________________ विभाग] ऋषिमण्डलस्तवयन्त्रालेखनम् / नादोऽर्हन्तः कला सिद्धाः, सान्तः सरिः स्वरोऽपरे / बिन्दुः साधुरितः पंञ्चपरमेष्ठिमयस्त्वसौ // 19 // अनुवादः-नाद (6) ए अरिहंत छे, कला (4) ए सिद्ध छे, सान्त-ह (1-2-3) ए सूरि छे, स्वर (ई-७) ए (अपरे-) उपाध्याय छे, बिंदु (5) ए साधु छ। ए प्रमाणे आ ही कार पंचपरमेष्ठिमय छे // 19 // 59. पञ्चपरमेष्ठिमय :-हीकारना सात अवयवने पांच परमेष्टिना वर्णोमां विभाजन करी ते पंचपरमेष्ठिस्वरूप जिनोनुं ते ते अवयवमां ते ते वर्ण स्वरूपे नियोजन करवामां आव्युं छे। आथी हीकार पंचपरमेष्ठिमय थाय छ। + सरखावो अस्मिन् बीजे स्थिताः सर्वे, ऋषभाद्या जिनोत्तमाः। नाभिपनस्थितं ध्यायेत् पञ्चवर्ण जिनेशितुः। 10 वर्णैर्निजैनिजैर्युक्ताः, ध्यातव्यास्तत्र सङ्गताः // 21 // तस्थुहरे षोडशामी सुवर्णद्युतयो जिनाः // 33 // नादश्चन्द्रसमाकारो, बिन्दुर्नीलसमप्रभः / ऋषभोऽप्यजितस्वामी सम्भवोऽप्यभिनन्दनः / कलारुणसमा सान्तः, स्वर्णाभः सर्वतोमुखः // 22 // सुमतिः श्रीसुपार्श्वः श्रीश्रेयांसः शीतलोऽपि च // 34 // शिरः संलीन ईकारो, विनीलो वर्णतः स्मृतः / विमलो घनन्तजिनो धर्मः श्रीशान्तितीर्थकृत् / वर्णानुसारसलीनं, तीर्थकृन्मण्डलं स्तुमः // 23 // कुन्थुनाथो हरजिनो नमिनाथो वीर इत्यपि // 35 // 15 चन्द्रप्रभ-पुष्पदन्तौ, 'नाद'स्थितिसमाश्रितौ। ईकारे संस्थितौ पार्श्वमल्ली नीलौ जिनेश्वरौ। 'बिन्दु'मध्यगतौ नेमि-सुव्रतौ जिनसत्तमौ // 24 // पद्मप्रभवासुपूज्यावरुणाभौ कलास्थितौ // 36 // पनप्रभ-वासुपूज्यो, 'कला'पदमधिष्ठितौ। सुव्रतो नेमिनाथस्तु कृष्णाभौ बिन्दुसंस्थितौ / 'शिर'-'ई'-स्थितिसंलीनौ, पार्श्वमल्ली जिनोत्तमौ // 25 // चन्द्रप्रभपुष्पदन्तौ नादस्थौ कुन्दसुन्दरौ॥ 37 // शेषास्तीर्थकृतः सर्वे 'ह-र'स्थाने नियोजिताः। हितं जयावहं भद्रं कल्याणं मङ्गलं शिवम् / मायाबीजाक्षरं प्राप्ताश्चतुर्विशतिरईताम् // 26 // तुष्टिपुष्टिकरं सिद्धिप्रदं निर्वृतिकारणम् // 38 // ऋषभं चाजितं वन्दे, सम्भवं चाभिनन्दनम् / निर्वाणाभयदं स्वस्तिशुभधृतिरतिप्रदम् / श्रीसुमतिं सुपार्श्व च, वन्दे श्रीशीतलं जिनम् // 27 // मतिबुद्धिप्रदं लक्ष्मीवर्द्धनं सम्पदां पदम् // 39 // श्रेयांस विमलं वन्देऽनन्तं श्रीधर्मनाथकम् / त्रैलोक्याक्षरमेनं ये संस्मरन्तीह योगिनः। शान्ति कुन्थुमराईन्तं, नमि वीरं नमाम्यहम् // 28 // नश्यत्यवश्यमेतेषामिहामुत्रभवं भयम् // 40 // षोडशैवं जिनानेतान्, गाङ्गेयद्युतिसन्निभान् / -श्री जैनस्तोत्रसन्दोह, पृष्ठ 236-237 त्रिकालं नौमि सद्भक्त्या, 'ह-रा'क्षरमधिष्ठितान् // 29 // (श्री मन्त्राधिराजकल्पः) -भी ऋषिमण्डलस्तोत्रम् 20 25 श्लोक नं. 16-17-18 मां तथा श्लोक नं. 19 मां अधिष्ठानना आलेखननो प्रकार तो एक ज छे. परंतु अपेक्षा भिन्न छ। 30