________________ ... 'न्यायकन्दलीसंवलितप्रशस्तपादभाष्यम् / प्रशस्तपादभाष्यम् योगाचारविभूत्या यस्तोषयित्वा महेश्वरम् / चक्रे वैशेषिकं शास्त्रं तस्मै कणभुजे नमः // 'इति प्रशस्तपादविरचितं द्रव्यादिषट्पदार्थभाष्यं समाप्तम् // न्यायकन्दली सुवर्णमयसंस्थानरम्या सर्वोत्तरस्थितिः / सुमेरोः शृङ्गवीथीव टोकेयं न्यायकन्दली // 1 // अक्षीणनिजपक्षेष ख्यापयन्ती गुणानसौ / परप्रसिद्धसिद्धान्तान् दलात न्यायकन्दली // 2 // [टिक ( // पुष्पिका // ) 'पृथ्वीधरः सकलतर्कवितर्कसीमा धीमान् जगी यदिह कन्दलीकारहस्यम् / व्यक्तीकृतं तदखिलस्मृतिबीजबोधं प्रारोहणाय नरचन्द्रमुनीश्वरेण // 1 // [पं०] श्रुता देण्याचक्रेश्वर्याः प्रतिपन्नसुतः श्रोताब्धिगोविन्दः / श्री (अ) रभयसूरिरभवन्निस्सङ्गसिद्धबहुविद्यः // 3 // . त्रिभिविशेषकम् - परसहस्रान्भूदेवान् (य) दक्षं कउभयं (?) चयः। प्रबोध्यमेदन्तपुरे वीरचैत्यमचीकरत् // 4 // श्रीगुर्जरेश्वरो दृष्ट्वा तीव्र मलपरीषदम् (?) / श्रीकर्णो बिरुदं यस्य मलधारीत्यघोषयत् // 5 // नाथं सुराष्ट्र राष्ट्रस्य नाथं तु तं सुराष्ट्रस्य खगारप्रतिबोध्य यः / उज्जयन्ततीर्थपथं-खिलीभूतमयी वहत् // 6 // 1 इदं पद्यं पु. 6 दे पुस्तके चास्ति। 2 इति पदार्थप्रकाशकाख्यं भाष्यं कृतिराचायभगवत्प्रशस्तकरणपदानाम् दे। 3 सिद्धानां-जे. 1 / 4 पुष्पिकेयम् 'म' पुस्तके नास्ति /