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________________ प्रथमखण्ड-का० १-वेदापौरुषेयविमशः 137 अथ तथाभूतस्यैवातीतस्यानागतस्य वा कालस्य तद्रहितत्वं साध्यते / न च सिद्धसाध्यता, अन्यथाभूतस्य कालस्याभावात् / न. 'अन्यथाभूतः कालो नास्ति' इति कुतः प्रमाणादवगतम् ? यद्यन्यतः तत एवापौरुषेयत्वसिद्धिः, किमनेन ? 'अतोऽनुमानात्' चेत् ? न, 'अन्यथाभूतकालाभावात् प्रतोऽनुमानात् तद्रहितत्वसिद्धिस्तत्सिद्धेस्तसिद्धिः' इतीतरेतराश्रयदोषप्रसंगात् / तदेवमन्यथाभूतकालस्याभावाऽसिद्धस्तथाभूतस्य तद्रहितत्वसाधने सिद्धसाधनमिति / नापि शब्दात्तत्सिद्धिः, इतरेतराश्रयदोषप्रसंगः [ ? गात, ] तदेवमन्यथा कथं वेदवचनमस्तिक [? न चैवं वेदवचनम प विधिवाक्यादपरस्य भवद्भिः प्रामाण्यमभ्युपगम्यते / अभ्युपगमे वा पौरुषेयत्वमेव स्यात् / तथाहि तत्प्रतिपादकानि वेदवचांसि श्रूयन्ते-"हिरण्यगर्भः समवर्त्तताग्ने" नैयायिक मधरादि में जब ईश्वर कर्तत्व सिद्ध करना चाहता है तब उसको यह कहा जाता है कि संनिवेश हेतु सकल भूधरादि में बुद्धिमत्कारपूर्वकत्व का ज्ञापक नहीं है, किन्तु नये किये गये कूपप्रासादादि में जैसे 'यह किसी का बनाया हुआ है' यह बुद्धि होती है इस प्रकार की कृतबुद्धि जिस जीर्णकूपादि में हो उसी में बुद्धिमत्पूर्वकत्व के साथ संनिवेश की व्याक्ति होने से जीर्णकूपादि में ही कर्तृत्व की सिद्धि होती है, भूधरादि में तथाप्रकार की कृतबुद्धि का उदय न होने से, संनिवेश हेतु तथा प्रकार के बुद्धिमत्कारणपूर्वकत्व के साथ व्याप्त न होने से भूधरादि में बुद्धिमत्कारणपूर्वकत्व की सिद्धि नहीं होती। अब यदि वेदकारणाऽसमर्थपुरुषयक्त काल से विपरीत काल में भी कालत्व हेतु पुरुषाभाव का साधक होगा तो कृतबुद्धि जहाँ नहीं होती ऐसे भूधरादि में अव्याप्त भी संनिवेशादि को सिद्ध कर देगा / भूधरादि में बुद्धिमत्कारणपूर्वकत्व सिद्ध होने पर तो जगत्कर्ता और अखिल विश्वज्ञाता ईश्वर सिद्ध हो जाने पर वेदकरणसमर्थपुरुषयुक्त कालरूप भावी की सिद्धि हो जाने से अर्थात् वेदकर्ता पुरुष ईश्वर सिद्ध हो जाने से मीमांसकों का वेद में अपौरुषेयत्व सिद्ध करने का प्रयास अतीव=अत्यंत अवसर अनुचित हो जायगा। [ अन्यथा भूतकाल का असम्भव सिद्ध नहीं है ] अपौरुषेयवादी:- वेदकरणासमर्थपुरुष विशिष्ट अतीत और अनागत काल में ही हम अपौरुषेयत्व वेद में सिद्ध करते हैं। इसमें जो सिद्धसाध्यता दोष बतलाया, वह ठीक नहीं है, क्योंकि उससे विपरीत काल की संभावना कर के आप सिद्ध साध्यता कहते हैं किंतु उससे विपरीत काल ही नहीं है / उत्तरपक्षोः-'उससे विपरीत काल नहीं है / यह आपने किस प्रमाण से जान लिया ? अगर प्रस्तुतानुमान से भिन्न किसी प्रमाण से आपने यह जाना है तो उसी प्रमाण से वेद में अतीतानागत काल में अपौरुषेयत्व सिद्ध हो जायगा, तो प्रस्तुत अनुमान का क्या प्रयोजन ? यदि कहें कि 'प्रस्तुत अनुमान से ही 'उस से विपरीत काल के अभाव का पता लगाया'- तो यह असंगत है क्योंकि उससे विपरीत काल का अभाव सिद्ध होने पर प्रस्तुत अनुमान से अतीतादिकाल में पुरुषरहितत्व सिद्ध होगा और पुरुषरहितत्व सिद्ध होने पर 'उससे विपरीत काल का अभाव' सिद्ध होगा-इस प्रकार अन्योन्याश्रय दोष लगेगा। तो इस प्रकार वेदकरणासमर्थपुरुष विशिष्ट अतीतादि काल से विपरीत * एतद्विषये प्रमेयकमलमार्तडे "न चाऽपौरुषेयत्वप्रतिपादक वेदवाक्यमस्ति, नापि विधिवाक्यादपरस्य परैः प्रामा___ण्य मिष्यते' [ पृ.३६६ पंक्ति 15-16 ] इति पाठः /
SR No.004337
Book TitleSammati Tark Prakaran Part 01
Original Sutra AuthorSiddhasen Divakarsuri
AuthorAbhaydevsuri
PublisherMotisha Lalbaug Jain Trust
Publication Year1984
Total Pages696
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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