________________ 126 नाते पं० महेन्द्रकुमार जी से तो पूरी सहायता मिलनी ही चाहिये थी। और वह मिलो भो है। सिद्धिविनिश्चय और प्रमाणसंग्रह का परिचय तथा न्यायकुमुद की इतर दर्शनों के अन्यों के साथ तुलना तो उनकी ही लेखनी से प्रसूत हुई है, और प्रभाचन्द्र के समयनिर्धारण में ससे काफी सहायता मिली है। श्वेताम्बरविद्वान मुनि श्रीपुण्यविजयजी ने कृपा करके प्राकतकथावली ग्रन्थ की प्रेसकापी से हरिभद्रसरि की कथा का भाग भेज दिया था। पं० नाथराम जी प्रेमी ने प्रभाचन्द्र के गद्यकथाकोश की प्रति अबलोकनार्थ भेजने की कृपा की थी। पं० जुगलकिशोर जी मुख्तार ने समय समय पर पत्रों का उत्तर देकर तथा अकलंक नाम के विद्वानों की सूची भेजकर अनुगृहीत किया है। प्रो० ए० एन० उपाध्ये ने डा० पाठक के लेखों की सूची, पत्र-पत्रिकाओं के स्थल निर्देश के साथ भेजने का कष्ट किया था। प्रो० होरालाल जी ने पुष्पदन्तकृत महापुराण के टिप्पण के बारे में जो कुछ पूछा गया उसका तुरन्त उत्तर देकर अनुगृहीत किया। इन महानुभावों के सिवाय, मेरे अनुजतुल्य श्री खुशालचन्द्र वात्सल्य द्वारा, जो हिन्दूविश्वविद्यालय की एम० ए० कक्षा में अध्ययन करते हैं, हिन्दू विश्वविद्यालय की विशाल लाइब्रेरी से बहुत सी आवश्यक पुस्तकें और पत्रिकाएँ देखने को मिल सकी तथा प्रूफसंशोधन में उन्होंने पूरी पूरी सहायता पहुंचाई है। उक्त सभी सज्जनों और बन्धुजनों का मैं हृदय से आभार प्रदर्शन करता हूँ। स्याद्वाद जैन महाविद्यालय, बनारस म्येष्ठ शुक्ला 12, बी० नि० सं० 2464 कैलाशचन्द्र शास्त्री JAR