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________________ 208 सम्मतिप्रकरण-नयकाण्ड-१ ग्राहकत्वेनाऽप्रवृत्तेः, अनुपलम्भस्यापि तद्विविक्तप्रदेशविषयप्रत्यक्षस्वभावस्यात्र वस्तुनि व्यापाराऽसम्भवाद् न कार्यकारणभावलक्षणः प्रतिबन्धः प्रत्यक्षानुपलम्भसाधनः स्यात् / . नाप्यनुमानतोऽपि प्रकृतः प्रतिबन्ध: सिद्धिमासादयति, इतरेतराश्रयाऽनवस्थादोषप्रसंगस्य प्रदाशतत्वात् ।न चाऽन्यत प्रतिबन्धप्रसाधकं प्रमाणमस्तीति प्रसिद्धानुमानस्यापि सर्वज्ञाऽभावाऽऽवेदकानुमाननिरासयुक्त्युपक्षेपमिच्छतोऽत्राभावः प्रसक्तः / अथ प्रसिद्धानुमाने साध्य-साधनयोः प्रतिबन्धः तत्प्रसाधकं च प्रमाणं किंचिदस्ति तहि स एव प्रतिबन्धः किंचिज्ज्ञत्व-वक्तृत्वयोः, तत्प्रसाधकं च तदेव प्रमाणं भविष्यतीति सिद्धः प्रतिबंधः किचिज्ज्ञत्व-वक्तृत्वयोरग्निधूमयोरिव / अत एव 'व्याप्याभ्युपगमो व्यापकाभ्युपगमनान्तरीयको यत्र दर्श्यते तत् प्रसंगसाधनम्' इति तल्लक्षणस्य युष्मदभ्युपगमेनात्र सद्धावाद भवत्येवातोऽनमानात सर्वज्ञाभावसिद्धिः। पक्षधर्मताऽभावप्रतिपादनं च यत प्रकृतप्रसंगसाधने प्रतिपादितं तद अभ्युपगमवादानिरस्तम् / तत्र पक्षधर्मताया हेतो [ असर्वज्ञ और भाषाव्यवहार के प्रतिबन्ध की सिद्धि ] वह इस प्रकार-सर्वज्ञ अथवा वीतराग से यदि भाषोत्पत्ति होती तो वह असर्वज्ञ अथवा रागादिमान पूरुष से कभी भी नहीं होती। अकारणीभूत वस्तु से कभी भी क यहाँ असर्वज्ञादि से भाषा उत्पत्ति होती है, अत एव भाषा या तत्सदृश वस्तु सर्वज्ञ-वीतराग से उत्पन्न होने का सम्भव ही नहीं है / इस प्रकार असर्वज्ञ और वक्तृत्व का व्याप्तिसंबन्ध सिद्ध होता है / यदि यह कहा जाय कि-'देशान्तर और कालान्तर से भाषा असर्वज्ञ का ही कार्य होती है, सर्वज्ञकार्य नहीं होती ऐसा उपलम्भ दर्शनाऽदर्शनप्रमाण से तो नहीं होता, क्यों कि दर्शन का व्यापार इतना समर्थ होने का सम्भव नहीं है और अदर्शन इस प्रकार के उपलम्भ के हेतुरूप में पहले निषिद्ध हो चुका है ।'-तो यह अन्यत्र भी कहा जा सकता है कि धूम हमेशा अग्नि से ही उत्पन्न होता हैअग्नि बिना कभी उत्पन्न नहीं होता, ऐसा उपलम्भ करने में प्रत्यक्ष की प्रवृत्ति शक्य नहीं है क्योंकि वह केवल संनिहित वर्तमान अर्थ का ही ग्राहक होता है। अनुपलभ्भ भी जो वस्तु शून्य प्रदेश को प्रत्यक्ष करने का स्वभाव वाला होता है अत:-प्रस्तुत विषय में उसका व्यापार सम्भव नहीं है। इसलिये यह फलित होता है-धूम और अग्नि का कार्यकारणभावरूप संबन्ध के ग्रहण में प्रत्यक्षानुपलम्भ साधनभूत नहीं है। [प्रसिद्ध धूमहेतुक अनुमान के अभाव की आपत्ति ] अनुमान से भी धूम का अग्नि के साथ संबंध सिद्धि पद प्राप्त नहीं है क्योंकि प्रस्तुतानुमानप्रयोजक व्याप्ति का ग्रहण यदि पूर्वानुमान से मानेंगे तो अन्योन्याश्रय और नये अनुमान से मानसे तो अनवस्था दोष लगेगा यह पहले ही बताया है / और तो कोई व्याप्तिसाधक प्रमाण है नहीं, फलत: सर्वज्ञाभाव साधक अनुमान के खंडनार्थ युक्ति का उपन्यास करने की वांछा वाले के मत में प्रसिद्ध धूमहेतुक अग्नि अनुमान के भी उच्छेद की आपत्ति प्रसक्त हयी। यदि कहें कि-'प्रसिद्ध अग्नि-अनुमान में तो धूम और अग्नि का प्रतिबन्ध व्याप्ति संबंध, एवं उसका साधक कोई प्रमाण, दोनों मौजूद है तो वही अल्पज्ञता और वक्तृत्व का भी प्रति जायेगा और वह प्रमाण यहां भी प्रतिबन्ध का साधक हो सकेगा। तात्पर्य, जैसे धूम और अग्नि का प्रतिबन्ध सिद्ध है वैसे अल्पज्ञता और वक्तृत्व का भी प्रतिबन्ध सिद्ध हो सकता है।
SR No.004337
Book TitleSammati Tark Prakaran Part 01
Original Sutra AuthorSiddhasen Divakarsuri
AuthorAbhaydevsuri
PublisherMotisha Lalbaug Jain Trust
Publication Year1984
Total Pages696
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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