________________ लसाएल शाखो-पुस्तको अल्प काळमां ज नाश पामी जाय छे / केटलीक वार वो पांचपचीस वर्षमा ज ए ग्रंथो मृत्युना मोमां जइ पडे छ / पूज्यपाद गुरुवरश्री उपरोक्त शास्त्रलेखनविषयक प्रत्येक बाबतनी झीणवटने पूर्णपणे समजी शकता हता एटलं ज नहि, पण तेओश्रीना हस्ताक्षरो एटला सुंदर हता अने एवी सुंदर बने स्वच्छ पद्धतिए तेसो पुस्तको लखी शकता हवा के भलभला लेखकोने पण आंटी नाखे / एज कारण हतुं के गमे तेवा लेखक उपर तेमनो प्रभाव पडतो हतो अने गमे तेवा लेखकनी लिपिमाथी तेओश्री कांड ने काइ वास्तविक खांचखंच काढताज / पूज्यपाद गुरुदेवनी पवित्र अने प्रभावयुक्त छाया तळे एकी साथे त्रीस त्रीस, चालीस चालीस लहियाओ पुस्तको लखवानुं काम करता हता। तेओश्रीना हाथ नीचे काम कर. नार लेखकोनी सर्वत्र साधुसमुदायमा किम्मत अंकाती हती / टंकमा एम कहे, जोइए के जेम तेओश्री शास्त्रलेखन अने संग्रह माटेना महत्त्वना ग्रंथोनो विभाग करवामां निष्णात हता, एज रीते तेओश्री लेखनकळाना तलस्पर्शी हार्दने समजवामां अने पारखवामां पण हता। पुज्यपाद गुरुवरनी पवित्र चरणछायामा रही तेमना चिरकालीन लेखनकळाविषयक अनुभवोने जाणीने अने संग्रहीने ज हुं मारो "मारतीय जैन श्रमणसंस्कृति अने लेखनकळा" नामनो अंथ लखी शक्यो छु। खरं जोतां ए ग्रंथलेखननो पूर्ण यश पूज्य गुरुदेवश्रीने ज घटे छे / शास्त्रसंशोधन-पूज्यपाद गुरुवरश्रीए श्रीप्रवर्तकजी महाराजश्रीना शाखसंग्रहमांना नवा लखावेल अने प्राचीन प्रन्थो पैकी संख्याबंध महत्त्वना ग्रंथो अनेकानेक प्राचीन प्रत्यन्तरो साथे सरखावीने सुधार्या छ / जेम पूज्य गुरुदेव लेखनकळाना रहस्यने बराबर समजता हता एज रीते संशोधनकळामां पण तेओश्री पारंगत हता। संशोधनकळा, तेने माटेना साधनो, संकेतो वगेरे प्रत्येक वस्तुने तेओश्री पूर्ण रीते जाणता हता / एमना संशोधनकळाने लगता पांडित्य अने अनुभवना परिपाकने आपणे तेओश्रीए संपादित करेल श्रीआत्मानन्द-जैन-ग्रन्थरत्नमालामा प्रत्यक्षपणे जोइ शकीए छीए / - जैन ज्ञानभंडारोनो उद्धार-पाटणना विशाळ जैन क्षानभंडारो एक काळे अति अव्यवस्थित दशामां पड्या हता / ए भंडारोनुं दर्शन पण एकंदर दुर्लभ ज हतुं, एमांथी वाचन, अध्ययन, संशोधन आदि माटे पुस्तको मेळवां अति दुष्कर हता, एनी टीपोलीस्टो पण बराबर जोइए तेवी माहिती आपनारां न हतां अने ए भंडारो लगभग जोइए तेवी सुरक्षित अने सुव्यवस्थित दशामां न हता / ए समये पूज्यपाद प्रवर्तकजी महाराज भीकान्तिविजयजी (मारा पूज्य गुरुदेव ) श्रीचतुरविजयजी महाराजादि शिष्यपरिवार साथे पाटण पधार्या अने पाटणना ज्ञानभंडारोनी व्यवस्था करवा माटे कार्यवाहकोनो