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________________ 29 पृष्ठांक विषयः पृष्ठांकः विषयः 468 नित्य होने मात्र से कार्यत्व की निवृत्ति 513 मुखादि के अभाव में वक्तृत्व की अनुपपत्ति अशक्य 514 देहादि के विरह में ईश्वरसत्ता की प्रसिद्धि 466 विपक्ष में हेतु के अभाव की सिद्धि में अन्यो- | 515 कुम्हारादि में सर्वज्ञत्व की प्रसक्ति न्याश्रय 515 क्षेत्रज्ञ में सर्वज्ञ के अधिष्ठितत्व के अनुमान 499 प्रसिद्ध अनुमानों में विपक्ष में बाधक का की परीक्षा सद्भाव 516 अनवस्थादोष से पूर्वसिद्धि में अप्रामाण्य का 500 हेतु में विशेषविरुद्धता का प्रबल समर्थन ज्ञापन 500 अनीश्वरत्वादि के साथ कार्यत्व का व्यभि- 516 सर्वज्ञ की सिद्धि में प्रागम प्रमाण कैसे ? चार नहीं 517 सत्तामात्र से ईश्वराधिष्ठान की अनुपपत्ति 501 कार्यत्व हेतु में संदिग्धविपक्षव्यावृत्ति और 517 सत्तामात्र से अधिष्ठान में असर्वज्ञता ___ असिद्धि दोष 518 इन्द्रियनिरपेक्ष ज्ञानवत् मुक्ति में सुखादि की 501 गुणत्व की सिद्धि से अनित्यत्व का ध्र व प्रसक्ति व्याघात || 519 धर्म के विरह में सम्यग्ज्ञानादि का प्रभाव 502 विशेषविपर्यय का उद्भावन सार्थक नहीं है 516 अनाप्तकामत्ता से अनीश्वरत्व का पापादन 503 देहधारणादिक्रिया में देहयोग अविनाभावि है| 520 क्रीडा के लिए ईश्वरप्रवृत्ति की बात अनुचित 504 अचेतनव चेतन में भी चेतनाधिष्ठान की | 520 ईश्वर में करुणामूलक प्रवृत्ति असंगत आपत्ति | 521 ईश्वर में कर्मपरतन्त्रता की आपत्ति 504 'अचेतन' विशेषण में नैरर्थक्य की आपत्ति 522 सहकारीसंनिधान से सुखादिकर्तृत्व के ऊपर .505 सकल कार्यों को एक साथ पुनः पुनः उत्पत्ति विकल्प का प्रसंग 523 ईश्वर में स्वभावभेदोपत्ति 506 विपक्षविरोधी विशेषण के विना व्यभिचार 524 शिषिकावहनादि एक कार्य की अनेक से अनिवार्य उपपत्ति / 507 नित्यज्ञान पक्ष में एक साथ जगत्-उत्पत्ति 524 नित्यत्वादिविशेष के विरुद्ध अनुमानों का का प्रसंग औचित्य 507 अविकलकारणत्व हेतु में असिद्धिदोष की | 525 अनित्यत्व हेतु से बुद्धिमदधिष्ठितत्व की पाशंका असिद्धि 506 अविकलकारणत्व हेतु में अनैकान्तिकता 526 अनित्यत्व हेतु में असिद्ध-विरुद्धादि दोषप्रसंग दोष नहीं 527 'उत्तरकाल में प्रबुद्ध' होने की बात प्रसिद्ध है 510 बद्धि के प्राधाररूप में ईश्वर कल्पना निरर्थक ! 527 व्यवहार में ईश्वरोपदेशपूर्वकत्व की प्रसिद्धि 510 बुद्धि में गुणरूपता की सिद्धि कैसे 528 सप्तभुवन में एक व्यक्तिकर्तृ कत्व की अनु५१० ज्ञान से समवेतत्व का निश्चय अशक्य पपत्ति 511 स्व के अग्राही ज्ञान से पर का ग्रहण अशक्य | 529 परस्परातिशयवृत्तित्वहेतुक अनुमान भी 512. प्रसंगसाधन के बाद विपर्ययप्रयोग __सदोष है 512 शरीरसम्बन्धकर्तृत्व का व्यापक | 530 भवविजेताओं का शासन-यह कथन सुस्थित है 513 कारकशक्तिज्ञान स्वरूप कर्तृत्व अनुपपन्न / 530 'ठाणमणोवमसुहमुवगयाणं' पदों की सार्थकता
SR No.004337
Book TitleSammati Tark Prakaran Part 01
Original Sutra AuthorSiddhasen Divakarsuri
AuthorAbhaydevsuri
PublisherMotisha Lalbaug Jain Trust
Publication Year1984
Total Pages696
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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