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________________ 50 न्यायकुमुदचन्द्र के रचयिता एक ही व्यक्ति हैं तो यह निश्चितरूपसे कहा जा सकता है कि प्रभाचन्द्र धारा- . धीश भोजके समकालीन थे। इस शिलालेखमें प्रभाचन्द्रको गोपनन्दिका सधर्मा कहा गया है / हलेबेल्पोलके एक शिलालेख (नं० 462, जैनशिलालेखसंग्रह ) में होय्सलनरेश एरेयङ्ग द्वारा गोपनन्दि पण्डितदेवको दिए गए दानका उल्लेख है। यह दान पौष शुद्ध 13, संवत् 1015 में दिया गया था। इस तरह सन् 1064 में प्रभाचन्द्रके सधर्मा गोपनन्दिकी स्थिति होनेसे प्रभाचन्द्रका समय सन् 1065 तक माननेका पूर्ण समर्थन होता है / समयविचार-आचार्य प्रभाचन्द्र के समयके विषयमें डॉ० पाठक, प्रेमीजी 8 तथा मुख्तार सा० आदिका प्रायः सर्वसम्मत मत यह रहा है कि आचार्य प्रभाचन्द्र ईसाकी 8 वीं शताब्दीके उत्तरार्ध एवं नवीं शताब्दीके पूर्वार्धवर्ती विद्वान् थे / और इसका मुख्य आधार है जिनसेनकृत आदिपुराण का यह श्लोक"चन्द्रांशुशुभ्रयशसं प्रभाचन्द्रकविं स्तुवे / कृत्वा चन्द्रोदयं येन शश्वदाह्रादितं जगत् // " अर्थात्-'जिनका यश चन्द्रमाकी किरणोंके समान धवल है, उन प्रभाचन्द्रकविकी स्तुति करता हूँ। जिन्होंने चन्द्रोदयकी रचना करके जगत् को आह्लादित किया है / ' इस श्लोकमें चन्द्रोदयसे न्यायकुमुदचन्द्रोदय (न्यायकुमुदचन्द्र) ग्रन्थका सूचन समझ गया है / आ० जिनसेनने अपने गुरु वीरसेनकी अधूरी जयधवला टीकाको शक सं० 75 6 (ईसवी 837) की फाल्गुन शुक्ला दशमी तिथिको पूर्ण किया था। इस समय अमोघवर्षका राज्य था। जयधवलाकी समाप्तिके अनन्तर ही प्रा० जिनसेनने आदिपुराणकी रचना की थी। आदिपुराण जिनसेनकी अन्तिम कृति है। वे इसे अपने जीवनमें पूर्ण नहीं कर सके थे। उसे इनके शिष्य गुणभद्रने पूर्ण किया था। तात्पर्य यह कि जिनसेन आचार्यने ईसवी 840 के लगभग आदिपुराणकी रचना प्रारम्भ की होगी। इसमें प्रभाचन्द्र तथा उनके न्यायकुमुदचन्द्रका उल्लेख मानकर डॉ० पाठक आदिने निर्विवादरूपसे प्रभाचन्द्रका समय ईसाकी 8 वीं शताब्दीका उत्तरार्ध तथा नवीं का पूर्वार्ध निश्चित किया है। सुहृद्वर पं० कैलाशचन्द्रजी शास्त्रीने न्यायकुमुदचन्द्र प्रथमभाग की प्रस्तावना (पृ०१२३) में डॉ० पाठक आदिके मतका निरास करते हुए प्रभाचन्द्रका समय ई० 150 से 1020 तक श्रीमान् प्रेमीजीका विचार अब बदल गया है। वे अपने "श्रीचन्द्र और प्रभाचन्द्र" लेख (अनेकान्त वर्ष 4 अंक 1 ) में महापुराणटिप्पणकार प्रभाचन्द्र तथा प्रमेयकमलमार्तण्ड और गद्यकथाकोश आदिके कर्ता प्रभाचन्द्रका एक ही व्यक्ति होना सचित करते हैं। वे अपने एक पत्रमें मुझे लिखते हैं कि-"हम समझते हैं कि प्रमेयकमलमार्तण्ड और न्यायकुमुदचन्द्र के कर्ता प्रभाचन्द्र ही महापुराणटिप्पणके कर्ता हैं। और तत्त्वार्थवृत्तिपद (सर्वार्थसिद्धिके पदोंका प्रकटीकरण), समाधितन्त्रटीका, आत्मानुशासनतिलक, क्रियाकलापटीका, प्रवचनसारसरोजभास्कर (प्रवचनसारकी टीका) आदिके कर्ता और शायद रत्नकरण्डटीकाके कर्ता भी वही हैं।" पं० कैलाशचन्द्रजीने आदिपुराणके 'चन्द्रांशशुभ्रयशसं' श्लोकमें चन्द्रोदयकार किसी अन्य प्रभाचन्द्रकविका उल्लेख बताया है. जो ठीक है। पर उन्होंने आदिपुराणकार जिनसेनके द्वारा न्यायकुमुदचन्द्रकार प्रभाचन्द्रके स्मृत होने में बाधक जो अन्य तीन हेतु दिए हैं वे बलवत नहीं मालूम होते / यतः (1) प्रादि
SR No.004327
Book TitleNyayakumudchandra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendramuni
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1941
Total Pages634
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size15 MB
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