________________ 1. 3. 15 ] महाभारते [1. 3. 43 दुत्सहसे ततो नयस्वैनमिति // 15 // तेनैवमुक्तो | पाध्यायोऽब्रवीत् / यस्माद्भवान्केदारखण्डमवदार्योजनमेजयस्तं प्रत्युवाच / भगवंस्तथा भविष्य- त्थितस्तस्माद्भवानुद्दालक एव नाम्ना भविष्यतीति तीति // 16 // // 29 // स उपाध्यायेनानुगृहीतः / यस्मात्त्वया ____ स तं पुरोहितमुपादायोपावृत्तो भ्रातृनुवाच / मद्वचोऽनुष्ठितं तस्माच्छ्रेयोऽवाप्स्यसीति / सर्वे च ते मयायं वृत उपाध्यायः / यदयं ब्रूयात्तत्कार्यमविचा- वेदाः प्रतिभास्यन्ति सर्वाणि च धर्मशास्त्राणीति रयद्भिरिति // 17 // तेनैवमुक्ता भ्रातरस्तस्य तथा // 30 // स एवमुक्त उपाध्यायेनेष्टं देशं जगाम चक्रुः / स तथा भ्रातृन्संदिश्य तक्षशिलां प्रत्यभिप्र- // 31 // तस्थे। तं च देशं वशे स्थापयामास / / 18 // ___ अथापरः शिष्यस्तस्यैवायोदस्य धौम्यस्योपमन्यु___एतस्मिन्नन्तरे कश्चिदृषिधौम्यो नामायोदः / तस्य नाम // 32 // तमुपाध्यायः प्रेषयामास / वत्सोपशिष्यास्त्रयो बभूवुरुपमन्युरारुणिर्वेदश्चेति // 19 // मन्यो गा रक्षस्वेति // 33 // स उपाध्यायवचनास एकं शिष्यमारुणिं पाञ्चाल्यं प्रेषयामास / गच्छ दरक्षद्गाः / स चाहनि गा रक्षित्वा दिवसक्षयेऽभ्याकेदारखण्डं बधानेति // 20 // स उपाध्यायेन गम्योपाध्यायस्याग्रतः स्थित्वा नमश्चक्रे // 34 // तसंदिष्ट आरुणिः पाञ्चाल्यस्तत्र गत्वा तत्केदारखण्ड मुपाध्यायः पीवानमपश्यत् / उवाच चैनम् / वत्सोपबर्बु नाशक्नोत् // 21 // स क्लिश्यमानोऽपश्य- मन्यो केन वृत्तिं कल्पयसि। पीवानसि दृढमिति दुपायम् / भवत्वेवं करिष्यामीति // 22 // स तत्र // 35 // स उपाध्यायं प्रत्युवाच / भैक्षेण वृत्ति संविवेश केदारखण्डे / शयाने तस्मिंस्तदुदकं कल्पयामीति // 36 // तमुपाध्यायः प्रत्युवाच / तस्थौ // 23 // . ममानिवेद्य भैक्षं नोपयोक्तव्यमिति // 37 // ___ ततः कदाचिदुपाध्याय आयोदो धौम्यः शिष्या- ___स तथेत्युक्त्वा पुनररक्षद्गाः। रक्षित्वा चागम्य नपृच्छत् / क आरुणिः पाञ्चाल्यो गत इति // 24 // तथैवोपाध्यायस्याग्रतः स्थित्वा नमश्चक्रे // 38 // ते प्रत्यूचुः / भगवतैव प्रेषितो गच्छ केदारखण्डं तमुपाध्यायस्तथापि पीवानमेव दृष्ट्वोवाच / वत्सोपबधानेति // 25 // स एवमुक्तस्ताशिष्यान्प्रत्यु- मन्यो सर्वमशेषतस्ते भैक्षं गृह्णामि / केनेदानी वृत्ति वाच / तस्मात्सर्वे तत्र गच्छामो यत्र स इति // 26 कल्पयसीति // 39 // स एवमुक्त उपाध्यायेन स तत्र गत्वा तस्याह्वानाय शब्दं चकार। भो आरुणे प्रत्युवाच / भगवते निवेद्य पूर्वमपरं चरामि / पाश्चाल्य कासि / वत्सैहीति // 27 // स तच्छ्रुत्वा तेन वृत्तिं कल्पयामीति // 40 // तमुपाध्यायः आरुणिरुपाध्यायवाक्यं तस्मात्केदारखण्डात्सहसो- प्रत्युवाच / नैषा न्याय्या गुरुवृत्तिः / अन्येषात्थाय तमुपाध्यायमुपतस्थे / प्रोवाच चैनम् / अयम- मपि वृत्त्युपरोधं करोष्येवं वर्तमानः / लुब्धोस्म्यत्र केदारखण्डे निःसरमाणमुदकमवारणीयं संरोद्धं ऽसीति // 41 // संविष्टो भगवच्छब्दं श्रुत्वैव सहसा विदार्य केदार- स तथेत्युक्त्वा गा अरक्षत् / रक्षित्वा च पुनखण्डं भवन्तमुपस्थितः। तदभिवादये भगवन्तम्।। रुपाध्यायगृहमागम्योपाध्यायस्याग्रतः स्थित्वा नमआज्ञापयतु भवान् / किं करवाणीति // 28 // तमु- / श्चक्रे // 42 // तमुपाध्यायस्तथापि पीवानमेव दृष्ट्वा -20 -