SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 71
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रस्तावना 46 प्रभाचन्द्रके सधर्मा श्रीकुलभूषण मुनि थे। कुलभूषण मुनि भी सिद्धान्तशास्त्रोंके पारगामी और चारित्रसागर थे। इस शिलालेखमें कुलभूषणमुनिकी शिष्यपरम्पराका वर्णन है, जो दक्षिणदेशमें हुई थी। तात्पर्य यह कि आ० प्रभाचन्द्र मूलसंघान्तर्गत नन्दिगणकी आचार्यपरम्परामें हुए थे। इनके गुरु पद्मनन्दिसैद्धान्त थे और सधर्मा थे कुलभूषणमुनि / मालूम होता है कि प्रभाचन्द्र पद्मनन्दिसे शिक्षा-दीक्षा लेकर धारानगरीमें चले आए, और यहीं उन्होंने अपने ग्रन्थोंकी रचना की। ये धाराधीशभोजके मान्य विद्वान् थे। प्रमेयकमलमार्तण्डकी "श्रीभोजदेवराज्ये धारानिवासिना" आदि अन्तिम प्रशस्तिसे स्पष्ट है कि-यह ग्रन्थ धारानगरीमें भोजदेवके राज्यमें बनाया गया है। न्यायकुमुदचन्द्र, आराधनागद्यकथाकोश और महापुराणटिप्पणकी अन्तिम प्रशस्तियोंके "श्रीजयसिंहदेवराज्ये श्रीमद्वारानिवासिना" शब्दोंसे इन ग्रन्थोंकी रचना भोजके उत्तराधिकारी जयसिंहदेवके राज्यमें हुई ज्ञात होती है / इसलिए प्रभाचन्द्रका कार्यक्षेत्र धारानगरी ही मालूम होता है / संभव है कि इनकी शिक्षा-दीक्षा दक्षिणमें हुई हो / श्रवणवेल्गोलाके शिलालेख नं० 55 में मूलसंघके देशीगणके देवेन्द्रसैद्धान्तदेवका उल्लेख है / इनके शिष्य चतुर्मुखदेव और चतुर्मुखदेवके शिष्य गोपनन्दि थे / इसी शिलालेखमें इन गोपनन्दिके संधर्मा एक प्रभाचन्द्रका वर्णन इस प्रकार किया गया है__"अवर सधर्मरु श्रीधाराधिपभोजराजमुकुटप्रोताश्मरश्मिच्छटाच्छायाकुङ्कुमपङ्कलिप्तचरणाम्भोजातलक्ष्मीधवः / न्यायाब्जाकरमण्डने दिनमणिश्शब्दाब्जरोदोमणिः, स्थेयात्पण्डितपुण्डरीकतरणिः श्रीमान् प्रभाचन्द्रमाः // 17 // श्रीचतुर्मुखदेवानां शिष्योऽधृष्यः प्रवादिभिः / पण्डितश्रीप्रभाचन्द्रो रुद्रवादिगजाङ्कुशः // 18 // " इन श्लोकोंमें वर्णित प्रभाचन्द्र भी धाराधीश भोजराजके द्वारा पूज्य थे, न्यायरूप कमलसमूह (प्रमेयकमल ) के दिनमणि ( मार्तण्ड ) थे, शब्दरूप अब्ज ( शब्दाम्भोज ) के विकास करनेको रोदोमणि ( भास्कर ) के समान थे / पंडित रूपी कमलोंके प्रफुल्लित करने वाले सूर्य थे, रुद्रवादि गजोंको वश करनेके लिए अंकुशके समान थे तथा चतुर्मुखदेवके शिष्य थे। क्या इस शिलालेखमें वर्णित प्रभाचन्द्र और पद्मनन्दि सैद्धान्तके शिष्य, प्रथितर्कग्रन्थकार एवं शब्दाम्भोजभास्कर प्रभाचन्द्र एक ही व्यक्ति हैं ! इस प्रश्न का उत्तर 'हाँ' में दिया जा सकता है, पर इसमें एकही बात नयी है / वह है-गुरुरूपसे चतुर्मुखदेवके उल्लेख होनेकी / मैं समझता हूँ कि-यदि प्रभाचन्द्र धारामें आनेके बाद अपने ही देशीयगणके श्री चतुर्मुखदेवको आदर और गुरुकी दृष्टिसे देखते हों तो कोई आश्चर्यकी बात नहीं है / पर यह सुनिश्चित है कि प्रभाचन्द्रके आद्य और परमादरणीय उपास्य गुरु पद्मनन्दि सैद्धान्त ही थे। चतुर्मुखदेव द्वितीय गुरु या गुरुसम हो सकते हैं / यदि इस शिलालेखके प्रभाचन्द्र और प्रमेयकमलमार्तण्ड आदि
SR No.004327
Book TitleNyayakumudchandra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendramuni
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1941
Total Pages634
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy