________________ प्रस्तावना 67 टीका, समाधितन्त्रटीका, क्रियाकलापटीका*, आत्मानुशासनतिलक आदि ग्रन्थोंकी भी प्रभाचन्द्रकृत होनेकी संभावना की है, वह खास तौरसे विचारणीय है / यथावसर इन ग्रन्थोंके विषयमें विशेष प्रकाश डाला जायगा। अन्तमें मैं उन सब ग्रन्थकार विद्वानोंके प्रति अपनी हार्दिक कृतज्ञता प्रकट करता हूँ जिनके ग्रन्थोंसे इस प्रस्तावनामें सहायता मिली है। फाल्गुनशुक्ल द्वादशी) आष्टाह्निकपर्व वीर नि० सं० 2467) . न्यायाचार्य महेन्द्रकुमार शास्त्री. स्याद्वाद विद्यालय काशी. "तदात्मकत्वञ्चार्थस्य अध्यक्षतोऽनुमानादेश्च यथा सिद्धयति तथा प्रमेयकमलमार्तण्डे न्यायकुमुदचन्द्र च प्ररूपितमिह द्रष्टव्यम् ।"-शब्दाम्भोजभास्कर।। प्रभाचन्द्रकृत गद्यकथाकोशमें पाई जानेवाली अञ्जनचोर आदिकी कथाओंसे रत्नकरण्डटीकागत कथाओंका अक्षरशः सादृश्य है / इति / / * क्रियाकलापटीकाकी एक लिखित प्रति बम्बईके सरस्वती भवनमें है। उसके मंगल और प्रशस्ति श्लोक निम्नलिखित हैंमंगल- - "जिनेन्द्रमुन्मलितकर्मबन्धं प्रणम्य सन्मार्गकृतस्वरूपम् / - अनन्तबोधादिभवं गुणौघं क्रियाकलापं प्रकटं प्रवक्ष्ये / / " प्रशस्ति-'वन्दे मोहतमोविनाशनपट स्त्रैलोक्यदीपप्रभः, संसद्वतिसमन्वितस्य निखिलस्नेहस्य संशोषकः / सिद्धान्तादिसमस्तशास्त्र किरणः श्री पद्मनन्दिप्रभुः, तच्छिष्यात्प्रकटार्थतां स्तुतिपदं प्राप्तं प्रभाचन्द्रतः // 1 // यो रात्रौ दिवसे पृथि प्रयतां (?) दोषा यतीनां कुतो प्योपाताः (?) प्रलये तु. रमलस्तेषां महादर्शितः / श्रीमदगौतमनाभिभिर्गणधरैर्लोकत्रयोदद्योतकः, सव्यकृ (?) सकलोऽप्यसौ यतिपतेर्जातः प्रभाचन्द्रतः // 2 // यः (यत्) सर्वात्महितं न वर्णसहितं न स्पन्दितौष्ठद्वयम्, नो वाञ्छाकलितन्न दोषमलिनं न श्वासतुद्व (रुद्ध) क्रमम् / / शान्तामर्थविषयः (मर्षविषैः) समं परशु (पशु) गणराणितं कर्णतः, तद्वत् सर्वविदः प्रणष्टविपदः पायादपूर्व वचः // 3 // " इन प्रशस्तिश्लोकोंसे ज्ञात होता है कि जिन प्रभाचन्द्रने क्रियाकलापटीका रची है वे पद्मनन्दिसैद्धान्तिकके शिष्य थे। न्यायकुमुदचन्द्र आदिके कर्ता प्रभाचन्द्र भी पद्मनन्दि सैद्धान्तिकके ही शिष्य थे, अतः क्रियाकलापटीका और प्रमेयकमलमार्तण्ड आदिके कर्ता एक ही प्रभाचन्द्र है इसमें कोई सन्देह नहीं रह जाता। प्रशस्तिश्लोकांकी रचनाशैली भी प्रमेयकमल आदिकी प्रशस्तियोंसे मिलती जुलती है।। + आत्मानुशासनतिलककी प्रति श्री प्रेमीजीने भेजी है। उसका मंगल और प्रशस्ति इस प्रकार हैमंगल- "वीरं प्रणम्य भववारिनिधिप्रपोतमुयोतिताखिलपदार्थमनल्पपुण्यम् / निर्वाणमार्गमनवद्यगुणप्रवन्धमात्मानुशासनमहं प्रवरं प्रवक्ष्ये // " प्रशस्ति-"मोक्षोपायमनल्पपुण्यममलज्ञानोदयं निर्मलम् / भव्यार्थं परमं प्रभेन्दुकृतिना व्यक्तैः प्रसन्नैः पदैः / व्याख्यानं वरमात्मशासनमिदं व्यामोहविच्छेदतः / सूक्तार्थेषु कृतावरैरहरहश्चेतस्यलं चिन्त्यताम् // 1 // इति श्री आत्मानुशासन (न) सतिलक (क) प्रभाचन्द्राचार्यविरचित (तं) सम्पूर्णम् / "