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________________ 28 पृष्ठांक: विषयः | पृष्ठांक विषयः / 466 कार्यसम जात्युत्तर की आशंका | 483 इन्द्रिय और अदृश्य तत्कालीन अग्नि की 466 कार्यसमत्व की आशंका का प्रत्युत्तर कल्पना में साम्य 467 च्यापक-नित्यबुद्धिवाला एक कर्ता असिद्ध 484 कर्तृ-करणपूर्वकत्व सभी कार्य में सिद्ध नहीं है 467 पक्षधर्मता के बल से विशेष व्यक्ति का सिद्धि | 485 केवल चैतन्यमात्र से वस्तु का अधिष्ठान दुष्कर असंगत 468 विलक्षणव्यक्तिआश्रित बुद्धिमत्कारणत्व 485 कार्य शरीरद्रोही नहीं है सामान्य की सिद्धि अशक्य 486 शरीर के विरह में कार्योत्पादन का असंभव के अतिक्रम की आपत्ति का प्रति 486 शरीर के विरह में प्रयत्न का असंभव कार 469 कार्यत्वसामान्य से कारणविशेष का अनुमान 487 अंकुरादि में कर्ता के अभाव की अनुमान से - मिथ्या है ___.. सिद्धि 470 शरीर के विना कर्ता को मानने में दृष्ट 488 व्यतिरेकानुसरण की उपलब्धि की आवव्यतिक्रम श्यकता 488 व्यापार के व्यतिरेकानुसरण की अनुपलब्धि 471 शरीरसम्बन्ध के विना कर्तृत्व की अनुपपत्ति 486 समवाय सर्वदा सर्वत्र होने पर भी अनुपपत्ति 472 पूर्वपक्षी कथित बातों का क्रमशः निराकरण 460 ईश्वरज्ञानादि को अनित्य मानने पर व्यति४७३ व्युत्पन्न को भी संस्थानादि से बुद्धिमत्कारण अनुमान नहीं होता . रेकानुपलब्धि 473 केवलमि-धर्मभाव से साध्यसिद्धि अशक्य | 490 सहकारिकारणजन्य ईश्वरज्ञान मानने पर . आपत्ति 474 साधर्म्यमात्र से कर्ता का अनुमान दुःशक्य 461 सहकारिवर्ग और ईश्वरज्ञान को एक सामग्री 475 कार्यत्व केवल कारणत्व का ही ब्याप्य है 475 बद्धिमत्कारणविशेष की उपलब्धि निर्मूल है जन्यता में आपत्ति 492 ईश्वरज्ञानादि को सहकारि हेतु सहोत्पन्न 476 संयोग की तरह विभाग भी असिद्ध है। 477 सभी कार्य कर्तृ पूर्वक नहीं होते यह ठीक मानने में प्रापत्ति 493 बुद्धिमत्कारणानुमान व्यापकानुपलब्धि का 477 धर्माधर्म की कारणता सलामत है अबाधक 493 लोहलेख्यत्वानुमान से प्रत्यक्ष का बाध क्यों 478 सकल उपादानादि के ज्ञातारूप में ईश्वर प्रसिद्ध . नहीं ? 464 भावी बाधकानुपलम्भ का निश्चय अशक्य 479 शरीर के विना कर्तृत्व को अनुपपत्ति से हेतु साध्यद्रोही 465 बुद्धिमत्कारणानुमान में विपक्ष में बाधक का 480 ईश्वर का शरीर अदृश्य होने की बात प्रभाव ___ असंगत 465 विषय का अविसंवाद प्रामाण्य का मूल 480 ईश्वर के अनेक शरीर की कल्पना प्रयुक्त 496 व्यापकानुपलब्धि में पक्षधर्मत्वादि का 481 इन्द्रिय से उत्पन्न ज्ञान सम्पूर्ण हो नहीं सकता अभाव नहीं 482 ऐन्द्रियक ज्ञान सर्वविषयक न होने में युक्ति | 496 व्यापकानुपलब्धि हेतु में साध्य के अन्वयादि 482 अंकुरादि दृश्यशरीरसम्बद्ध पुरुष से ही होने की सिद्धि की आपत्ति / 497 परमाणु आदि से कार्यत्व की निवृत्ति प्रसिद्ध
SR No.004337
Book TitleSammati Tark Prakaran Part 01
Original Sutra AuthorSiddhasen Divakarsuri
AuthorAbhaydevsuri
PublisherMotisha Lalbaug Jain Trust
Publication Year1984
Total Pages696
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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