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________________ प्रथमखण्ड-का० १-सर्वज्ञसिद्धिः 237 कि च, यथा देश-कालादिकमन्तरेण धमस्यानुत्पत्तेस्तदपेक्षा प्रतीयते तथाऽग्निमन्तरेणापि धूमस्यानुत्पत्तिदर्शनात् तदपेक्षा केन वार्यते ? तदपेक्षा च तत्कार्यतैव / यथा चाऽदृश्यभावे एव धूमस्य भावात् तज्जन्यत्वमिष्यते तथा सर्वदाऽग्निभावे एव धूमस्य भावदर्शनात तज्जन्यता कि नेष्यते ? यावतां च सन्निधाने भावो दृश्यते तावतां हेतुत्वं सर्वेषामित्यन्यादिसामग्रीजन्यत्वात् धूमस्य कुतोऽग्निव्यभिचारः ? न चायं प्रकारोऽसर्वज्ञत्व-वक्तृत्वयोः संभवति, असर्वज्ञत्वधर्मानुविधानस्य वचनेऽदर्शनात् / तथाहि-यदि सर्वज्ञत्वादन्यत् पर्युदासवृत्त्या किंचिज्जत्वमसर्वज्ञत्वमुच्यते तदा तद्धर्मानुविधानाऽदर्शनान्न तज्जन्यता वचनस्य / न हि किंचिज्जत्वतरतमभावात् वचनस्य तरतमभाव उपलभ्यते / तथा हि-किंचिज्ज्ञत्वं प्रकृष्टमत्यल्पविज्ञानेषु कृम्यादिषु, न च तेषु वचनप्रवृत्तेरुत्कर्ष उपलभ्यते / अथ प्रसज्यप्रतिषेधवृत्त्या सर्वज्ञत्वाभावोऽसर्वज्ञत्वं तत्कार्य तु वचनं, तदा ज्ञानरहिते मृतशरीरे तस्योपलम्भः स्यात् , न च कदाचनापि तत् तत्रोपलभ्यते / वहाँ प्रतीत होने वाला अग्नि बेचारा ऐसे ही काकतालीयन्याय से वहां आ बैठता है। अब यह तर्क किया जाय कि-"अदृश्य पदार्थ का स्वभाव ही ऐसा है कि अग्निसंनिधि में ही धूम उत्पन्न करता हैहम उसमें क्या करें ?"-तो आपको यह दिखाना चाहिये कि जब अग्नि का उस अदृश्य पदार्थ पर कोई प्रभाव नहीं है, तो अग्निसंनिधान के पहले या बाद में भी धूम को वह क्यों उत्पन्न नहीं कर देता ? अन्य काल में उत्पन्न नहीं करता है इससे अग्निजन्य जो धूमस्वभाव अर्थात् धूमस्वभावजनक जो अग्नि उसकी अपेक्षा से ही धूमोत्पादन करने पर तो परम्परा से भी आखिर यही फलित हुआ कि अग्नि धम को उत्पन्न करता है। [धृम में अग्निजन्यत्व का समर्थन ] यह भी सोचिये कि जब देश-कालदि के विना धूम की उत्पत्ति न होने से देशकाल की अपेक्षा प्रतीत होती है यानी मान्य है, तो फिर अग्नि के विना धूम की उत्पत्ति न होने का देखा जाता है तो अग्नि की भी धूमोत्पत्ति में अपेक्षा का निवारण कौन कर सकेगा? जैसे अदृश्य भाव के होने पर ही धूम का सद्भाव होने से आपको धूम में अदृश्यभावजन्यत्व इष्ट है तो सदैव अग्नि होने पर ही धूम के सद्भाव को देखने से धूम को अग्निजन्य भी क्यों नहीं मानते ? तथा कभी कभी अग्नि होने पर भी धूम नहीं होत है तो इतने मात्र से धम को अग्निव्यभिचारी नहीं कहा जाता क्योंकि केवल अकेला अग्नि धूम का हेतु नहीं है किन्तु आई इन्धन आदि जितने कारण के होने पर धमोत्पत्ति होती है वे सब धम के हेतु हैं / तात्पर्य अग्निविशिष्ट सामग्री धूम का हेतु होने से अकेला अग्नि म उत्पन्न न करे तो कोई दोष नहीं है / जैसे धूम और अग्नि में प्रत्यक्ष-अनुपलम्भ से हमने कार्यकारणभाव सिद्ध किया उसी प्रकार असर्वज्ञत्व और वक्तृत्व के बीच कारण कार्य-भाव सिद्धि की आशा नहीं की जा सकती क्योंकि वचन में असर्वज्ञत्वरूप कारण के जो कार्य दृष्ट है उनके धर्मोका अनुविधान नहीं दिखाई देता। .. [ असर्वज्ञता का वक्तृत्व के साथ संबंध असिद्ध ] असर्वज्ञत्व और वक्तृत्व के बीच कारणकार्यभाव सिद्धि शक्य नहीं है, वह इस प्रकार-असर्वज्ञत्व शब्द में जो नत्र प्रयोग है वह पर्युदास अतिषेधवाचक मान कर असर्वज्ञत्व का किंचिज्ज्ञता यानी अल्पज्ञता अर्थ किया जाय तो अल्पज्ञता के धर्म का अनुविधान वचन में न दिखाई देने से वचन को अल्पज्ञताजन्य नहीं कहा जा सकता / यदि यहाँ अनुविधान होता तब तो अल्पज्ञता में जैसे तरतमभाव
SR No.004337
Book TitleSammati Tark Prakaran Part 01
Original Sutra AuthorSiddhasen Divakarsuri
AuthorAbhaydevsuri
PublisherMotisha Lalbaug Jain Trust
Publication Year1984
Total Pages696
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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