________________ नमस्कार स्वाध्याय [संस्कृत रेफः सान्तः शिरश्चन्द्रकलानं नाद ईश्व(स्वरः / सशिरोरेफ-हः पीतः, कला रक्ताऽसितं वियत् // 16 // नादः श्वेतः स्वरः 'तुर्यो, नीलो वर्णानुगा जिनाः / चन्द्राभसुविधी नादः, शून्यं श्रीनेमि-सुव्रतौ // 17 // कला षडर्कसंख्यौ स्यात् पार्थ-(च)मल्लिरीश्व(स्व)रः / सशिरो-रेफ-हो द्वथष्टौ (16), जिना इति चतुर्युगम् // 18 // + अनुवादः-रेफ (र) सन्ति (ह) शिर (माथु) चन्द्रकला (अर्ध चन्द्रकला ) अभ्रे (बिन्दु) नाद (.) ईकॉर स्वर-(आटलां अंगो होकारनां छे / ) माथु (शिरोरेखा) अने रेफ सहित ह कार (ह) (1-2-3) नो वर्ण पीत छ / अर्ध चन्द्रकला 10 (4) नो वर्ण लाल छे / बिन्दु (5) नो वर्ण श्याम छे / नाद (6) नो वर्ण श्वेत छे / चोथा स्वर (ई-७) नो वर्ण नील छे / वर्णानुसारे (रंग प्रमाणे ) जिनो( नी स्थापना) छे। श्री चन्द्रप्रभ अने श्री सुविधिनाथ (नुं स्थान) नाद (6) छे। श्री नेमिनाथ अने श्री मुनिसुव्रतस्वामी(नुं स्थान ) शून्य-बिंदु (5) छे / छट्ठा ने बारमा-श्री पद्मप्रभस्वामी अने श्री वासुपूज्यस्वामी (नुं स्थान) कला (4) छे / श्री पार्श्वनाथ अने श्री मल्लिनाथ (नुं स्थान) ई स्वर (7) छे / माथु (शिरोरेखा) अने रेफ सहित ह कार (ह) (1-2-3) 15 ते १६-(बे वार आठ) जिनो (नुं अधिष्ठान ) छे / (ते आ प्रमाणे :- ऋषभ-अजित-संभव-अभिनन्दन सुमति-सुपार्श्व-शीतल-श्रेयांस-विमल-अनंत-धर्म-शान्ति-कुन्थु-अर-नमि-वर्धमान)-आ प्रमाणे चार युगल छे // 16-17-18 // 5 मां आवी जाय छ। पार्थिवी धारणानुं सुंदर चित्र अहीं उपलब्ध थाय छे। अहीं हुं अरिहंत स्वरूप छं तेवा ध्येयनी (प्रमेयनी) मुख्यता वर्ते छे। * 20 श्लोक नं. 16 थी 20 एम पांच श्लोकोमा पदस्थ ध्याननो निर्देश छे। श्लोक नं. 16-17-18 मां हीकारना ___सात अवयव माटे पांच वर्ण (रंग) निर्णीत करी ते पांच वर्णानुसारे जिनावलिनुं नियोजन करवामां आव्युं छे / आथी होकार जिनमय थाय छे।। * सरखावो: तिर्यग् लोकसमं ध्यायेत् क्षीराब्धि तत्र चांबुजं / सहस्रपत्रं स्वर्णाभं जंबुद्वीपसमं स्मरेत् // 10 // तत्केसरततेरंतः स्फुरत्पिंगप्रभांचिताम् / स्वर्णाचलप्रमाणां च कर्णिकां परिचिंतयेत् // 11 // श्वेतसिंहासनाऽऽसीनं कर्मनिर्मूलनोद्यतं / आत्मानं चिंतयेत्तत्र पार्थिवीधारणेत्यसौ // 12 // योगशास्त्र-सप्तम प्रकाशः + जुओ सामे-पृष्ठ 53 30