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________________ प्रस्तावना 117 टिप्पणकार की रचना मानकर उसके निर्माता को पद्मनन्दि का शिष्य मानते हैं, अर्थात वे समझते हैं कि प्रमेयकमल के टीका-टिप्पणकार का नाम भी प्रभाचन्द्र था, और वे पद्मनन्दि सैद्धान्तिक के शिष्य थे / तथा भोजदेव के राज्यकाल में धारानगरी में रहते थे। इसी से वे इन प्रभाचन्द्र तथा श्रवणबेलगोला के 40 वें शिलालेख में वर्णित प्रभाचन्द्र के बारे में लिखते हैं-"यदि इन प्रभाचन्द्र के गुरु पद्मनन्दि सैद्धान्तिक और आठवें नम्बरवाले प्रभाचन्द्र के गुरु अविद्धकर्ण पद्मनन्दि सैद्धान्तिक दोनों एक ही व्यक्ति हों तो ये दोनों प्रभाचन्द्र भी एक ही व्यक्ति हो सकते हैं।" हम ऊपर सिद्ध कर आये हैं कि प्रमेयकमलमार्तण्ड के रचयिता प्रभाचन्द्र ही पद्मनन्दि सैद्धान्तिक के शिष्य हैं और अबलोक भी उन्हीं का बनाया हुआ है, अतः वे, न कि प्रमेयकमल के टिप्पणकार, और उक्त शिलालेख में वर्णित प्रभाचन्द्र एक ही व्यक्ति हैं, क्योंकि दोनों के गुरु का नाम एक है तथा शिलालेख में उनके जो विशेषण दिये हैं, वे विशेषण न्यायकुमुद या प्रमेयकमल के रचयिता प्रभाचन्द्र के सम्बन्ध में ही घटित होते हैं, क्यों कि इनके सिवाय कोई दूसरे प्रभाचन्द्र शब्दाम्भोजभास्कर और प्रथिततकग्रन्थकार नहीं हुए हैं। अतः ये दोनों एक ही व्यक्ति प्रतीत होते हैं। समयविचार आदिपुराण के प्रारम्भ में आचार्य जिनसेन ने प्रभाचन्द्र नामके एक आचार्य का स्मरण निम्नशब्दों में किया है “चद्रांशुशुभ्रयशसं प्रभाचन्द्रकविं स्तुवे / कृत्वा चन्द्रोदयं येन शश्वदाह्लादितं जगत् // " अर्थात्-"चन्द्रमा की किरणों के समान श्वेत यश के धारक प्रभाचन्द्र कवि का स्तवन करता हूँ, जिन्होंने चन्द्रोदय की रचना करके संसार को आह्लादित (प्रसन्न ) किया / " इस ‘चन्द्रोदय को सभी इतिहासज्ञ न्यायकुमुदचन्द्र समझते हैं, और यतः आदिपुराण की रचना ई० 838 में हुई थी अतः प्रभाचन्द्र का समय ईसा की आठवीं शताब्दी का उत्तरार्ध और नवमी का पूर्वार्ध माना जाता है। आदिपुराण के इस उल्लेख के आधार पर निर्धारित किये गये प्रभाचन्द्र के समय में आज तक किसी ने शंका तक भी नहीं की और उसे यहाँ तक प्रमाण माना गया कि न्यायकुमुदचन्द्र का नाम न्यायकुमुदचन्द्रोदय रूढ होगया। किन्तु हम सिद्ध कर आये हैं कि उक्त ग्रन्थ का वास्तविक नाम न्यायकुमुदचन्द्र ही है, चन्द्रोदय नहीं है / सब से प्रथम इस नाम भेद ने ही हमें न्यायकुमुदचन्द्र के कर्ता प्रभाचन्द्र और चन्द्रोदय के कर्ता प्रभाचन्द्र के ऐक्य के सम्बन्ध में शङ्कित किया। पश्चात् जब हमने न्यायकुमुदचन्द्र में स्मत स्वामीविद्यानन्द और अनन्तवीर्य तथा उद्धत पद्यों के समय की जांच की तो हमारा सन्देह निश्चय में परिणत होगया, और इस परिणाम पर पहुँचे कि आदिपुराण में स्मृत प्रभाचन्द्र न्यायकुमुदचन्द्र के कर्ता प्रभाचन्द्र से पृथक् व्यक्ति हैं। इसका स्पष्टीकरण और न्यायकुमुदचन्द्र के रचयिता के समय का विवेचन नीचे किया जाता है। 1 इतिहासप्रेमी पाठकों से यह बात छिपी हुई नहीं है कि हरिवंशपुराण के कर्ता जिनसेन और आदिपुराण के कर्ता जिनसेन-दोनों समकालीन थे, तथा हरिवंशपुराण ( ई० 783) 1 रत्नकरंड ( मा० ग्र० मा० ) की प्रस्तावना पृ०६०। 2 अच्युत ग्रन्थमाला काशी से प्रकाशित ब्रह्मसूत्रशांकरभाष्य के हिन्दीभाषानुवाद की प्रस्तावना में गवन्मेण्ट संस्कृत कालिज के भूतपूर्व प्रिंसिपल
SR No.004326
Book TitleNyayakumudchandra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendramuni
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1938
Total Pages598
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size14 MB
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