद्धि को न माने तो हेतु में वह विशेषण अंश ही असिद्ध रहेगा। [ परमाणुपाकजगुणों में कार्यत्वव्यभिचार की आशंका ] तदुपरांत 'नित्य होते हुए हमलोगों को उपलभ्यमान गुण का अधिष्ठान है' ऐसा हेतु परमाणु में रह जाता है क्योंकि पाकजन्य रूपादि गुण हम लोगों को उपलभ्यमान है और वह परमाणु में रहता है, परमाणु में साध्य विभुत्व नहीं रहता, अतः हेतु साध्यद्रोही हुआ। यदि परमाणु के पाकज गुणों का हमलोगों को प्रत्यक्ष नहीं है ऐसा कहेंगे तो, यह जो प्रयोग है-'विवादास्पद वस्तु बुद्धिमत्कारणपूर्वक है क्योंकि कार्य है, उदा० घटादि'-इसमें व्याप्ति का ग्रह दुष्कर बन जायेगा / जैसे देखिये-परमाणु के पाकजन्य रूपादि में कार्यत्व इष्ट है किन्तु वे यदि व्याप्तिज्ञान के विषय नहीं होंगे तो बुद्धिमत्कारणता के साथ व्याप्ति की सिद्धि नहीं होगी। फलतः, यहाँ ही कार्यत्व हेतु में साध्यद्रोही होने की आशंका उठेगी / अब यदि हेतु में ऐसा संस्कार किया जाय 'नित्य होते हुए हम लोगों को बाह्येन्द्रिय से उपलभ्यमान गुण का अधिष्ठान है'-तो बुद्धि में बाह्येन्द्रिय-उपलभ्यमानत्व असिद्ध होने से हेतु भी विशेषणांश से असिद्ध बन गया। तथा साधर्म्यदृष्टान्तरूप आकाश में A साध्यधर्मशून्यता और B साधनधर्मशून्यत्व प्रसक्त है। चूंकि 'नित्य होते हुए हम लोगों को उपलभ्यमान गुण (शब्द) का अधिठानत्व रूप साधन धर्म, आकाश में हमारे मत से असिद्ध है और विभुत्वरूप साध्य धर्म भी असिद्ध है / [ दृष्टान्त में साध्य-साधनविकलता न होने की शंका ] यदि यह कहा जाय-A शब्द का आश्रय द्रव्य व्यापक है, क्योंकि नित्य होते हुए हम लोगों