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________________ 374 सम्मतिप्रकरण-नयकाण्ड 1 तत्रत् स्यात्-प्रस्त्ययं प्रमातृनियमनिश्चयः, स तु स्वसंततौ किमेककर्तृ कत्वकृतः उतस्विन्निमित्तान्तरकृतो युक्तः ? तच्चैकस्यां सन्ततौ हेतुफलभावलक्षणं प्राक् प्रदर्शितम् / सत्यम् , प्रदशितं न तु साधितम् / तथाहि-तत्कृतः प्रमातृनियमो नान्यकृत इति नैतावत्प्रत्यक्षस्य विषयः, न च प्रमाणान्तरस्यापि / तद्धि अस्मिन् विषये उच्यमानम् अनुमानमुच्येत, तदपि प्रत्यक्षनिषेधानिषिद्धम् / न च क्षणिकत्वव्यवस्थापने हेतु-फलभावकृतो नियम इत्यभ्युपगंतु युक्तम् , तस्योपरिष्टात् निषेत्स्यमानस्वात। न चात एव दोषादेककर्तकत्वकृतोऽपि न नियम इति वक्तु शक्यम्, स्वसंवेदनप्रत्यक्षसिद्धत्वस्य तत्पूर्वकानुमानसिद्धत्वस्य चात्मान प्राग्व्यवस्थितत्वात् / अभ्युपगमवादेन तु क्षणिकत्वव्यवस्थापकसत्त्वहेतुतुल्यत्वमनुसन्धानप्रत्ययहेतोः प्रदर्शितम् , न तु क्षणिकत्ववदात्मैकत्वस्य प्रत्यक्षाऽसिद्धत्वम् येनानुमानात् तत्प्रसिद्धयभ्युपगमे इतरेतराश्रयदोषप्रसंगः प्रेर्येत / अतोऽध्यक्षानुमानप्रमाणसिद्धत्वात परलोकिन: 'परलोकिनोऽभावात् परलोकाभावः' इति सूत्रं निःसारतया व्यवस्थितम् / प्रकार, पहले एककर्तृकत्व का निश्चय न होने पर भी स्वसंतान में प्रमातृनियतत्व के साथ प्रतिसंधान की व्याप्ति का उक्त रीति से निश्चय हो जाने पर बाद में विपक्ष भूत भिन्नकर्तृक अन्यसन्तान से प्रमातृनियतत्वरूप व्यापक की निवृत्ति से व्याप्य प्रतिसन्धान की निवृत्ति को देखकर एककत कत्व के साथ प्रतिसन्धान की व्याप्ति निष्कंटक सिद्ध होती है। यदि उक्त प्रकार से व्याप्तिनिश्चय नहीं मानेंगे तो 'वही मैं हूँ या दूसरा कोई' इस प्रकार प्रमात का निर्णय न होने से किसी प्रमेय का भी निर्णय नहीं हो सकेगा, फलतः सारा जगत अन्ध और मूक हो जायेगा। प्रमेय का निर्णय होने से सभी में अन्धता सिद्ध होगी और निर्णयमूलक प्रतिपादन भी न हो सकने से मूकत्व प्रसक्त होगा। यदि कहें कि-'प्रमातृनियतत्वरूप से प्रतिभासमानविषय औपचारिक होता है, सत्य नहीं, अत: उससे किसी भी प्रकार की व्याप्ति का निश्चय फलित नहीं हो सकता'- तो यहाँ आत्मा के प्रत्यक्ष का ही उच्छेद हो जाने का दोष आयेगा क्योंकि उस प्रत्यक्ष का विषय आप औपचारिक कहते हैं वास्तविक नहीं। [प्रमानियम एककट कत्वमूलक ही सिद्ध होता है ] . पूर्वपक्षीः-प्रमातृनियमपूर्वकत्व के निश्चय का हम इनकार नहीं करते हैं, किन्तु यह सोचना जरूरी है कि वह प्रमातृनियम स्वसंतान में एककर्तृकत्व के प्रभाव से है या अन्य किसी निमित्त के प्रभाव से ? पहले हम इस विषय में दिखा चुके हैं कि एकसंतति में जो प्रमातृ का नियम है वह कारणकार्यभावप्रयुक्त है। उत्तरपक्षी:-ठीक बात है कि आप दिखा चुके है, किंतु उसकी सयुक्तिक सिद्धि तो नहीं की है। देखिये, प्रमातृनियम कारण-कार्यभावमूलक है अन्यमूलक नहीं है यह प्रत्यक्षप्रमाण का विषय तो है नहीं। अन्य प्रमाण का भी विषय नहीं हो सकता, क्योंकि इस विषय में अन्य प्रमाण यदि अनुमानरूप हो तो प्रत्यक्ष के निषेध से ही उसका भी निषेध हो जाता है, कारण, अनुमान प्रत्यक्ष के ऊपर आधारित है। यह नहीं कह सकते कि-'क्षणिकत्व की सिद्धि हो जाने से यह अर्थात् सिद्ध होता है कि प्रमातृनियम कारण-कार्यभावमूलक ही है'-क्योंकि अग्रिम ग्रन्थ में क्षणिकत्व का ही विस्तार से खण्डन किया जाने वाला है।
SR No.004337
Book TitleSammati Tark Prakaran Part 01
Original Sutra AuthorSiddhasen Divakarsuri
AuthorAbhaydevsuri
PublisherMotisha Lalbaug Jain Trust
Publication Year1984
Total Pages696
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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