________________ प्रशस्तिः .. . 881 श्रीनन्दिसंघकुलमन्दिररत्नदीप(पः),सिद्धान्तिमूर्ध्व (4)तिलको 'नन्दिनामा। चूडामणिप्रभृतिसर्वनिमित्तवेदी चूडामणिर्भवनिमित्तविदा बभूव // 1 // शिष्यस्तस्य तपोनिधिः शमनिधिर्वि [द्यानिधि ] (निधिः / शीलानन्दितभव्यलोकहृदयः सौख्यैकनन्दीत्यभूत् // आरुह्य प (प्र) तिभागुणप्रवहणं सदोधिरत्नो [द्वहं] / [सत्सिद्धान्तमहोदधेरनवधेः पारं परं दृष्टवान् // 2 // अन्तेवासी समजनि मुनेस्तस्य यो देवनन्दी, दीप्तोत्तप्तप्रभृतितपसा [ सां धाम यो ] देवनन्दी। चातुर्वर्ण्यश्रमणगणिभिर्देववद्वंर (द ) नीयो, देवश्वासावजनि परमानन्दयोगाच्च नन्दी // 3 // एतस्मादुदयाचलाद्वि [धिवशा] ली [लो] दयेनाभितः / श्रीमद्भास्करण(न)न्दिना दशदिशस्तेजोभिरुद्योतिताः // विद्वत्तारकचक्रवालमखिलं मिथ्यातमोभे [दिभिरर्थोद्भा] सवचोमरीचिनिचयैराच्छादितं सर्वतः // छ // 4 // त्यक्ता वादकथापि वादिनिवहैर्नाल्पोऽपि जल्पः कृतः / जल्पाकै [स्त्रपया च नो] निगदितं पाखण्डिवैतण्डिकैः // षट्तर्कोपनिषन्निशाणनिशितप्रज्ञस्य तैः सेव्यते / श्रीमद्भास्करण(न)न्दिपण्डितपतेः [पादारविन्दद्व] यी // छ / इति न्यायकुमुदचन्द्रवृत्तितर्कः समाप्तःमि (प्त इ) ति // छ / - -- ग्रन्थाग्रं 16000 // 1520 // छ / शुभं भवतु // छ / श्री। समाप्तोऽयं ग्रन्थः 1 प्रशस्तिरियम् आ० प्रतावेव उपलभ्यते।