________________ 306 सम्मतिप्रकरण-नयकाण्ड 1 यदप्युक्तम् सर्वमप्यनुमानमस्मान् प्रति प्रमाणत्वेनासिद्धम्-इत्यादि, तदप्यसंगतम् / यतः किमनुमानमात्रस्याऽप्रामाण्यं भवतः प्रतिपादयितुमभिप्रेतम् 'अनुमानमप्रमाणम्' इत्यादि ग्रन्थेन ? अथ तान्त्रिकलक्षणक्षेपः ? अतीन्द्रियार्थानुमानप्रतिक्षेपो वा ? न तावदनुमानमात्रप्रतिषेधो युक्तः, लोकव्यवहारोच्छेदप्रसंगात् / यतः प्रतीयन्ति कोविदाः कस्यचिदर्थस्य दर्शने नियमतः किञ्चिदर्थान्तरं न तु सर्वस्मात् सर्वस्यावगमः / उक्तं चान्येन-'स्वगृहानिर्गतो भूयो न तदाऽऽगन्तुमर्हति' [ ] / अतः किंचिद् दृष्ट्वा कस्यचिदवगमे निमित्तं कल्पनीयम् / ___तच्च नियतसाहचर्यमविनाभावशब्दवाच्यं नैयायिकादिभिः परिकल्पितम् / तदवगमश्च प्रत्यक्षानुपलम्भसहायमानसप्रत्यक्षतः प्रतीयते। सामान्यद्वारेण प्रतिबन्धावगमाद् देशादिव्यभिचारो न बाधकः, नाऽपि व्यक्त्यानन्त्यम् , उभयत्रापि सामान्यस्यैकत्वात् / सामान्याकृष्टाशेषव्यक्ति प्रतिभानं च मानसे प्रत्यक्षे यथा शतसंख्याऽवच्छेदेन 'शतम्' इति प्रत्यये विशेषणाकृष्टानां पूर्वगृहीतानां शतसंख्याविषयपदार्थानाम् / तथाहि-'एते शतम्' इति प्रत्ययो भवत्येव / सामान्यस्य च सत्त्वमनुगताऽबाधितव्यापार जन्य सविकल्प प्रत्यक्ष को व्याप्तिग्राहक मानते हैं, तो कोई अन्य (मीमांसकादि) वादी सविकल्प मानसप्रत्यक्ष को व्याप्तिग्राहक मानते हैं. अन्य कोई वादी विपक्ष से व्यावृत्ति के ग्रहण में उपयोगी जो ज्ञान होता है उसी ज्ञान को व्याप्ति का ग्राहक दिखाते हैं। एवं अन्य वादी (जैन) के मत में, प्रत्यक्ष और अनुपलम्भ की सहायता से उत्पन्न 'तर्क' संज्ञक प्रमाण जो कि लिंगजन्य नहीं होता और परोक्ष होता है, वही व्याप्तिग्राहक माना जाता है / इस प्रकार जब हम अनुमान को व्याप्तिग्राहक मानते ही नहीं तब अनमान से व्याप्तिग्रह में इतरेतराश्रय-अनवस्था दोषयुगल का प्रसंग परलोकवादी के प्रति कैसे आप (नास्तिक) कर सकते हैं ? , [ अनुमान के अप्रामाण्य कथन के ऊपर तीन विकल्प ] यह जो नास्तिक ने कहा था-हमारे प्रति कोई भी अनुमान प्रमाणरूप से सिद्ध नहीं है.... इत्यादि, वह संबंधशून्य है / कारण, यहां तीन प्रश्न लब्धावकाश है / (1) 'अनुमान अप्रमाण है' इस वचन से नास्तिक का अभिप्राय क्या प्रत्येक अनुमान को अप्रमाण ठहराने में है ? (2) या तान्त्रिकों ने जो उसका लक्षण दिखलाया है उस लक्षण का विरोध अभिप्रेत है ? (३)-या केवल जो अतीन्द्रिय अर्थ दिखाने वाले अनुमान हैं उनका विरोध अभिप्रेत है ? (1) अनुमानमात्र का निषेध करना तो नितान्त अनुचित है कि लोक. में अधिकांश व्यवहार जो अनुमान पर आधारित हैं उनका उच्छेद प्रसक्त होगा। बुद्धिमान लोग किसी एक चीज को देखने पर अवश्यमेव दुसरी कोई चीज का पता लगाते हैं, किन्तु ऐसा नहीं है कि सब / लगाते हैं, किन्तु ऐसा नहीं है कि सब चीजों को यानी जिस किसी चीज को देखकर सब चीजों का यानी जिस किसी चीज का पता लगा लें। कहा भी है 'अपने घर से बाहर गया हुआ नास्तिक वापस बार बार अपने घर नहीं लौट सकेगा।'-ऐसा इसीलिये कहा गया है कि यदि किसी एक चीज को देखने पर तत्संबद्ध अन्य किसी चीज का बोध होता ही न हो तो घर के बाहर उद्यानादि में गये हुए नास्तिक को न घर का बोध रहेगा, न वहाँ जाने के रास्ते का, चूकि वह तभी प्रत्यक्ष का विषय नहीं है / तो इस प्रकार जो एक वस्तु को देखकर अन्य सभी वस्तु का नहीं किन्तु किसी अमुक ही वस्तु का बोध होता है उसका क्या निमित्त है यह ढना पडेगा।