________________ 1. 3. 43] आदिपर्व [1. 3. 65 पुनरुवाच। अहं ते सर्वं भैक्षं गृह्णामि न चान्यच्चरसि। उपाध्याय कूपे पतित इति // 55 // तमुपाध्यायः पीवानसि / केन वृत्तिं कल्पयसीति // 43 // स प्रत्युवाच। कथमसि कूपे पतित इति // 56 // स तं उपाध्यायं प्रत्युवाच / भो एतासां गवां पयसा वृत्ति प्रत्युवाच / अर्कपत्राणि भक्षयित्वान्धीभूतोऽस्मि / कल्पयामीति // 44 // तमुपाध्यायः प्रत्युवाच / अतः कूपे पतित इति // 57 // तमुपाध्यायः प्रत्युनैतन्याय्यं पय उपयोक्तुं भवतो मयाननुज्ञात- वाच / अश्विनौ स्तुहि / तौ त्वां चक्षुष्मन्तं मिति // 45 // करिष्यतो देवभिषजाविति / / 58 // स एवमुक्त .. स तथेति प्रतिज्ञाय गा रक्षित्वा पुनरुपाध्याय- उपाध्यायेन स्तोतुं प्रचक्रमे देवावश्विनौ वाग्भिगृहानेत्य गुरोरग्रतः स्थित्वा नमश्चक्रे // 46 / / तमु- ऋग्भिः // 59 // पाध्यायः पीवानमेवापश्यत् / उवाच चैनम् / भैक्षं प्र पूर्वगौ पूर्वजो चित्रभानू नाभासि न चान्यच्चरसि / पयो न पिबसि / पीवा गिरा वा शंसामि तपनावनन्तो / नसि / केन वृत्तिं कल्पयसीति // 47 // स एवमुक्त दिव्यौ सुपर्णी विरजौ विमानाउपाध्यायं प्रत्युवाच / भोः फेनं पिबामि यमिमे ___वधिक्षियन्तौ भुवनानि विश्वा / / 60 क्सा मातृणां स्तनं पिबन्त उद्गिरन्तीति // 48 / / हिरण्मयौ शकुनी सांपरायौ वमुपाध्यायः प्रत्युवाच / एते त्वदनुकम्पया गुण नासत्यदस्रौ सुनसौ वैजयन्ती / पन्तो वत्साः प्रभूततरं फेनमुद्गिरन्ति / तदेवमपि शुक्रं वयन्तौ तरसा सुवेमावत्सानां वृत्त्युपरोध करोष्येवं वर्तमानः / फेनमपि वभि व्ययन्तावसितं विवस्वत् // 61 भवान्न पातुमर्हतीति // 49 // ग्रस्तां सुपर्णस्य बलेन वर्तिका..स तथेति प्रतिज्ञाय निराहारस्ता गा अरक्षत् / ___ ममुञ्चतामश्विनौ सौभगाय / तथा प्रतिषिद्धो भैक्षं नानाति न चान्यच्चरति / तावत्सुवृत्तावनमन्त मायया पयो न पिबति / फेनं नोपयुते // 50 // स कदा सत्तमा गा अरुणा उदावहन् // 62 चिदरण्ये क्षुधार्तोऽर्कपत्राण्यभक्षयत // 51 // स षष्टिश्च गावस्त्रिशताश्च धेनव तैरपत्रैक्षितैः क्षारकटूष्णविपाकिभिश्चक्षुष्युपहतो एकं वत्सं सुवते तं दुहन्ति / न्धोऽभवत् / सोऽन्धोऽपि चकम्यमाणः कूपे- नानागोष्ठा विहिता एकदोहनाऽपतत् // 52 // __स्तावश्विनौ दुहतो घर्ममुक्थ्य म् / / 63 . i. अथ तस्मिन्ननागच्छत्युपाध्यायः शिष्यानयो- एकां नाभिं सप्तशता अराः श्रिताः पात् / मयोपमन्युः सर्वतः प्रतिषिद्धः / स नियतं प्रधिष्वन्या विंशतिरर्पिता अराः / अपितः / ततो नागच्छति चिरगतश्चेति // 53 // अनेमि चक्रं परिवर्ततेऽजरं सा एवमुक्त्वा गत्वारण्यमुपमन्योराह्वानं चक्रे / भो मायाश्विनी समनक्ति चर्षणी // 64 अपमन्यो क्कासि / वत्सैहीति // 54 // स तदाह्वान- एकं चक्रं वर्तते द्वादशारं प्रधिसध्यायाच्छ्रुत्वा प्रत्युवाचोच्चैः / अयमस्मि भो षण्णाभिमेकाक्षममृतस्य धारणम् / -21