________________ - 14-15] कर्मविपाकनामा प्रथमः कर्मग्रन्थः / बंधो 8 मुक्खो 9 य तहा, नव तत्ता हुंति इय नेया // 1 // एगविहदुविहतिविहा, चउहा पंचविहछबिहा जीवा / चेयण१तसइयरेहिं 2, वेय३गईश्करण५काएहिं६ // 2 // एगिदिय सुहुमियरा, बितिचउसनीअसन्निपंचिंदी। अपजत्ता पजचा, चउदसभेया अहव जीवा // 3 // पण थावर सुहुमियरा, परित्तवणसन्नऽसन्निविगलतिगं / इय सोलस अपजत्ता, पज्जता जीव बत्तीसा // 1 // धम्माऽधम्माऽऽगासा, य दवदेसप्पएसओ तिविहा / गइठाणऽवगाहगुणा, कालो य अरूविणो दसहा // 5 // खंधा देस पएसा, परमाणू पुग्गला चउह रूवी / जीवं विणा अचेयण, अकिरिया सबगय वोमं // 6 // कालो माणुसलोए, जियधम्माऽधम्म लोयपरिमाणा / सधे दवं इट्ठा, काल विणा अस्थिकाया य // 7 // घम्माऽधम्माऽऽगासा, कालो परिणामिए इहं भावे / उदयपरिणामिए पुग्गला उ सधेसु पुण जीवा // 8 // जीवाजीवतत्त्वे // तिरिनरसुराउ उच्चं, सायं परघायआयवुजोयं / जिणऊसासनिमाणं, पणिदिवइरुसभचउरंसं // 9 // तसदस चउवन्नाई, सुरमणुदुग पंचतणु उवंगतिगं / अगुरुलहु पढमखगई, बायाला पुन्नपगईओ // 10 // पुण्यतत्त्वम् // नाणंतराय पण पण, नव बीए नियअसायमिच्छतं / थावरदस नरयतिगं, कसायपणवीस तिरियदुगं // 11 // चउजाई उवघायं, अपढमसंघयणखगइसंठाणा / वन्नाइअसुभचउरो, बासीई पावपगडीओ // 12 // पापतत्त्वम् / / चेतनत्रसेतरेर्वेदगतिकरणकायैः // 2 // एकेन्द्रियाः सूक्ष्मेतरा द्वित्रिचतुःसंश्यसविपचिन्द्रियाः / अपर्याप्ताः पर्याप्तायतुर्दशमेदा अथवा जीवाः॥३॥ पश्च स्थावराः सूक्ष्मेतराः प्रत्येकवनसंश्यसशिविकलत्रिकम् / इति षोडशापर्याप्ताः पर्याप्ता जीवा द्वात्रिंशत् ॥४॥धर्माधर्माकाशाथ द्रव्यदेशप्रदेशतविविधाः / गतिस्थानावकाश. गुणाः कालचारूपिणो दशधा // 5 // स्कन्धा देशाः प्रदेशाः परमाणवः पुद्रलावतुर्षा रूपिणः। जीवं विनाऽचे. तना भक्रियाः सर्वगतं व्योम ॥६॥कालो मनुष्यलोके जीवधर्माऽधर्मा लोकपरिमाणाः / सर्वाणि व्याणीयानि का विनाऽस्तिकायाय // 7 // धर्माऽधर्माऽकाशाः कालः पारिणामिके इह मावे। उदयपारिणामिके पुदलातु सर्वेषु पुनर्जीवाः // 8 // तिर्यमरसुरायुरुचैः (गोत्र) सातं पराघाताऽऽतपोद्योतम् / जिनोच्छासनिर्माण, पञ्चेन्द्रियवर्षभचतुरस्रम् ॥९॥त्रसदशकं चत्वारो वर्णादयः सुरमनुष्यदिकं पञ्च तनव उपात्रिकम् / भगुरुनधु प्रथमखगतिर्दिचलारिंशत्पुण्यप्रकृतयः ॥१०॥ज्ञानान्तरायाः पच पर नव द्वितीये नीचासातमिथ्यात्वम् / स्थावरदशर्क नरकत्रिक कषायपश्चविंशतिविर्यद्विकम् // 11 // चतस्रो जातय उपपातमप्रथमसंहननखगतिसंस्थानानि / वर्णायशुभचतुष्कं सशीतिः पापप्रकृतयः॥ 12 //