________________ 8. 34. 27 ] महाभारते [8. 35.9 ततः प्रायाद्रथेनाशु शल्यस्तत्र विशां पते। स भीमसेनाभिहतो सूतपुत्रः कुरूद्वह / यत्र भीमो महेष्वासो व्यद्रावयत वाहिनीम् // 27 निषसाद रथोपस्थे विसंज्ञः पृतनापतिः // 40 ततस्तूर्यनिनादश्च भेरीणां च महास्वनः / ततो मद्राधिपो दृष्ट्वा विसंज्ञं सूतनन्दनम् / उदतिष्ठत राजेन्द्र कर्णभीमसमागमे // 28 अपोवाह रथेनाजौ कर्णमाहवशोभिनम् // 41 भीमसेनोऽथ संक्रुद्धस्तव सैन्यं दुरासदम् / ततः पराजिते कर्णे धार्तराष्ट्रीं महाचमूम् / नाराचैर्विमलैस्तीक्ष्णैर्दिशः प्राद्रावयद्बली // 29 व्यद्रावयद्भीमसेनो यथेन्द्रो दानवीं चमूम् // 42 स संनिपातस्तुमुलो भीमरूपो विशां पते / इति श्रीमहाभारते कर्णपर्वणि आसीद्रौद्रो महाराज कर्णपाण्डवयोमधे / चतुस्त्रिंशत्तमोऽध्यायः॥३४॥ ततो मुहूर्ताद्राजेन्द्र पाण्डवः कर्णमाद्रवत् // 30 तमापतन्तं संप्रेक्ष्य कर्णो वैकर्तनो वृषः / धृतराष्ट्र उवाच / .. आजघानोरसि क्रुद्धो नाराचेन स्तनान्तरे / सुदुष्करमिदं कर्म कृतं भीमेन संजय / पुनश्चैनममेयात्मा शरवर्षैरवाकिरत् // 31 येन कर्णो महाबाहू रथोपस्थे निपातितः // 1 स विद्धः सूतपुत्रेण छादयामास पत्रिभिः / कर्णो ह्येको रणे हन्ता सृञ्जयान्पाण्डवैः सह / विव्याध निशितैः कर्णं नवभिनतपर्वभिः // 32 इति दुर्योधनः सूत प्राब्रवीन्मां मुहुर्मुहुः // 2 तस्य कर्णो धनुर्मध्ये द्विधा चिच्छेद पत्रिणा। पराजितं तु राधेयं दृष्ट्वा भीमेन संयुगे। अथ तं छिन्नधन्वानमभ्यविध्यत्स्तनान्तरे। ततः परं किमकरोत्पुत्रो दुर्योधनो मम // 3 नाराचेन सुतीक्ष्णेन सर्वावरणभेदिना // 33 संजय उवाच / सोऽन्यत्कार्मुकमादाय सूतपुत्रं वृकोदरः / विभ्रान्तं प्रेक्ष्य राधेयं सूतपुत्रं महाहवे। राजन्मर्मसु मर्मज्ञो विवा सुनिशितैः शरैः / महत्या सेनया राजन्सोदर्यान्समभाषत // 4 ननाद बलवन्नादं कम्पयन्निव रोदसी // 34 शीघ्रं गच्छत भद्रं वो राधेयं परिरक्षत / तं कर्णः पञ्चविंशत्या नाराचानां समादयत् / भीमसेनभयागाधे मजन्तं व्यसनार्णवे / / 5 मदोत्कटं वने दृप्तमुल्काभिरिव कुञ्जरम् // 35 ते तु राज्ञा समादिष्टा भीमसेनजिघांसवः / ततः सायकभिन्नाङ्गः पाण्डवः क्रोधमूर्छितः / अभ्यवर्तन्त संक्रुद्धाः पतंगा इव पावकम् // 6 संरम्भामर्षताम्राक्षः सूतपुत्रवधेच्छया // 36 श्रुतायुर्दुर्धरः क्राथो विवित्सुर्विकटः समः / स कार्मुके महावेगं भारसाधनमुत्तमम् / निषङ्गी कवची पाशी तथा नन्दोपनन्दकौ // 7 गिरीणामपि भेत्तारं सायकं समयोजयत् // 37 दुष्प्रधर्षः सुबाहुश्च वातवेगसुवर्चसौ। विकृष्य बलवच्चापमा कर्णादतिमारुतिः / धनुर्माहो दुर्मदश्च तथा सत्त्वसमः सहः // 8 तं मुमोच महेष्वासः क्रुद्धः कर्णजिघांसया // 38 एते रथैः परिवृता वीर्यवन्तो महाबलाः / स विसृष्टो बलवता बाणो वज्राशनिस्वनः / भीमसेनं समासाद्य समन्तात्पर्यवारयन् / अदारयद्रणे कर्णं वज्रवेग इवाचलम् // 39 ते व्यमुखशरवातान्नानालिङ्गान्समन्ततः // 9 -1720