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________________ न्यायकुमुदचन्द्र गया है तथापि यह निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि भाष्यवार्तिक और मजरी प्रन्थकार के सामने अवश्य थीं और ग्रन्थकार को उनका अच्छा अभ्यास था। ... प्रभाचन्द्र और मञ्जरीकार जयन्त-प्रभाचन्द्र को जयन्त की मञ्जरी विशेष प्रिय जान पड़ती है। न्यायदर्शन के षोडशपदार्थ निरूपण में उन्होंने, जहाँ तक हो सका, जयन्त के ही शब्दों का उपयोग किया है / प्रमेय के बारह ही भेद क्यों किये गये, इसके उत्तर में प्रमाणरूप से जयन्त की ही कारिका उद्धृत की है / यद्यपि सामग्रीप्रामाण्य का निर्देश प्रशस्तपाद की व्योमवती टीका में पाया जाता है तथापि उसका स्वतंत्र निरूपण करके इतर मत का निरसन जयन्त ने ही किया है और न्यायकुमुद में उसका खण्डन है। प्रभाकराभिमत ज्ञातृव्यापार के पूर्वपक्ष में मजरीगत पूर्वपक्ष से सहायता ली गई है। उत्तरपक्ष में भी कहीं कहीं तो मञ्जरी की पंक्तियाँ ही ले ली गई हैं / चार्वाक के प्रत्यक्षैकप्रमाणवाद के पूर्वपक्ष में न्यायमञ्जरी से ही सहारा लिया गया है, उसमें 'अपि च' करके लिखी गई 17 कारिकाएँ भी साक्षात् मञ्जरी से ही ली गई जान पड़ती हैं। इसी प्रकार अन्य भी कई प्रकरणों में मञ्जरी का अनुसरण किया गया है। कहीं कहीं तो इतना सादृश्य है कि उसके आधार पर हम 'न्यायकुमुद का पाठ शोधन कर सके हैं। वैशेषिकदर्शन-वैशेषिकदर्शन के निरूपण में प्रशस्तपादभाष्य का मुख्यतया उपयोग किया गया है। तथा व्याख्याओं में भाष्य की टीका व्योमवती का अनुसरण किया है। चार्वाक के प्रति आत्मसिद्धि, ज्ञानाद्वैतवादी के प्रति बाह्यार्थसिद्धि आदि प्रकरणों में प्रयुक्त युक्तियाँ व्योमवती से शब्दशः मिलती हैं / व्योमवती में अनेकान्त भावना से मोक्ष प्राप्ति हो सकने का खण्डन किया गया है उसका खण्डन प्रभाचन्द्र ने प्रमेयकमल में किया है। मोक्षसाधनस्वरूपविषयक खण्डन मण्डन में व्योमवती का साहाय्य स्पष्ट है / ___ सांख्य-योग-सांख्य-योग के निरूपण में योगसूत्र, व्यासभाष्य, तत्त्ववैशारदी, सांख्यकारिका, माठरवृत्ति आदि ग्रन्थों का उपयोग किया गया है। पूर्वपक्ष के निर्देश में प्रमाणरूप से योगसूत्र का उल्लेख करने पर भी व्याख्यांश में व्यासभाष्य का आधार लिया है / इसी तरह प्रमाणरूप से सांख्यकारिका की कारिकाएँ उद्धृत करके व्याख्यांश में माठरवृति का उपयोग 'किया है। कहीं कहीं सांख्यकारिका गौड़पादभाष्य का भी उपयोग किया है। प्राकृत, वैकारिक दक्षिणा आदि तीन बन्धों का स्वरूप माठरवृत्ति से लिया गया प्रतीत होता है। वेदान्तदर्शन में ब्रह्माद्वैतवाद के निरूपण में यद्यपि बृहदारण्यक, छान्दोग्य, आदि उपनिषदों के वाक्यों को प्रमाणरूप से उद्धृत किया है तथापि उसका मुख्य आधार ब्रह्मसूत्र और उसका शांकरभाष्य ही है। शांकरभाष्य के ही शब्दों में ब्रह्माद्वैत का पूर्वपक्ष स्थापित किया है तथा उसी की युक्तियों के आधार पर पूर्वपक्ष में आगत वैषम्य नैपुण्य आदिदोषों का परिहार किया है। मीमांसादर्शन में-जैमिनिसूत्र, शाङ्करभाष्य और कुमारिल के श्लोकवार्तिक का आधार लेकर शब्दनित्यत्ववाद की स्थापना बड़े विस्तार से की है। स्फोटवाद, अपोहवाद और सृष्टिकर्तृत्ववाद के खण्डन में कुमारिल का अनुसरण किया है और प्रमाणरूप से श्लोकवार्तिक की कारिकाएँ भी उद्धृत की हैं। सर्वज्ञता के पूर्वपक्ष की रूपरेखा तत्त्वसंग्रह से ली गई जान पड़ती है तथापि श्लोकवार्तिक की युक्तियाँ पूर्वपक्ष में समाविष्ट की गई हैं। प्रभाकर की बृहती में निर्दिष्ट स्मृतिप्रमोष का खण्डन यद्यपि इतर दार्शनिकों ने भी किया है फिर भी जैन
SR No.004326
Book TitleNyayakumudchandra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendramuni
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1938
Total Pages598
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size14 MB
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