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________________ प्रथम खण्ड-का० १-ज्ञातृव्यापार० हारस्थितिलक्षणस्तु विरोधोऽन्योन्यव्यवच्छेदरूपयोरर्थप्रकाशनाऽप्रकाशनयोः संभवति, न पुनरर्थप्रकाशनज्ञातृव्यापारयोः, अन्योन्यव्यवच्छेदरूपत्वाभावात् / नापि ज्ञातव्यापारनियतत्वादर्थप्रकाशनस्य साध्यविपक्षेण विरोध इति शक्यमभिधातुम् , अन्योन्याश्रयदोषप्रसक्तेः / तथाहि-सिद्धे तन्नियतत्वे तद्विपक्षविरोधसिद्धिः, तत्सिद्धेश्च तन्नियतत्वसिद्धिरिति स्पष्ट एवेतरेतराश्रयो दोषः। तन्न विरुद्धोपलब्धिनिमित्तोऽपि विपक्षे साधनाभावनिश्चय.। अथाऽदर्शनशब्देन अभावाख्यं प्रमाणं व्यतिरेकनिश्चयनिमित्तमभिधीयते, तदप्यनुपपन्नम् , तस्य तनिमित्तत्वाऽसंभवात् / तथाहि-निषेध्यविषयप्रमाणपंचकस्वरूपतयाऽऽत्मनोऽपरिणामरूपं वा तदभ्युपगम्येत, तदन्यवस्तुविषयज्ञानरूपं वा? गत्यन्तराभावात् / तदुक्तम्-[श्लो० वा० सू० ५-श्लो० 11] प्रत्यक्षादेरनुत्पत्तिः प्रमाणाभाव उच्यते / सात्मनोऽपरिणामो वा विज्ञानं वाऽन्यवस्तुनि // तत्र यदि ‘निषेध्यविषयप्रमाणपंचकरूपत्वेनाऽऽत्मनोऽपरिणामलक्षणमभावाख्यप्रमाणं साधनाभावनियतसाध्याभावस्वरूपव्यतिरेकनिश्चयनिमित्तं' इत्यभ्युपगमः, स न युक्तः, तस्य समुद्रोदकपलपरिमाणेनानैकान्तिकत्वात् / [साधनाभाव का निश्चय विरुद्धोपलब्धि से अशक्य ] विरुद्धोपलब्धि से भी साधनाभाव का निश्चय संभवित नहीं, क्योंकि अर्थप्रकाशनरूप प्रकृत हेतु का ज्ञातृव्यापार रूप साध्य तो अत्यन्तपरोक्ष होने से उसका अवगम न होने पर साध्याभाव से नियत जो साध्य का विपक्ष है वह भी अनवगत ही रह जायेगा और उसके अनवगत रहने पर उसके साथ अर्थप्रकाशनरूप हेतु का सहानवस्थान रूप विरोध भी सिद्ध नहीं हो सकता / परस्परपरिहारस्थितिलक्षण विरोध तो एक दूसरे का व्यवच्छेद करने वाले अर्थ-प्रकाशन और अर्थ के बीच हो सकता है किन्त अर्थप्रकाशन और ज्ञातव्यापार परस्पर व्यवच्छेद रूप न होने से उन दोनों के बीच उसका संभव नहीं है / यह भी कहना शक्य नहीं कि-'अर्थप्रकाशन रूप हेतु ज्ञातृव्यापार रूप साध्य के साथ नियत यानी व्याप्त होने से साध्य के विपक्ष के साथ उसका विरोध होना ही चाहिये ।'-कारण, साध्य के साथ हेतु का नियम सिद्ध करने के लिये उसके निश्चायक व्यतिरेक का तो अभी विचार चल रहा है तब उसी नियम को सिद्ध जैसा मानकर यह कैसे कहा जा सकता है कि विरोध उस नियम से सिद्ध है ? ऐसा कहने पर तो अन्योन्याश्रय दोष ही लगेगा, क्योंकि उस नियम के सिद्ध होने पर साध्य का विपक्ष के साथ विरोध सिद्ध होगा और विरोध सिद्ध होने पर वह नियम सिद्ध होगा। इस प्रकार यह मानना होगा कि विपक्ष में साधन के अभाव का निश्चय जो कि नियम के निश्चय में उपयोगी है वह विरुद्धोपलब्धि के द्वारा शक्य नहीं है / [ अभाव प्रमाण से व्यतिरेक का निश्चय दुःशक्य ] अब नियमसाधक व्यतिरेकनिश्चय की सिद्धि के लिये पूर्व में कहे गये 'अदर्शननिश्चेयः' शब्द में अदर्शन शब्द से अभावनाम के प्रमाण को लेकर उसको व्यतिरेक निश्चय का निमित्त माना जाय तो यह संगत होने वाला नहीं है, क्योंकि दो विकल्प से विचार करने पर अभाव प्रमाण उसका निमित्त ही नहीं बन सकता। प्रथम विकल्प-'जिस वस्तु का निषेध करना है उसको विषय करने वाले प्रत्यक्षादि पाँच प्रमाणरूप में आत्मा का परिणत नहीं होना' इसी को अभावप्रमाण कहते हैं ? या
SR No.004337
Book TitleSammati Tark Prakaran Part 01
Original Sutra AuthorSiddhasen Divakarsuri
AuthorAbhaydevsuri
PublisherMotisha Lalbaug Jain Trust
Publication Year1984
Total Pages696
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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