________________ विश्वास संपादन करी ए ज्ञानभंडारोना सार्वत्रिक उद्धारनु काम हाथ धयुं अने ए कार्यने / सर्वागपूर्ण बनाववा शक्य सर्व प्रयत्नो पूज्यपाद श्रीप्रवर्तकजी महाराजश्रीए अने पूज्य गुरुदेव श्रीचतुरविजयजी महाराजश्रीए कर्या / आ व्यवस्थामा बौद्धिक अने श्रमजन्य कार्य करवामां पूज्यपाद गुरुदेवनो अकल्प्य फालो होवा छतां पोते गुप्त रही ज्ञानभंडारोना उद्धारनो संपूर्ण यश तेओश्रीए श्रीगुरुचरणे ज समर्पित कर्यो छे। लीम्बडी श्रीसंघना विशाळ ज्ञानभंडारनी तथा वडोदरा-छाणीमा स्थापन करेला पूज्यपाद श्रीप्रवर्तकजी महाराजश्रीना अतिविशाळ ज्ञानभंडारोनी सर्वांगपूर्ण सुव्यवस्था पूज्य गुरुवरे एकले हाथे ज करी छे / आ उपरांत पूज्यप्रवर शान्तमूर्ति महाराजश्री 1008 श्रीहंसविजयजी महाराजश्रीना वडोदरामांना विशाळ ज्ञानभंडारनी व्यवस्थामा पण तेमनी महान् मदद हती। भीआत्मानन्द जैन ग्रन्थरत्नमाला-पूज्य श्रीगुरुश्रीए जेम पोताना जीवनमा जैन झानभंडारोनो उद्धार, शास्त्रलेखन अने शास्त्रसंशोधनने लगतां महान कार्यों को छे ए ज रीते तेमणे श्री आ. जै.. र. मा. ना सम्पादन अने संशोधन- महान कार्य पण हाथ धयु तुं। आ ग्रंथमाळामां आज सुधीमां बधा मळीने विविध विषयने लगता नाना मोटा महत्त्वना नेवु ग्रंथो प्रकाशित थया छे, जेमांना घणा खरा पूज्य गुरुदेवेज सम्पादित कर्या छ / आ ग्रंथमाळामां नानामां नाना अने मोटामां मोटा अजोड महत्त्वना प्रन्यो प्रकाशित यया छे। मानां-मोटा संख्याबंध शास्त्रीय प्रकरणोनो समूह आ प्रन्थमाळामा प्रकाशित थयो छे ए आ प्रन्थमाळानी खास विशेषता छ। आ प्रकरणो द्वारा जैन श्रमण अने श्रमणीओने खूब ज लाम थयो छे / जे प्रकरणोनां नाम मेळववां के सांभळवां पण एकाएक मुश्केल हतां ए प्रकरणो प्रत्येक श्रमण-श्रमणीना हस्तगत थइ गयां छे / आ ग्रन्थमाळामा एकंदर जैन आगमो, प्रकरणो, ऐतिहासिक अने औपदेशिक प्राकृत, संस्कृत कथासाहित्य, काव्य, नाटक आदि विषयक विविध साहित्य प्रकाश पाम्युं छे / ए उपरथी पूज्यपाद गुरुदेवमां केटलं विशाळ ज्ञान अने केटलो अनुभव हतो ए सहेजे समजी शकाय तेम छे / अने एज कारणसर आ ग्रन्थमाळा दिन प्रतिदिन दरेक दृष्टिए विकास पामती रही छे / छेल्लाभां छेल्ली पद्धतिए ग्रन्थोनुं संशोधन, संपादन अने प्रकाशन करता पूज्यपाद गुरुदेवे जीवनना अस्तकाळ पर्यंत अथाग परिश्रम उठाव्यो छे। निशीथसूत्रचूर्णि, कल्पचूर्णि, मलयगिरिव्याकरण, देवभद्रसूरिकृत कथारनकोश, वसुदेवहिंडी द्वितीयखंड आदि जेवा अनेक प्रासादभूत ग्रन्थोना संशोधन अने प्रकाशनना महान् मनोरथोने हृदयमा धारण करी वहस्ते एनी प्रेसकोपीओ अने एनुं अर्धसंशोधन करी तेओश्री परलोकवासी थया छ / अस्तु मृत्युदेवे कोना मनोरथ पूर्ण थवा दीधा छे !!! / आम छतां जो पूज्यपाद गुरुप्रवर श्रीप्रवर्चकजी महाराज, पूज्य गुरुदेव अने समस्त