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________________ न्यायकुमुदचन्द्र श्रा० प्रभाचन्द्र ____ 0 प्रभाचन्द्रके समयविषयक इस निबन्धको वर्गीकरणके ध्यानसे तीन स्थूल भागों में बाँट दिया है-१ प्रभाचन्द्र की इतर प्राचार्यों से तुलना, 2 समयविचार, 3 प्रभाचन्द्र के ग्रन्थ / ११.प्रभाचन्द्र की इतर आचार्यों से तुलना इस तुलनात्मक भागको प्रत्येक परम्पराके अपने क्रमविकासको लक्ष्यमें रखकर निम्नलिखित उपभागोंमें क्रमशः विभाजित कर दिया है / 1 वैदिक दर्शन-वेद, उपनिषद, स्मृति, पुराण, महाभारत, वैयाकरण, सांख्ययोग, वैशेषिक न्याय, पूर्वमीमांसा, उत्तरमीमांसा / 2 अवैदिक दर्शन-बौद्ध, जैन-दिगम्बर, श्वेताम्बर / ( वैदिकदर्शन) वेद और प्रभाचन्द्र-प्रा० प्रभाचन्द्रने प्रमेयकमलमार्तण्डमें पुरातनवेद ऋग्वेदसे "पुरुष एवेदं यद्भूतं” “हिरण्यगर्भः समवर्तताने" आदि अनेक वाक्य उद्धृत किये हैं। कुछ अन्य वेदवाक्य भी न्यायकुमुदचन्द्र ( पृष्ठ 726) में उद्धृत हैं-"प्रजापतिः सोमं राजानमन्वसृजत्, ततस्त्रयो वेदा अन्वसृज्यन्त” “रुद्रं वेदक रम्" आदि। न्यायकुमुदचन्द्र (पृ० 770) में "आदौ ब्रह्मा मुखतो ब्राह्मणं ससर्ज, बाहुभ्यां क्षत्रियमुरूभ्यां वैश्यं पद्भ्यां शूद्रम्” यह वाक्य उद्धृत है। यह ऋग्वेद के "ब्राह्मणोऽस्य मुखमासीद्' आदि सूक्तकी छाया रूप ही है। उपनिषत् और प्रभाचन्द्र-आ० प्रभाचन्द्रने अपने दोनों न्यायग्रन्थोंमें ब्रह्माद्वैतवाद तथा अन्य प्रकरणोंमें अनेकों उपनिषदों के वाक्य प्रमाणरूपसे उद्धृत किये हैं। इनमें बृहदारण्यकोपनिषद्, छान्दोग्योपनिषद्, कठोपनिषत् , श्वेताश्वतरोपनिषत् , तैत्तिर्युपनिषत् , ब्रह्मबिन्दूपनिषत् , रामतापिन्युपनिषत् , जाबालोपनिषत् आदि उपनिषत् मुख्य हैं / इनके अवतरण अवतरणसूची में देखना चाहिये / स्मृतिकार और प्रभाचन्द्र-महर्षि मनुकी मनुस्मृति और याज्ञवल्क्यकी याज्ञवल्क्यस्मृति प्रसिद्ध हैं। आ० प्रभाचन्द्रने कारकसाकल्यवादके पूर्वपक्ष (प्रमेयक० पृ० 8) में याज्ञवल्क्यस्मृति (2 / 22) का “लिखितं साक्षिणो भुक्तिः" वाक्य कुछ शाब्दिक परिवर्तनके साथ उद्धृत किया है। न्यायकुमुदचन्द्र (पृ० 575 ) में मनुस्मृतिका "अकुर्वन् विहितं कर्म" श्लोक उद्धृत है / न्यायकुमुदचन्द्र ( पृ० 634 ) में मनुस्मृतिके “यज्ञार्थं पशवः सृष्टाः" श्लोकका "न हिंस्यात् सर्वा भूतानि" इस कूर्मपुराणके वाक्यसे विरोध दिखाया गया है / पुराण और प्रभाचन्द्र-प्रभाचन्द्रके प्रमेयकमलमार्तण्ड तथा न्यायकुमुदचन्द्रमें मत्स्यपुराणका "प्रतिमन्वन्तरश्चैव श्रुतिरन्या विधीयते / " यह श्लोकांश उद्धृत मिलता है। न्यायकुमुदचन्द्र (पृ० 634 ) में कूर्मपुराण (अ० 16 ) का "न हिंस्यात् सर्वा भूतानि" वाक्य प्रमाणरूपसे उद्धृत किया गया है।
SR No.004327
Book TitleNyayakumudchandra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendramuni
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1941
Total Pages634
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size15 MB
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