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________________ सम्पादकीय दर्शनशास्त्र का चरम उद्देश तो वस्तु के यथार्थ खरूप का यथावत् परिज्ञान करके शान्तिलाभ करना है। खदर्शनप्रभावना, लाभ पूजा ख्याति आदि तो वादियों के चित्त की विजिगीषा के परिणाम हैं। सच्चा दार्शनिक इस स्तरके ऊपर रहता है और वस्तुतत्त्व की समीक्षा में ताटस्थ्य रखने में ही अपनी बुद्धि का सदुपयोग मानता है / संस्करणपरिचय-इस भाग का मुद्रण भी प्रथम भाग की तरह ही कराया गया है। विशेषता यह है कि टिप्पणों में ग्रन्थों के नाम मोटे टाइप में दे दिये हैं। जिस ग्रन्थ का पाठ लिया है उस ग्रन्थ का ( - ) ऐसे डैश के साथ पाठ के बाद सर्वप्रथम निर्देश किया है / अन्य जिन ग्रन्थों के मात्र पृष्ठस्थल दिये हैं उन ग्रन्थों में वैसी ही आनुपूर्वी से पाठ का होना आवश्यक नहीं है। उन ग्रन्थों के नाम तो अर्थसादृश्य, भावसादृश्य और कहीं शब्दसादृश्य मूलक तुलना के लिए दिये हैं। जो अर्थबोधक टिप्पण आ० प्रति के हाँसिए में लिखे थे उनके आगे 'आ० टि०' ऐसा विभाजक निर्देश किया गया है। बाकी टिप्पण खयं सम्पादक द्वारा ही लिखे गये हैं। टिप्पण या मूल ग्रन्थ में जो शब्द त्रुटित थे या नहीं थे उनकी जगह सम्पादक ने जिन शब्दों को अपनी ओर से रखा है वे [ ] ऐसे ब्रेकिट में मुद्रित हैं। तथा जिन अशुद्ध शब्दों को सुधारने का प्रसङ्ग आया है वहाँ सम्पादक द्वारा कल्पित शुद्ध पाठ ( ) ऐसे ब्रेकिट में दिया गया है / भूमिका में जो विषय प्रथम भाग की प्रस्तावना में चर्चित हो चुके हैं उनकी चरचा यहाँ नहीं की है / आ० प्रभाचन्द्र के समय के विषय में ही कुछ विशिष्ट सामग्री के साथ ऊहापोह किया है / मैं अकलङ्कदेव के समय विषयक अपने विचार सिंघी सीरीज़ से प्रकाशित "अकलङ्कग्रन्थत्रय” की प्रस्तावना में लिख आया हूँ। अतः यहाँ आवश्यक होने पर भी पुनरुक्ति नहीं कर रहा हूँ। परिशिष्ट-इस भाग में निम्नलिखित 12 परिशिष्ट लगाए गए हैं। जिनसे ऐतिहासिक या तात्त्विकदृष्टिवाले जिज्ञासु, ग्रन्थ के विषयों को अपनी दृष्टि से सहज ही खोज सकेंगे। 1 लघीयस्त्रय के कारिकाध का अकाराद्यनुक्रम / 2 लघीयस्त्रय और उसकी खविवृति में आए हुए अवतरण वाक्यों की सूची / 3 लघीयस्त्रय और खविवृति के विशेष शब्दों की सूची, इसमें लाक्षणिक शब्द काले टाइप में दिए हैं। 4 लघीयस्त्रय की कारिकाएँ तथा विवृति के अंश जिन दि० श्वे० आचार्यों ने अपने ग्रन्थों में उद्धृत किए हैं या उन्हें अपने ग्रन्थों में शामिल किया है उन आचार्यों के उन ग्रन्थों की सूची / 5 न्यायकुमुदचन्द्र में आए हुए ग्रन्थान्तरों के उद्धरणों की सूची / 6 न्यायकुमुदचन्द्र में उपयुक्त न्यायों की सूची / 7 न्यायकुमुदचन्द्रगत प्राचीन ऐतिहासिक पुरुषों के नाम तथा भौगोलिक शब्दों की सूची / 8 न्यायकुमुदचन्द्र में उल्लिखित ग्रन्थ और ग्रन्थकारों की सूची / ( न्यायकुमुदचन्द्र में जिन शब्दों के लक्षण या निरुक्तियाँ की गई हैं उन लाक्षणिक शब्दों की सूची / 10 न्यायकुमुदचन्द्र के कुछ विशिष्ट शब्द / 11 न्यायकुमुदचन्द्र के दार्शनिक शब्दों की सूची। 12 टिप्पणी में तथा मूलग्रन्थ
SR No.004327
Book TitleNyayakumudchandra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendramuni
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1941
Total Pages634
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size15 MB
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