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________________ 184 सम्मतिप्रकरण-नयकाण्ड 1 विषयग्राहकानेकप्रत्यय प्रत्यक्षत्वेन व्याप्तस्याग्न्यादिदृष्टान्तर्मिणि प्रमेयत्वलक्षणस्य हेतोरुपलम्भाद् हेतुविरुद्धत्व-साध्यविकलदृष्टान्तदोषद्वयाध्रातत्वात् / अथ द्वितीयः, सोऽप्यसंगतः, सिद्धसाध्यतादोषप्रसंगात्। तथा, प्रमेयत्वमपि हेतुत्वेनोपन्यस्यमानं 1. किमशेषज्ञेयव्यापिप्रमाणप्रमेयत्वव्यक्तिलक्षणमभ्युपगम्यते 2. उत अस्मदादिप्रमाणप्रमेयत्वव्यक्तिस्वरूपम्, 3. पाहोस्विद उभयव्यक्तिसाधारणसामान्यस्वभावम् ? इति विकल्पाः। तत्र यदि 1. प्रथमः पक्षः, स न युक्तः, विवादाध्यासितपदार्थेषु तथाभूतप्रमाणप्रमेयत्वस्याऽसिद्धत्वात् , सिद्धत्वे वा साध्यस्यपि हेतुवत् सिद्धत्वाद् व्यर्थ हेतूपादानम् , तथाभूतप्रमाणप्रमेयत्वस्य दृष्टान्तेऽग्न्यादिलक्षणेऽसिद्धेः संदिग्धान्वयश्च हेतुः स्यात् / 2. अथास्मदादिप्रमाणप्रमेयत्वं हेतुस्तदा तथाभूतप्रमाणप्रमेयत्वस्य विवादगोचरेष्वतीन्द्रियेष्वसम्भवादसिद्धो हेतुः, सिद्धौ वा ततस्तथाभूतप्रत्यक्षत्वसिद्धिरेव स्यात, तत्र चाऽविवाद इति न हेतूपन्यासः सफलः / 3. अथोभयप्रमेयत्वव्यक्तिसाधारणं प्रमेयत्वसामान्यं हेतुरिति पक्षः, सोऽप्यसंगतः, अत्यन्तविलक्षणातीन्द्रिय-इन्द्रियविषयप्रमाणप्रमेयत्वव्यक्तिद्वयसाधारणस्य सामान्यस्याऽसम्भवात, न हि शाबलेय-कर्कव्यक्तिद्वयसाधारणमेकं गोत्वसामान्यमुपलब्धमिति प्रमेयत्वसामान्यलक्षणो हेतुरसिद्ध इति नानुमानादपि सर्वज्ञसिद्धिः / [ सर्वपदार्थ में ज्ञानप्रत्यक्षत्वसाध्यक अनुमान का निराकरण ] सर्वज्ञसिद्धि के लिये यह अनुमान लगाया जाय कि-सम्पूर्ण पदार्थ किसी पुरुष को प्रत्यक्ष हैं क्योंकि वे प्रमेय हैं जैसे अग्नि आदि- इस प्रकार सर्वज्ञ साधक हेतु का सद्भाव दिखाया जाय तो वह भी अनुचित है क्योंकि यहाँ दो कल्पना प्राप्तावकाश है-१-सर्व पदार्थ में समस्तज्ञेयसाक्षात्कारी एक ज्ञान की प्रत्यक्षता साध्यतया अभिप्रेत है ? या २-प्रतिनियत तद् तद् विषय को साक्षात् करने वाले भिन्न-भिन्न अनेक ज्ञान की प्रत्यक्षता सर्व पदार्थों में अभिमत है ? इन दो में से यदि आद्य पक्ष का स्वीकार करें तो वह युक्त नहीं है क्योंकि प्रमेयत्व हेतु सकलपदार्थ साक्षात्कारिएकज्ञानप्रत्यक्षता का व्याप्य नहीं देखा गया बल्कि अग्नि आदि दृष्टान्त धर्मी में उससे विपरीत यह देखा गया है कि प्रमेयत्व हेतु तो प्रतिनियत तद् तद् रूपादिविषयग्राहक भिन्न भिन्न अनेक ज्ञानप्रत्यक्षता का ही व्याप्य है / फलतः हेतु विरोधी साध्य का साधक होने के कारण हेतु में यहाँ विरुद्धत्व दोष लगेगा और अग्नि आदि दृष्टान्त में प्रस्तुत साध्य न रहने से साध्यवैकल्य दोष आयेगा / यदि दूसरे विकल्प में, सर्व पदार्थों में प्रतिनियत तद् तद् विषय ग्रहण करने वाले अनेक ज्ञान की प्रत्यक्षता को साध्य माना जाय तो यह मीमांसक को इष्ट होने से सिद्धसाध्यता दोष लगेगा, अत: वह दूसरा विकल्प भी असंगत है। [प्रमेयत्व हेतु का तीन विकल्प से विघटन ] सर्वज्ञसिद्धि के लिये उपन्यस्त अनुमान में जो प्रमेयत्व हेतु कहा गया है उसके उपर संभवित वकल्प हैं। प्रमेयत्व का अर्थ है प्रमाणविषयत्व. तो यहाँ प्रमाण शब्द का क्या अर्थ समझना? क्या 1. सकल ज्ञेय वस्तु का व्यापक यानी ग्राहक ऐसा कोई अतीन्द्रियअर्थग्राहीप्रमाण अभिप्रेत है? 2. अथवा हम आदि को जो प्रमाणज्ञान होता है वह अभिप्रेत है ? 3. या उक्त उभय विकल्प साधारण सामान्य प्रमाण अभिमत है ? इन तीन में से किस प्रकार के प्रमाण से निरूपित प्रमेयत्व को आप हेतु करते हैं ?
SR No.004337
Book TitleSammati Tark Prakaran Part 01
Original Sutra AuthorSiddhasen Divakarsuri
AuthorAbhaydevsuri
PublisherMotisha Lalbaug Jain Trust
Publication Year1984
Total Pages696
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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