________________ 6. 43. 31] महाभारते [6. 43. 61 तावन्योन्यं सुसंक्रुद्धौ चक्रतुः सुभृशं रणम् // 31 अभ्ययात्त्वरितो राजंस्ततो युद्धमवर्तत / / 46 सौमदत्तिं रणे शको रभसं रभसो युधि / विराटो भगदत्तन शरवर्षेण ताडितः / प्रत्युद्ययौ महाराज तिष्ठ तिष्ठति चाब्रवीत् // 32 अभ्यवर्षत्सुसंक्रुद्धो मेघो वृष्टया इवाचलम् // 47 तस्य वै दक्षिणं वीरो निर्बिभेद रणे भुजम् / भगदत्तस्ततस्तूर्णं विराटं पृथिवीपतिम् / सौमदत्तिस्तथा शङ्ख जत्रुदेशे समाहनत् // 33 छादयामास समरे मेघः सूर्यमिवोदितम् // 48 तयोः समभवद्युद्धं घोररूपं विशां पते / बृहत्क्षत्रं तु कैकेयं कृपः शारद्वतो ययौ / दृप्तयोः समरे तूर्णं वृत्रवासवयोरिव // 34 तं कृपः शरवर्षेण छादयामास भारत // 49 बाह्रीकं तु रणे क्रुद्धं क्रुद्धरूपो विशां पते / गौतमं केकयः क्रुद्धः शरवृष्टयाभ्यपूरयत् / अभ्यद्रवदमेयात्मा धृष्टकेतुर्महारथः // 35 तावन्योन्यं हयान्हत्वा धनुषी विनिकृत्य वै // 50 बाह्रीकस्तु ततो राजन्धृष्टकेतुममर्षणम् / विरथावसियुद्धाय समीयतुरमर्षणौ। ' शरैर्बहुभिरानईत्सिंहनादमथानदत् // 36 तयोस्तदभवयुद्धं घोररूपं सुदारुणम् // 51 चेदिराजस्तु संक्रुद्धो बाह्रीकं नवभिः शरैः। द्रुपदस्तु ततो राजा सैन्धवं वै जयद्रथम् / . विव्याध समरे तूर्णं मत्तो मत्तमिव द्विपम् // 37 अभ्युद्ययौ संप्रहृष्टो हृष्टरूपं परंतप // 52 . तौ तत्र समरे क्रुद्धौ नर्दन्तौ च मुहुर्मुहुः / ततः सैन्धवको राजा द्रुपदं विशिखैत्रिभिः / समीयतुः सुसंक्रुद्धावङ्गारकबुधाविव // 38 ताडयामास समरे स च तं प्रत्यविध्यत // 53 : राक्षसं क्रूरकर्माणं क्रूरकर्मा घटोत्कचः / तयोः समभवद्युद्धं घोररूपं सुदारुणम् / अलम्बुसं प्रत्युदिया(लं शक्र इवाहवे // 39 ईक्षितृप्रीतिजननं शुक्राङ्गारकयोरिव // 54 घटोत्कचस्तु संक्रुद्धो राक्षसं तं महाबलम् / विकर्णस्तु सुतस्तुभ्यं सुतसोमं महाबलम् / नवत्या सायकैस्तीक्ष्णैर्दारयामास भारत // 40 अभ्ययाजवनैरश्वैस्ततो. युद्धमवर्तत // 55 अलम्बुसस्तु समरे भैमसेनिं महाबलम् / विकर्णः सुतसोमं तु विद्धा नाकम्पयच्छरैः / बहुधा वारयामास शरैः संनतपर्वभिः // 41 / सुतसोमो विकणं च तदद्भुतमिवाभवत् // 56 व्यभ्राजेतां ततस्तौ तु संयुगे शरविक्षतौ / सुशर्माणं नरव्याघ्र चेकितानो महारथः / यथा देवासुरे युद्धे बलशकौ महाबलौ // 42 अभ्यद्रवत्सुसंक्रुद्धः पाण्डवार्थे पराक्रमी // 57 शिखण्डी समरे राजन्द्रौणिमभ्युद्ययौ बली। सुशर्मा तु महाराज चेकितानं महारथम् / अश्वत्थामा ततः क्रुद्धः शिखण्डिनमवस्थितम् // 43 महता शरवर्षेण वारयामास संयगे // 58 नाराचेन सुतीक्ष्णेन भृशं विद्धा व्यकम्पयत् / चेकितानोऽपि संरब्धः सुशर्माणं महाहवे / शिखण्ड्यपि ततो राजन्द्रोणपुत्रमताडयत् // 44 प्राच्छादयत्तमिषुभिर्महामेघ इवाचलम् // 59 सायकेन सुपीतेन तीक्ष्णेन निशितेन च।। शकुनिः प्रतिविन्ध्यं तु पराक्रान्तं पराक्रमी / तो जघ्नतुस्तदान्योन्यं शरैर्बहुविधैर्मधे / / 45 अभ्यद्रवत राजेन्द्र मत्तो मत्तमिव द्विपम् / / 60 भगदत्तं रणे शूरं विराटो वाहिनीपतिः / यौधिष्ठिरस्तु संक्रुद्धः सौबलं निशितैः शरैः / -1192