________________ प्रथम खण्ड-का० १-स्मृतिप्रमोषः 123 श्यात् शुक्तिप्रतिभासे रजतस्मरणम् / न, तस्य विद्यमानत्वेऽप्यकिंचित्करत्वात् / यदा ह्यसाधारणधर्माध्यासितं शुक्तिस्वरूपं प्रतिभाति तदा कथं सदृशवस्तुस्मरणम् ? अन्यथा सर्वत्र स्यात् ? सामान्यमात्रग्रहणे हि तत् कदाचिद् भवेदपि, नाऽसाधारणस्वरूपप्रतिभासे / तन्न 'इदम्' इत्यत्र शुक्तिकाशकलस्य प्रतिभासनात् तथा व्यपदेशः। ____संनिहितत्वेनाऽप्रतिभासमानस्यापि तद्विषयत्वाभ्युपगमे इन्द्रियसम्बद्धानां तद्देशत्तिनामण्वादीनामपि प्रतिभासः स्यात् / न चाऽप्रतिभासमानानामिन्द्रियादीनामिव प्रतीतिजनकानामपि तद्विषयता संगच्छते / तन्न 'इदं' इत्यत्र शुक्तिकाशकलप्रतिभासः, नापि 'रजतम्' इत्यत्र स्मृतित्वेऽपि तस्याः स्वरूपेणानवगमात् 'प्रमोषः' इत्यभ्युपगमो युक्तः / [शुक्ति प्रतिभासमान होने पर स्मृतिप्रमोष दुर्घट है] (1) प्रतिभासमान होने से यदि सीप का वेदन मानते हैं तो उससे रजतस्मृति का प्रमोष मानने की जरूर ही नहीं है। यदि उस वक्त रजत के स्मरण का सम्भव होता तब तो स्मृति का प्रमोष मानना जरूरी था किन्तु उस वक्त रजतस्मरण की कोई संभावना ही नहीं है जबकि अपने में रहे हुये धर्म से संवलित सीप का टुकड़ा ही भास रहा है। ऐसी संभावना भी नहीं कि जाती कि घट का ज्ञान हो रहा हो उस वक्त पट का स्मरण होवे / प्रमोषवादी:-सीप और रजत में इतना साम्य है कि एक सीप का प्रतिभास होने पर रजत का स्मरण हो आता है / . उत्तरपक्षी:-यह हम नहीं मानते, क्योंकि साम्य होने पर भी वह अकिंचित्कर होने से रजतस्मरण का संभव नहीं है / क्योंकि आपके मत में तो 'इदं' रूप से जब असाधारणधर्मविशिष्ट सीप का स्वरूप ही भासता है तो वहाँ सदृश वस्त के स्मरण की संभावना कैसे की जाय? अन्यथा हर चीज के वेदन करते समय उनके सदृश वस्तुओं का स्मरण होता ही रहेगा जो किसी को इष्ट या मान्य नहीं है। हाँ ! यदि सीप का वेदन विशिष्टरूप से न मान कर केवल सामान्यरूप से माना जाय तब तो सदृशवस्तु के स्मरण की संभावना ठीक है। किन्तु जब आप उसका असाधारणरूप से ही 'इदं' इस प्रकार प्रतिभास मानते हैं तो सदृशवस्तु के स्मरण की संभावना नहीं हो सकती। अतः 'इदम्' इस रूप से सीप खण्ड का प्रतिभास होता है इसलिये 'रजतम्' इस अंश में स्मृति प्रमोष का व्यपदेश और मूर्छा में 'इदं' प्रतिभास न होने से स्मृति प्रमोष नहीं होता यह कथन उचित नहीं है। [सीप का प्रतिभास और रजत का स्मृतिप्रमोष अयुक्त है] (2) यदि कहें कि प्रतिभासमान होने से नहीं किंतु वहाँ सीपखण्ड संनिहित होने से ही 'इदं' इस ज्ञान को सीपखण्डविषयक मानते हैं तो संनिहित होने के कारण उस देश में विद्यमान और इन्द्रिय से संबद्ध ऐसे अणु-धूलीकण आदि का भी प्रतिभास हो जायेगा। सच बात यह है कि जो प्रतिभासमान नहीं होता बह प्रतीति का जनक होने पर भी उसमें प्रतीतिविषयता मानना संगत नहीं है जैसे इन्द्रियादि / इन्द्रियादि प्रतीति के कारण है फिर भी उसका प्रतिभास ज्ञान में न होने से ज्ञान को तद्विषयक नहीं मानते हैं। उपरोक्त कथन का सार यह है कि-'इदं' इस रूप में सीपखण्ड का प्रतिभास होता है और 'रजतम्' इस अंश में स्मरण होने पर भी स्मृति का स्वकीयरूप से बोध न होने से स्मृति अंश में 'प्रमोष' होता है-यह आपकी मान्यता युक्त नहीं है /