________________ 12. 325. 4] महाभारते [12. 326.0 पाचार्य / 100 // मायाधर / 155 / चित्रशिखण्डिन् / 156 / कावालखिल्य / 101 / वैखानस / 102 / अभग्न- प्रद / 157 [ = 135 ] / पुरोडाशभागहर। 15 // थोग / 103 / अभनपरिसंख्यान / 104 / युगादे गताध्वन् / 159 / छिन्नतृष्ण / 160 // / 105 / युगमध्य / 106 / युगनिधन। 107 / __ छिन्नसंशय / 161 / सर्वतोनिवृत्त / 16 / बाखण्डल / 108 / प्राचीनगर्भ / 109 / कौशिक ब्राह्मणरूप / 163 / ब्राह्मणप्रिय / 164 / विश्वमूर्ते / 110 // / 165 / महामूर्ते / 166 / बान्धव / 167 // पुरुष्टुत / 111 / पुरुहूत / 112 / विश्वरूप भक्तवत्सल / 168 / ब्रह्मण्यदेव / 169 / भक्तोऽहं / 113 / अनन्तगते / 114 / अनन्तभोग। 115 / त्वां दिदृक्षुः / 170 / एकान्तदर्शनाय नमो नमः अनन्त / 116 [ = 6 ] / अनादे / 117 / / 171 // 4 भमध्य / 118 / अव्यक्तमध्य / 119 / अव्यक्त- इति श्रीमहाभारते शान्तिपर्वणि निधन / 120 // पञ्चविंत्यधिकत्रिशततमोऽध्यायः // 325 // ' 326 व्रतावास / 121 / समुद्राधिवास / 122 / भीष्म उवाच / यशोवास / 123 / तपोवास / 124 / लक्ष्म्यावास एवं स्तुतः स भगवान्गुस्तिथ्यैश्च नामभिः। / / 125 / विद्यावास / 126 / कीावास / 127 // श्रीवास / 128 / सर्वावास / 129 / वासुदेव तं मुनिं दर्शयामास नारदं विश्वरूपधृक् // 1 किंचिच्चन्द्रविशुद्धात्मा किंचिञ्चन्द्राद्विशेषवान् / / 130 // कृशानुवर्णः किंचिच्च किंचिद्धिष्ण्याकृतिः प्रभुः // 2 सर्वच्छन्दक। 131 / हरिहय / 132 / हरिमेध शुकपत्रवर्णः किंचिच्च किंचित्स्फटिकसप्रभः / / / 133 / महायज्ञभागहर / 134 / वरप्रद / 135 नीलाञ्जनचयप्रख्यो जातरूपप्रभः कचित् // 3 [ = 157 ] / यमनियममहानियमकृच्छ्रातिकृच्छ्र प्रवालाङ्करवर्णश्च श्वेतवर्णः क्वचिद्धभौ / महाकृच्छ्रसर्वकृच्छ्रनियमधर / 136 / निवृत्तिधर्म कचित्सुवर्णवर्णाभो वैडूर्यसदृशः कचित् // 4 प्रवचनगते / 137 / प्रवृत्तवेदक्रिय / 138 / अज नीलवैडूर्यसदृश इन्द्रनीलनिभः कचित् / / 139 / सर्वगते / 140 // मयूरग्रीववर्णाभो मुक्ताहारनिभः कचित् // 5.. सर्वदर्शिन् / 141 / अग्राह्य / 142 / अचल एतान्वर्णान्बहुविधारूपे बिभ्रत्सनातनः / / 143 / महाविभूते / 144 / माहात्म्यशरीर सहस्रनयनः श्रीमान्शतशीर्षः सहस्रपात् // 6 / 145 / पवित्र / 146 / महापवित्र / 147 / सहस्रोदरबाहुश्च अव्यक्त इति च कचित् / ' हिरण्मय / 148 / बृहत् / 149 / अप्रतक्य ॐकारमुद्गिरन्वक्त्रात्सावित्री च तदन्वयाम् // 7 शेषेभ्यश्चैव वक्त्रेभ्यश्चतुर्वेदोद्गतं वसु / अविज्ञेय / 151 / ब्रह्माय / 152 / प्रजा- आरण्यकं जगी देवो हरिनारायणो वशी // 8 सर्गकर / 153 / प्रजानिधनकर / 154 / महा- वेदी कमण्डलु दर्भान्मणिरूपानथोपलान् / -2448 -