________________ 54. नमस्कार स्वाध्याय [संस्कृत अन्यत्र विशेषः__ अर्हन्तो वृत्तकला त्रिकोण-सिद्धस्तु शीर्षकं सूरिः। चन्द्रकलोपाध्यायो दीर्घकला साधुरिह पञ्च // 20 // अनुवादः—अन्य स्थळे प्रकारविशेष नीचे प्रमाणे मळे छे:5गोळ कला जे बिन्दुनी छे 0 (५)-ते अरिहंत छ। त्रिकोण जे नाद छे / (6) ते सिद्ध छ। शीर्षयुक्त सर्व - माथु ह ने र—(ह-१-२-३) ए सूरि छ। चन्द्रकला - (4) ए उपाध्याय छे अने दीर्घकला जे ईकारनी छे (7) ते साधु छ / एम अहीं एटले हीकारमा पांच (परमेष्ठी) छे // 20 // बीजाक्षर हीकारना अंशो तथा वर्णोना ध्यान माटे कोष्टक श्लोक 16-17-18-19 मुजब]. बीजाक्षरना अंशोनुं ध्यातव्य ध्यातव्य . . अंश आलेखन परमेष्ठिपंचक तीर्थकृन्मंडल . behar आचार्य (सूरि) बाकीना 16 तीर्थकरो ह (सान्त) शिर 4 / चन्द्रकला | बिंदु(अभ्र) रक्त श्याम و یه ک श्वत सिद्ध साधु अरिहंत उपाध्याय श्री पनप्रभ, श्री वासुपूज्य ... श्री नेमिनाथ, श्री मुनिसुव्रत श्री चन्द्रप्रभ, श्री सुविधिनाथ श्री पार्श्वनाथ, श्री मलिनाथ नाद स्वर नील क . . बीजाक्षर हीकारना अंशो तथा वर्णोना ध्यान मांटे कोष्टक [ श्लोक 20 मुजब बीजाक्षरना | अंशोनुं ___ वर्ण ध्यातव्य - ध्यातव्य .. अंश आलेखन परमेष्ठिपंचक तीर्थकृन्मंडल शीर्षक her पीत आचार्य (सूरि) बाकीना 16 तीर्थकरो . rrrrrup . | चन्द्रकला वृत्तकला त्रिकोण दीर्घकला श्वेत रक्त श्याम उपाध्याय अरिहंत | सिद्ध साधु श्री मल्लिनाथ, श्री पार्श्वनाथ श्री चन्द्रप्रम, श्री सुविधिनाथ . श्री पद्मप्रभ, श्री वासुपूज्य श्री नेमिनाथ, श्री मुनिसुव्रत + 30 श्री नमस्कार संबंधी श्री मानतुङ्गसूरिनुं 'नवकारसारथवणं' नामर्नु एक स्तोत्र 'नमस्कार स्वाध्याय' ना प्राकृत विभागमा आपेल छे। तेमां जे प्रकारविशेष उपलब्ध थाय छे तेनो अहीं निर्देश करवामां आव्यो छे। 6 सरखावो:- वट्टकला अरिहंता तिउणा सिद्धा य लोढकल सूरी। उवज्झाया सुद्धकला दीडकला साहूणो सुहया // 10 // -नवकारसारथवणं (न. स्वा. प्रा. वि. पृ. 263)