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________________ प्रस्तावना। बृहत्कल्पसूत्रनी अपूर्ण टीकाना अनुसन्धानना मंगेलाचरण अने उस्थानिकामां पण एमने माटे आचार्य तरीकेनो स्पष्ट निर्देश कों नथी / ए विषेनो स्पष्ट उल्लेख तो आपणने पंदरमी सदीमा थनार श्रीजिनमण्डनगणिना कुमारपालप्रबन्धमा ज मळे छ / एटले सौ कोइने एम लागशे के तेओश्री माटे आचार्य तरीकेनो निर्देश करवा माटे आचार्य श्रीक्षेमकीर्ति जेवाए ज्यारे उपेक्षा करी छे तो तेओश्री वास्तविक रीते आचार्यपदविभूषित हशे के केम ? अने अमने पण ए मांटे तर्क-वितर्क थता हता / परंतु तपास करतां अमने एक एबुं प्रमाण जडी गयु के जेथी तेओश्रीना आचार्यपदविभूषित होवा माटे बीजा कोई प्रमाणनी आवश्यकता रहे ज नहि / ए प्रमाण खुद श्रीमलयगिरिविरचित स्त्रोपज्ञशब्दानुशासनमांनुं छे, जेनो उल्लेख अहीं करवामां आवे छे " एवं कृतमङ्गलरक्षाविधानः परिपूर्णमल्पग्रन्थं लघूपाय आचार्यों मलयगिरिः शब्दानुशासनमारभते / " आ उल्लेख जोया पछी कोइने पण तेओनीना आचार्यपणाविषे शंका रहेशे नहि / .. श्रीमलयगिरिसूरि अने आचार्य श्रीहेमचन्द्रनो सम्बन्ध-उपर आपणे जोइ आव्या छीए के श्रीमलयगिरिसूरि अने भगवान् श्रीहेमचन्द्राचार्य विद्याभ्यासने विकसाववामाटे तेम ज मंत्रविद्यानी साधनामाटे साथे रहेता हता अने साथे विहारादि पण करता हता | आ उपरथी तेओ परस्पर अतिनिकट सम्बन्ध धरावता हता, ते छतां ए संबंध केटली हद सुधीनो हतो अने तेणे केवु रूप लीधुं हतुं एजाणवा माटे आचार्य श्रीमलयगिरिए पोतानी आवश्यकवृत्तिमा भगवान् श्रीहेमचन्द्रनी कृतिमांनु एक प्रमाण टांकतां तेओश्री माटे जे प्रकारनो बहुमानभर्यो उल्लेख कर्यो छे ते आपणे जोइए / आचार्य श्रीमलयगिरिनो ए उल्लेख आ प्रमाणे छे" तथा चाहुः स्तुतिषु गुरवः अन्योन्यपक्षप्रतिपक्षभावाद् , यथा परे मत्सरिणः प्रवादाः / नयानशेषानविशेषमिच्छन् , न पक्षपाती समयस्तथा ते // " हेमचन्द्रकृत अन्ययोगव्यवच्छेदद्वात्रिंशिका श्लोक 30 / / आ उल्लेखमा श्रीमलयगिरिए भगवान् श्रीहेमचन्द्रनो निर्देश " गुरवः " एवा अति. बहुमानभर्या शब्दथी को छे / आ उपरथी भगवान् श्रीहेमचन्द्रना पाण्डित्य, प्रभाव अने १“आगमदुर्गमपदसंशयादितापो विलीयते विदुषाम् / यद्वचनचन्दनरसमलयगिरिः स जयति यथार्थः॥५॥ धीमलयगिरिप्रभवो, यां कर्त्तमुपाकमन्त मतिमन्तः / सा कल्पशास्त्रटीका, मयाऽनुसन्धीयतेऽल्पधिया // 8 // ___2 "-चूर्णिकृता चूर्णिरात्रिता तथापि सा निविडजडिमजम्बालजटालानामस्मादृशां जन्तूनां म तथाविधमवबोधनिबन्धनमुपजायत इति परिभाव्य शब्दानुशासनादिविश्वविद्यामयज्योतिःपुजपरमाणुघटितमूर्तिभिः श्रीमलयगिरिमुनीन्द्रर्षिपादैः विवरणमुपचक्रमे / "
SR No.004335
Book TitlePancham Shataknama evam Saptatikabhidhan Shashtha Karmgranth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraguptasuri
PublisherJain Atmanand Sabha
Publication Year1997
Total Pages334
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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