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________________ 100 सम्मतिप्रकरण-नयकाण्ड 1 अथान्यवस्तुविषयविज्ञानस्वरूपमभावाख्यं प्रमाणं व्यतिरेकनिश्चयनिमित्तमिति पक्षः, सोऽपि न युक्तः विकल्पानुपपत्तेः / तथाहि-कि तत् साध्यनियतसाधनस्वरूपादन्यद् वस्तु यद्विषयं ज्ञानं तदन्यज्ञानमित्युच्यते ? यदि यथोक्तसाधनस्वरूपव्यतिरिक्तं पदार्थान्तरं तदा वक्तव्यम्-तद् एकज्ञानसंसर्गि साधनेन सह उतान्यथा? इति / यदि यथोक्तसाधनेनैकज्ञानसंगि तदा तद्विषयज्ञानात सिध्यति यथोक्तसाधनस्याभावनिश्चयः प्रतिनियतविषयः, कित 'यत्र यत्र साध्याभावस्तत्र तत्रावश्यंतया साधनस्याप्य- . भावः' इत्येवंभूतो व्यतिरेकनिश्चयो न ततः सिध्यति सर्वोपसंहारेण साधनाभावनियतसाध्याभावनिश्चयश्च हेतोः साध्यनियतत्वलक्षणनियमनिश्चायक इति नेकज्ञानसंसर्गिपदार्थान्तरोपलम्भादभावाख्यात प्रमाणाद् व्यतिरेकनिश्चयः / दूसरा विकल्प-उस विषय से अन्य वस्तु का ज्ञान हआ-इसको अभाव प्रमाण कहना है ? इन दो विकल्प से अतिरिक्त तीसरी कोई संभावना अभावप्रमाण में शक्य नहीं / कहा भी है- . “प्रत्यक्षादि अर्थापत्तिपर्यन्त पांच प्रमाण की किसी विषय में अनुत्पत्ति यह अभावप्रमाण का लक्षण है-यह अनुत्पत्ति विवक्षित विषय के ज्ञानरूप में आत्मा के अपरिणामरूप हो सकती है या तो उस विषय से अन्य किसी विषय के ज्ञानरूप हो सकती है / " [ श्लो० वा० 5-11 ] __इन दो विकल्प में से प्रथम विकल्प का अंगीकार करके यह कहा जाय कि-निषेध्यविषय स्पी पांच प्रमाण रूप में आत्मा का अपरिणामरूप अभावप्रमाण, साधनाभाव व्याप्यभूत साध्याभाव यानी 'जहाँ साध्याभाव है वहाँ साधनाभाव है' इस प्रकार के व्यतिरेक के निश्चय का निमित्त होगा।-तो यह यक्त नहीं है, कारण, समद्र जल का जो पल परिमाण है उसमें अभावप्रमाण का चार है। तात्पर द्र के जल का परिमाण कितने पल हैं यह हम प्रत्यक्षादि-अर्थापत्ति पर्यन्त प्रमाणों से जानते नहीं है क्योंकि उसकी संख्या विशाल है, इसलिये प्रत्यक्षादि पांचों प्रमाण से वह अगोचर है, किन्तु 'वह है ही नहीं' यह तो हम नहीं कह सकते अर्थात् वहां अभाव प्रमाण की प्रवृत्ति मानी नहीं जाती। [ अन्यवस्तुज्ञान से व्यतिरेक निश्चय का असंभव ] यदि दूसरे विकल्प के अंगीकार में यह कहा जाय कि जिस वस्तु का निषेध करना है उससे अन्य वस्तु का ज्ञानरूप अभाव प्रमाण व्यतिरेक निश्चय का निमित्त बनेगा-तो यह पक्ष भी युक्तिसंगत नहीं है, क्योंकि यहां जो आगे दो विकल्प दिखायेंगे उनमें से एक भी घटता नहीं है। पहा जिस विषय के ज्ञान को अन्यज्ञानरूप अभावप्रमाण कहा गया है वह विषय क्या साध्यनियतहेतुस्वरूप से अन्य कोई वस्तु है ? दूसरा विकल्प या उस हेतुस्वरूप से भिन्न अपना अभाव ही है ? रा विकल्प व्याख्याकार आगे चल कर बतायेंगे ] प्रथम विकल्प में भी दो अवान्तर विकल्प हैं(१) साध्यनियतहेतुस्वरूप से अन्य जो पदार्थ है वह हेतु के साथ एक ज्ञान संसर्गि है (2) या नहीं है ? यदि साध्यनियत हेतु के साथ एक ज्ञान संसर्गि है तो उस विषय के ज्ञान से प्रतिनियत विषय ला उक्त हेत के अभाव का निश्चय अवश्य सिद्ध होगा कित 'जहाँ जहाँ साध्य नहीं है वहाँ वहाँ हेतु नहीं है' इस प्रकार के व्यतिरेक का निश्चय सिद्ध नहीं हो सकता। साध्याभाव के जितने भी प्रसिद्ध अधिकरण हो उन सभी को उद्देश करके यदि यह निश्चय किया जा सके कि 'जहाँ जहाँ साध्याभाव है वहाँ वहाँ साधनाभाव है' तभी ऐसे निश्चय से 'हेतु साध्य का नियतचारी है' ऐसे [ यह दूसरा
SR No.004337
Book TitleSammati Tark Prakaran Part 01
Original Sutra AuthorSiddhasen Divakarsuri
AuthorAbhaydevsuri
PublisherMotisha Lalbaug Jain Trust
Publication Year1984
Total Pages696
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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