SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 331
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 298 सम्मतिप्रकरण-नयकाण्ड 1 नाप्यनुमानादिकं पर्यनुयोगकारि, अनुमानादेः प्रमाणत्वेनाऽनभ्युपगमात् / अथाऽस्माभिर्यप्यनुमानादिकं न प्रमाणतयाऽभ्युपगम्यते, तथापि परेण तत प्रमाणतयाऽभ्युपगतमिति तत्प्रसिद्धेन तेन परस्य पर्यनुयोगो विधीयते / ननु परस्य तत् प्रमाणतः प्रामाण्याभ्युपगमविषयः, अथाऽप्रमाणतः ? यदि प्रमाणतः तदा भवतोऽपि प्रमाणविषयस्तत् स्यात् / न हि प्रमाणतोऽभ्युपगमः कस्यचिद् भवति कस्यचिन्नेति युक्तम् / अथाऽप्रमाणतोऽनुमानादिकं प्रमाणतयाऽभ्युपगम्यते परेण तदाऽप्रमाणेन न तेन पर्यनुयोगो युक्तः, अप्रमाणस्य परलोकसाधनवत् तत्साधकप्रमाणपर्यनुयोगेऽप्यसामर्थ्यात् / अथ तेन प्रमाणलक्षणाऽपरिज्ञानात् तत्प्रामाण्यमभ्युपगतमिति तत्सिद्धेनैव तेन परलोकादिसाधनाभिमतप्रमाणपर्यनुयोगः क्रियते / नन्वज्ञानात् तत् परस्य प्रमाणत्वेनाभिमतम्, न चाज्ञानादन्यथात्वेनाभिमन्यमानं वस्तु तत्साध्यामर्थक्रियां निर्वतयति, अन्यथा विषत्वेनार्मिन्यमानं महौषधादिकमपि तान् मारयितुकामेन दीयमानं स्वकार्यकरणक्षमं स्यात् / व्याप्ति है' ऐसा सांकेतिक यानी पारिभाषिक व्यवहार नहीं होता है- तो उससे कोई हानि नहीं है, क्योंकि सांकेतिक व्यवहार न होने मात्र से वस्तुस्थिति नहीं बदल जाती / 'प्रत्यक्ष का लक्षण अविसंवादित्व है' यह किस रीति से संभवित है-उसका प्रतिपादन हमने परतःप्रामाण्य को व्यवस्था करते हुए 'सिद्धं' इस पद की व्याख्या में दिखा दिया है अतः उसकी पुनरावृत्ति नहीं करते हैं / निष्कर्ष यह निकला कि नास्तिक के मतानुसार तो प्रत्यक्ष में प्रामाण्यव्यवस्थापक लक्षण की संगति नहीं है / यदि संगति है ऐसा कहें तो अनुमान में भी उसकी संगति निर्बाध होने से उसकी भी प्रमाणरूप में प्रसिद्धि हो जायेगी / फलित यह हुआ कि प्रत्यक्ष प्रमाण पर्यनुयोग करने वाला नहीं है / [ अनुमान से पर्यनुयोग नास्तिक नहीं कर सकता] प्रत्यक्षवत् ही अनुमान से भी नास्तिकमत से पर्यनुयोग संगत नहीं है, क्योंकि वह अनुमानादि को प्रमाण नहीं मानता है। नास्तिक:-हालाँ कि हम अनुमानादि को प्रमाण नहीं मानते हैं, किन्तु दूसरे वादिओं ने तो उसे प्रमाण माना है / तो हम अन्यमत प्रसिद्ध अनुमानादि से दूसरे के प्रति पर्यनुयोग कर सकते हैं / आस्तिकः दूसरे वादी ने जो अनुमान को प्रमाण माना है वह प्रमाण के आधार पर या अप्रमाण के आधार पर ? यदि प्रमाणभूत आधार से उसका प्रामाण्य माना हो तो वह आपके लिये भी प्रमाण का ही विषय हुआ। कारण, अन्य के लिये वह मान्यता प्रामाणिक और आपके लिये आप्रामाणिक हो-यह ठीक नहीं है। यदि दूसरे मत में अप्रमाण के आधार से अनुमान को प्रमाण मान लिया गया हो तब तो वह अप्रमाण ही हुआ, फिर उसकी सहायता से पर्यनुयोग करना मुनासिब नहीं है / कारण, अप्रमाणभूत अनुमान परलोक की सिद्धि में जैसे असमर्थ है वैसे परलोक साधक प्रमाण, [ चाहे जो कुछ हो उस ] के ऊपर पर्यनुयोग करने में भी असमर्थ ही है / नास्तिक:-परवादी को प्रमाण के लक्षण का ज्ञान न होने से उसने अनुमान को प्रमाण मान लिया है, अत एव परमतप्रसिद्ध उस प्रमाण से परलोकादि की सिद्धि में प्रस्तुत किये गये प्रमाण के ऊपर पर्यनुयोग करते हैं। आस्तिकः-अरे ! अन्य वादी ने अज्ञान से उसको प्रमाण मान लिया है, किन्तु अज्ञान से, विपरीतरूप से मानी हुयी वस्तु अपने से साध्य अर्थक्रिया को संपन्न नहीं कर सकती। यदि वैसा
SR No.004337
Book TitleSammati Tark Prakaran Part 01
Original Sutra AuthorSiddhasen Divakarsuri
AuthorAbhaydevsuri
PublisherMotisha Lalbaug Jain Trust
Publication Year1984
Total Pages696
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy