________________ 346] CHAPTER XIV 221 bu nid du yod do | de Itar dkar po nid dan snam bu nid du grub dan gdon mi za bar de dag gcig nid dam gz'an nid du hgyur dgos la gcig nid yin na ni slar yan gcig nid hgog pahi rim pa kho na brjod par byaho || gz'an nid yin na yan gz'an nid "gog pahi tshul lo || de bz'in du dnos po thams cad la yan thgog pahi tshul gryas par brjod par byaho z'es rnam par thchad do | =एवं विद्भिः सत्कार्यवादोपदर्शितं दूषणमेकत्वपक्षे प्रयोज्यम् / असत्कार्यवादिनो हि कार्यकारणयोरन्यत्ववादिनः। ते हि सदुत्पत्तिनिरथेति मन्यमाना असदेव कार्यमुत्पद्यत इति प्रतिपद्यन्ते / तेषामन्यत्व पक्षेऽप्यसत्कार्योपदर्शितं दूषणमभिधेयम् / तच्च स्तम्भादीनामलङ्कारो रहस्यार्थ निरर्थकः / यस्यासत्कार्यमेव च // इत्युक्तम् / / ये तु कार्यकारणयोरेकत्वमन्यत्वं चेति कल्पयन्ति ते सदसत्कायवादिनः / ते हि देवदत्तस्य जीवात्मत्वं व्यवस्थितं देवदत्तात्मत्वं त्वव्यवस्थितमुत्पद्यत इतीच्छन्ति। तथा च मञ्जरीके यूरादीनां सुवर्णात्मत्वं व्यवस्थितं मञ्जरीकेयूरात्मत्वं त्वव्यवस्थितमुत्पद्यत इति प्रतिपद्यन्ते / तेषामकत्वान्यत्वोभयपक्षस्य सदसत्कार्यवादप्रतिषेधोपदर्शितं दूषणमभिधेयम्। तश्च सत्कार्यमेव यस्येष्टम् इत्यादिनोक्तम् / वादहयपक्ष दोष एकस्मिन् पक्षे प्रयोज्य इति विशेषः / - येषां तु दर्शने घटादीनामभावन स्वहेतुभ्योऽन्यत्वमेकत्वं चानभिलाप्य भावद्रव्यं च सद्धेतुक तेषां सदसहादनिराकरणहारा सदपि न भवत्यसदपि न भवतीति विचारेण दूषण मभिधेयम् / तच्चोभयासम्भवे तनिषेधेन नोभयं भवतीति यदेदमुभयं नं सम्भवति तदा कस्य निषेधेन नोभयं भवतीति कल्प्यते इत्यर्थ इत्यनेनोक्त मेव / एवं च यथाक्रम सदसत् सदसच्चेति नोभय चेति च क्रमः / एष प्रयोज्यो विदगिरेकत्वादिषु नित्यशः // 1XI. 15. 2XI. 15. * The corresponding Tib. passage is not quite clear to me. I could not trace the passage referred to here. It seems to be some where in the commentary.